कब तक मौन रहेंगे हम? – रामलखन गुप्त

चाकघाट। समाज की समरसता का तानाबाना दिनोंदिन छिन्नभिन्न होता जा रहा है। अब हम उनकी बात नहीं करते, जो अपने मन की व्यथा स्वयं नहीं कह पाते। अब तो हम उनकी बात करते हैं, उनके लिए बात करते हैं, जिनको हमारी बातों से कोई लेना-देना नहीं है। फिलहाल मैं बात कर रहा हूं समाज के … Read more

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