चाकघाट। समाज की समरसता का तानाबाना दिनोंदिन छिन्नभिन्न होता जा रहा है। अब हम उनकी बात नहीं करते, जो अपने मन की व्यथा स्वयं नहीं कह पाते। अब तो हम उनकी बात करते हैं, उनके लिए बात करते हैं, जिनको हमारी बातों से कोई लेना-देना नहीं है। फिलहाल मैं बात कर रहा हूं समाज के उन दबे, कुचले, पीड़ित, शोषित लोगों की, जिनकी वाणी में इतना दम ही नहीं है कि वे अपनी वेदना को शासन-प्रशासन तक पहुंचा सकें। हालांकि सरकार को बनाने में उनकी अहम भूमिका है लेकिन वे आज भी पीड़ित और प्रताड़ित हैं। व्यवस्थागत बात करें तो सरकार सर्वहारा वर्ग के हितों को ध्यान में रखते हुए विभिन्न शासकीय विभागों में कार्यरत प्रशासनिक अमले को जनता की समस्याओं को हल करने के लिए निर्देशित करती है लेकिन जनता के तथाकथित रहनुमा, आज के प्रशासनिक अधिकारी जनता की समस्या को सुनने व उसके समाधान के लिए प्रयास करने से ज्यादा अपने आकाओं को खुश करने में लगे रहते हैं ताकि वे मनचाही जगह पर पदस्थ होकर अपनी मनमानी कर सकें।
त्योंथर अंचल की बात की जाए तो यहां की स्थिति बद से बदतर है। सरकारी महकमें लूट और भ्रष्टाचार के अड्डे बने हुए हैं।शासकीय सेवकों एवं अशासकीय दलालों की कार्यप्रणाली से जनता त्रस्त है। सब मिलकर बहती गंगा में हाथ धो रहे हैं। सरकारी योजनाओं में आने वाले धन की बंदरबांट बदस्तूर जारी है।
त्योंथर क्षेत्र का आलम यह है कि यहां समस्याग्रस्त आम आदमी को न तो न्याय मिल पाता है और न ही उसकी समस्या का निराकरण किया जाता। इन दिनों त्योंथर में “जनता दरबार” लगाने का एक नया शगल शुरू हुआ है लेकिन उस जनता दरबार में अपनी समस्या लेकर पहुंचने वाले लोगों में से कितने लोगों की समस्याएं हल हुई हैं, यह शोध का विषय है। जनता दरबार लगाकर समस्या निराकरण की दिशा में प्रयास के बावजूद भी लापरवाही, मनमानी, भ्रष्टाचार एवं घूसखोरी का दायरा निरंतर बढ़ रहा है। बानगी के तौर पर बात करें तो एसडीएम के कार्यालय में लोकायुक्त पुलिस द्वारा उनके अधीनस्थ बाबू को रिश्वत लेते हुए गिरफ्तार किया गया। दरअसल, बाबू तो एक मोहरा है। बाबू की क्षमता इतनी नहीं है कि वह घूस की रकम को अकेले पचा सके। कहीं न कहीं ऐसी अवैध कमाई के कई हिस्सेदार होंगे, जिन्हें बाबू के माध्यम से उनका हिस्सा पहुंचता रहा होगा। बेईमानों की इस भीड़ में सामान्य जनता के हिस्से में तो सिर्फ वेदना और लाचारी ही आती है। मैं नकारात्मक सोच का व्यक्ति नहीं हूं, हमें सरकार की उपलब्धियां भी दिखाई पड़ती हैं। जनहित में सरकार द्वारा किए गए प्रयास भी दिखाई पड़ते हैं लेकिन उससे ज्यादा जनता की वह वेदना भी दिख रही है, जिसको छुपाने का सदैव प्रयास हुआ है। मैं क्षेत्रवासियों से भी कहना चाहूंगा कि यदि आपके पास थोड़ी-बहुत भी सामर्थ्य है, जिससे आप अपनी तथा आम जनता की बात को ऊपर रख सकते हैं तो जरूर रखें।
आजकल तो महिमामंडन का दौर चल रहा है। जोरदार चापलूसी, झूठी प्रशंसा, गुणगान तो आम बात है। यहां तक कि हद दर्जे के भड़ैत अपने पसंदीदा नेता को भगवान बताने लगे हैं।इस तरह की कशीदागिरी से कुछ नहीं होने वाला है। 77 वर्ष पूर्व भारतीय संविधान में लिखी संप्रभुता तथा समानता की बातों को आत्मसात कर आगे बढ़ने की जरूरत है, न कि कूपमण्डूप बनकर जीने की। आज हम सबके सामने विचारणीय प्रश्न है कि क्या संविधान की मूल भावना समाज के उस निचले हिस्से तक साकार हो रही है या इसमें कहीं कोई कसर है? यदि कोई कमी है तो हम लोगों याने आम जनता की सोच में है, जो बोल सकते हैं लेकिन बोल नहीं रहे हैं। आखिर क्यों? एक बार हमें फिर से मुखर व निर्भय होकर अन्याय, अत्याचार, शोषण के विरोध में कहीं न कहीं अपनी बात तो रखनी ही होगी। यदि हम ऐसा नहीं कर सके तो आने वाली पीढ़ी हमें कभी माफ नहीं करेगी। हम अगली पीढ़ी को क्या यही संदेश देकर जाएंगे कि द्रौपदी की लाज लूटने का प्रयास होता रहा और भीष्म पितामह सहित तमाम महारथी दरबार में मौन बैठे रहे। इस इतिहास की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए हमें सकारात्मक सोच के साथ अपने जीवन में आगे बढ़ना होगा। उन प्रताड़ित लोगों के पक्ष में आगे आना होगा, जिनके पास बोलने की ताकत तो है लेकिन वे भयवश या अन्यान्य कारणों से अन्याय के विरुद्ध आवाज़ नहीं उठा पा रहे हैं। रामधारी सिंह दिनकर के शब्दों में कहें तो– “समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध। जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनके भी अपराध”। (रामलखन गुप्त, पत्रकार) चाकघाट-रीवा (म.प्र.)