ब्रह्मानंद त्रिपाठी, बहरइचा। बैंक आज के समय में बुनियादी सेवा या सर्वव्यापी जरूरत है। जिससे कोई भी अछूता नहीं रह गया है। फिर चाहे किसान हो या व्यापारी हो या कर्मचारी हो या कोई अधिकारी हो बैंक सब की जरूरत है। तरह-तरह की योजनाएं चलाकर सरकार द्वारा गरीबों और किसानों को लाभ देने का प्रयास समय – समय पर किया जाता रहा है।
विभिन्न तरह कि योजनओं के माध्यम से सरकार द्वारा जरुरतमंद व्यक्ति को ऋण देने की व्यवस्था कि गई है लेकिन बैंको से पहले ही दलालों और बिचौलियों के हत्थे चढ़ जाते हैं ग्राहक। जानकारी के मुताबिक शायद यही वजह है कि डिफाल्टर को आसानी से लोन मिल जाता है जबकि आम ईमानदार जरूरतमंद को दुत्कार दिया जाता है या फिर कमीशन पर दिया जाता है। सूत्रों के मुताबिक इस पूरे कमीशन के व्यापर में बैंक के भी कर्मचारी शामिल रहते हैं। इसीलिए तो ऋण प्रक्रिया को कुछ लोभी कर्मचारियों ने इतना कठिन बना दिया है कि किसानों को साहूकार से ऋण लेना सस्ता और बैंक से ऋण लेना काफी भारी और महंगा समझ में आने लगा है।
ताज़ा मामला चाकघाट यूनियन बैंक का है। आरोप है कि बैंक में किसी भी तरह का कोई भी काम एक दिन में नहीं होता है। अगर आप अंदर तक पकड़ नहीं रखते तो कई चक्कर काटने पड़ सकते हैं। ग्रामीण क्षेत्र होने के कारण लोग दूर-दराज से किराया लगा बा मशक्कत बैंक आते हैं लेकिन उनकी केवाईसी तक भी एक दिन में नहीं हो पाती जबकि इसमें छोटी सी प्रक्रिया होती है। इसके लिए भी तीन-चार पेशियां मतलब बैंक के चक्कर लगाए जाते हैं। कुछ लोगों द्वारा बताया गया कि ऋण लेने की बात करने पर बैंक कर्मियों के द्वारा ही किसी अन्य व्यक्ति समर पटेल से बात करने और मिलने की बात कही जाती है। जहाँ से ऋण लेने के लिए दलाली का खेल शुरू होता है। समर पटेल ना ही बैंक कर्मी है और ना बैंक से जुड़े कोई अधिकारी। वह सिर्फ आधार से ट्रांजैक्शन करने के लिए ऑथराइज्ड हैं जो फिनो के अंतर्गत कार्य करते हैं। जिनका कार्य क्षेत्र जो भी हो वहां उन्हें सेवाएं देने के लिए नियुक्त किया जाता है और उन्हें अपने कार्यक्षेत्र में ही सेवाएं देनी होती है। बावजूद इसके समर पटेल हमेशा बैंक मैनेजर के केबिन में या किसी फाइल में सर खपाए देखे जाते हैं। जिनका सिर्फ और सिर्फ यही प्रयास होता है कि केसीसी या किसी अन्य प्रकार के ऋण लेने वाले किसानों को ऋण देने के एवज में कमीशन प्रतिशत तय कर सके। सूत्रों कि माने तो इस पूरे खेल में बैंक मैनेजर और फील्ड मैनेजर का हिस्सा तय करने के लिए ही समर को सेट किया गया है। और तो और सूत्रों की माने तो चाकघाट बैंक के इस रवैया की शिकायत कई दफे आलाधिकारियों से की गई लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। उल्टा शिकायतकर्ताओं कि जानकारी गोपनीय नहीं रखी गई और उन्हें काफी परेशानी उठानी पड़ी।
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अब सवाल उठता है कि फिनो अधिकृत कर्मचारी जो अपने निर्धारित क्षेत्र में सेवाएं देने के लिए बाध्य है और बैंक से कम से कम 200 मीटर दूर रहने की इन्हें हिदायत दी जाती है, वह आखिर बैंक में हर समय क्या करता है ? बैंक मैनेजर के केबिन में फाइलों को पढ़ने और लोन स्वीकृत की बात समर पटेल द्वारा कैसे और किन अधिकारों के तहत कि जा सकती है ? आखिर केवाईसी जैसे साधारण सी प्रक्रिया के काम के लिए भी बैंक में दो-चार पेशियां क्यों लगाई जाती है ? अब देखने वाली बात यह होगी कि बैंक के आला अधिकारी और शासन – प्रशासन इस मामले को कितना गंभीरता से लेते हैं और जाँच के बाद क्या रिपोर्ट बनाते हैं।