अनूप गोस्वामी, जवा। न डॉक्टरी पढ़ी न कोई मेडिकल से सम्बंधित पंजीकरण है बावजूद ग्रामीण अंचलों में धड़ल्ले से बवासीर, भगन्दर, फोड़ा – फुंसी के साथ न जाने कितने बिमारियों का करते हैं इलाज। सबसे बड़ी बात जिले से लेकर ग्रामीण अंचल तक मेडिकल विभाग की पूरी टीम मौजूद है फिर भी न जाने किसके संरक्षण में यह गिरोह लगातार लोगों की जिंदगियों से खेल रहा है।
यह मामला रीवा जिले के जनपद जवा अंतर्गत गढ़वा पुलिया के पास स्थित रिहाइशी मकान का है। जानकारी के मुताबिक यह मकान सुशील शुक्ला पिता रामशखा शुक्ला का है। सूत्रों के मुताबिक इस मकान के अंदर इलाज के नाम पर संचालित क्लिनिक या फिर अस्पताल में बंगाली डॉक्टर द्वारा आम रोगों के साथ – साथ जटिल रोगों की चीर फाड़ तक की जाती है। जानकारी मिलने के बाद जब टीम ने मामले की तहकीकात की तो कहानी शीशे की तरह पूरी साफ हो गई।
टीम पहले से भर्ती मरीज से मिली और उनसे उनके इलाज सम्बन्धी पूरी जानकारी इकठ्ठा की। फिर इलाज के नाम पर बंगाली डॉक्टर से मिली। डॉक्टर ने खुद हिडन कैमरा पर यह स्वीकार किया है कि उसके पास कोई डिग्री नहीं है। वह सिर्फ खुद को अनुभव के आधार पर इलाज करने के लिए उमदा साबित करने में लगा रहा। अब सोचिये यह झोलाछाप डॉक्टर एक भाड़े के मकान में बिना किसी रजिस्ट्रेशन बिना किसी डिग्री के अस्पताल खोलकर बैठा है और बेख़ौफ़ होकर मध्य प्रदेश शासन द्वारा जारी निर्देशों का उलंघन कर रहा है। अब ऐसे में स्वघोषित डॉक्टर जिस किसी का भी इलाज कर रहे उनके साथ क्या – क्या अनुसंधान कर रहे होंगे, उन चीर फाड़ का मापांक क्या होगा, उन दवाइयों का अनुपात क्या रहा होगा, उनके शरीर में बाहर – भीतर क्या – क्या आर्डर – डिसऑर्डर होगा, आदि जटिलता को कैसे समझते होंगे और कैसे उनका इलाज करते होंगे जबकि उनके द्वारा न एलोपैथी न होमियोपैथी न आयुर्वेदा की पढ़ाई की गई।
अस्पताल या क्लिनिक कोई फार्च्यून की दुकान नहीं है। जहाँ गलती करने पर सामान बदला जा सकता है। अस्पताल या क्लिनिक लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए है और इसके लिए शासन द्वारा सीएमएचओ, बीएमओ फिर अस्पताल प्रभारी की नियुक्ति की है ताकि संचालित निजी अस्पतालों पर भी नज़र रखी जा सके। बावजूद इनके नाक के नीचे स्वघोषित डॉक्टरों का गैंग भोली भाली जनता का शोषण करते रहते हैं और फर्जी इलाज कर मोटा मुनाफा कमा कर शासन के नियमों की धज्जियाँ उड़ा रहे। एक और बात हद तो तब हो जाती है जब ऐसे फर्जी डॉक्टरों का संरक्षण मकान मालिक करना शुरू कर देते हैं। सूत्रों की माने तो कई मामलों में माकन मालिक द्वारा ही पीड़ित मरीज को मुँह बंद करने के लिए धमकाया जा चुका है और मामले की तहकीकात कर रहे पत्रकार और उनके कैमरामैन के साथ भी गाली – गलौज और अभद्रता की गई। साथ ही कमरा बंद कर मारपीट का भी प्रयास किया गया लेकिन पत्रकार टीम अपनी सूझबुझ से बाहर आ गए। इस पूरे मामले की जानकारी जब जवा तहसील बीएमओ डॉ ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी को दी गई तो उन्होंने ऐसे अस्पताल या क्लिनिक की जानकारी होने से मना कर दिया लेकिन समय निकाल कर बताये हुए जगह पर अब तक नहीं पहुँच पाए हैं। अब सवाल है कि इतने गंभीर विषय पर कार्यवाई के बजाय डॉ ज्ञानेन्द्र त्रिपाठी कहाँ व्यस्त हैं या फिर इस पूरे मामले में उनकी उदासीनता या ऊपर से कोई कार्यवाई न होना क्या संरक्षण कि ओर इशारा कर रही है !
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