सियासतदारी : विंध्य की सियासत के कोहिनूर थे दादा और दाऊ, वर्तमान राजनीति में नहीं दिखती है जननेता बनने की छवि


विंध्य प्रदेश की सियासत में सीधी जिले का दबदबा किसी से छिपा नहीं है। इस धरा पर जन्म लेने वाले दाऊ साहब को शायद ही कोई नहीं जानता हो। दाऊ साहब और दादा विंध्य क्षेत्र की राजनीति के कोहिनूर माने जाते हैं। इनको खोने का मलाल लोगों को आज भी है। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय कुंवर अर्जुन सिंह ने अपने राजनैतिक कार्यकाल के दौरान सीधी जिले का नाम देश स्तर पर जगजाहिर कर दिया था। कुछ यही उपलब्धि रीवा जिले ने भी दादा के जमाने में हासिल कर ली थी। प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद के समीप पहुंचने वाले दाऊ साहब को देश की राजनीति का चाणक्य माना जाता है। सीधी को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने में उन्होंने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जननेता के प्रति विंध्य क्षेत्र के जनमानस का लगाव किसी से छिपा नहीं है। राजनैतिक कुशलता के कारण ही दो बार दाऊ साहब ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए विंध्य और सीधी जिले का खास ध्यान रखा। विंध्य क्षेत्र की राजनीति के पुरोधा कहे जाने वाले दाऊ साहब का सीधी के साथ – साथ सतना जिले से विशेष लगाव रहा है। रीवा जिले के लिए भी पूर्व विधानसभा अध्यक्ष पंडित श्रीनिवास तिवारी के योगदान को कोई नहीं भूल सकता है।

दादा के साथ दाऊ की हमेशा रही राजनैतिक टसल
विंध्य प्रदेश की राजनीति में जन्म लेकर दिल्ली दरबार तक पहुंचने वाले कुंवर अर्जुन सिंह के एकतरफा जलवे को खासा प्रभावित करने का काम केवल दादा ने ही किया था। दाऊ साहब और दादा के बीच हमेशा राजनैतिक टसल अलग-अलग विचारों के कारण देखी गई है। बताया जाता है कि केंद्रीय मंत्री होने के बाद भी दाऊ साहब संजय गांधी अस्पताल की सौगात अपने सीधी जिले को नहीं दिला पाए थे। इस मामले में आक्रामक राजनीति करने वाले पंडित श्रीनिवास तिवारी ने कुशलता के साथ सफलता हासिल करते हुए अस्पताल की सौगात रीवा जिले की झोली में डाल दी। इसके अलावा भी कई राजनैतिक घटनाक्रमों को आज भी लोगों द्वारा याद किया जाता है। दादा ने पावर में रहते हुए कभी भी विंध्य क्षेत्र में दाऊ साहब का दबदबा कायम नहीं होने दिया। राजनैतिक विरोधी होने के बावजूद दोनों ने खुलकर कभी एक दूसरे के खिलाफ आरोप प्रत्यारोप नहीं लगाए हैं। आम जनता से सीधा जुड़ाव दोनों नेताओं की विशेष पहचान रही है। दोनों की कमी आज भी जनता जनार्दन को बराबर महसूस हो रही है। फिलहाल विंध्य क्षेत्र का कोई भी जनप्रतिनिधि दादा और दाऊ साहब के आसपास भी नजर नहीं आता है। मौजूदा जनप्रतिनिधियों की रणनीति बिजनेसमैन की तर्ज पर जनता के बीच काम कर रही है।


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