गौशाला घोटाला में रीवा अव्वल, बाहर से आए लुटेरे लूट गए गौशाला का धन

शिवानंद द्विवेदी, रीवा। मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार द्वारा प्रारंभ की गई मुख्यमंत्री गोशाला योजना के तहत बनाई जा रही गौशालाओं की स्कीम को वर्तमान मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार द्वारा हाईजैक करते हुए गोशाला योजना प्रारंभ की गई वह खटाई में पड़ती नजर आ रही है। आज पूरे 5 वर्ष व्यतीत होने को हैं और मुख्यमंत्री गोशाला योजना के तहत बनाई जा रही गौशालाओं का निर्माण कार्य पूरा नहीं हो सका है जिसके कारण बेसहारा गोवंश दर-दर मारे मारे फिर रहे हैं और उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है। गोवंशों का मामला एक बार फिर लाइमलाइट में है क्योंकि किसानों की खरीफ बुवाई का समय चल रहा है और कई जगह तो फसलें बड़ी होने के कारण जब यह बेसहारा गोवंश उनकी फसलों को नुकसान करते हैं तो इन्हें विभिन्न प्रकार से प्रताड़ित करते हैं। रीवा जिले के परिपेक्ष में बात की जाए तो पिछले 1 से लेकर 2 दशक के बीच में गोवंशों के साथ भारी अत्याचार हुआ है जिसमें उनके मुंह पैर तार से बांध दिया जाना, घाटियों और खाइयों में धकेल दिया जाना, नहरों और जलप्रपातों में धकेल दिया जाना से लेकर अवैध तरीके से बनाए जा रहे बाड़ों में कैद कर दिया जाता है जिससे निरीह प्राणी मौत के घाट उतर जाते हैं।

रीवा जिले में हुआ बड़ा घोटाला, गौशालाओं के नाम पर बाहरी ठेकेदार लूट ले गए धन
रीवा जिले में निर्माणाधीन गौशालाऔ को बनाने के लिए रीवा जिले से बाहर के मटेरियल सप्लायर, वेंडरों और ठेकेदारों को काम सौंपा गया था जिसके पूरे प्रमाण बिल वाउचर भी उपलब्ध हैं और जिसकी शिकायतें भी कई स्तर पर की जा चुकी हैं। गौरतलब है कि मनरेगा योजना के अंतर्गत बनाई जा रही पंचायती गौशालाओं का निर्माण कार्य मात्र पंचायत ही कर सकती है और किसी वेंडर अथवा ठेकेदार को काम नहीं सौंपा जा सकता। मध्य प्रदेश पंचायत सामग्री माल क्रय अधिनियम 1999 के तहत गौशाला में काम करने वाले मजदूरों के मस्टर रोल जारी होते हैं और निविदा जारी करते हुए सबसे कम कीमत में सामग्री बेचने वाले मटेरियल सप्लायर का चयन किया जाता है। जाहिर है यदि कोई मटेरियल सप्लायर कानपुर, छतरपुर, इंदौर अथवा नई दिल्ली से मटेरियल सप्लाई कर रहा है तो इसका सीधा सा मतलब समझ लेना चाहिए कि गौशाला निर्माण में व्यापक स्तर का खेल हुआ है जिसमें अपने चहेते ठेकेदारों को पंचायत के सरपंच सचिवों के ऊपर दबाव दिया जाकर अथवा उनकी सांठगांठ से अधिकारियों के दबाव में बाहर के ठेकेदारों को काम दे दिया गया और फर्जी बिल वाउचर लगाते हुए काम कराए गए। कई गौशालाओं की जांचें हुईं तो यह देखा गया की उनकी क्वालिटी भी इस मानक स्तर की नहीं है जिस हिसाब से गौशालाओं का निर्माण किया जाना था। अमित पटेरिया राजाराम कुशवाहा और भारद्वाज जैसे मटेरियल सप्लायर और वेंडरों को काम दिया जाना जिनकी फर्में स्वयं ही छतरपुर और इंदौर से ताल्लुक रखती हैं साफ स्पष्ट होता है कि पूरे ही मामले में व्यापक स्तर का घोटाला हुआ है।

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कलेक्टर कमिश्नर और लोकायुक्त की जांच में लीपापोती
इस बाबत शिकायत रीवा जिले के एक पेटी ठेकेदार और इंजीनियरिंग कॉलेज रीवा के पास आउट इंजीनियर पीयूष पांडेय द्वारा किया गया जिसमें उनके द्वारा बताया गया इस पूरे मामले में उन्हें भी बलि का बकरा बनाया गया और पेटी कॉन्ट्रैक्ट में अमित पटेरिया राजाराम कुशवाहा और भारद्वाज जैसे लोगों के द्वारा काम पेटी कांट्रेक्टर को दे दिया गया और बताया गया कि भुगतान हो जायेगा। लेकिन मामला सिर्फ यहीं तक नहीं रुका और पेटी कॉन्ट्रैक्ट देने के लिए पीयूष पांडेय जैसे दर्जनों ठेकेदारों से अग्रिम राशि भी घूस के तौर पर ली गई जिसे उच्च पदों पर बैठे हुए आला अधिकारियों को कमीशन देने की बात कही गई। यह कोई आरोप नहीं है बल्कि व्हाट्सएप संदेश के माध्यम से इंजीनियर और ठेकेदारों के द्वारा जो कम्युनिकेशन ठेकेदारों से किए गए उसके पुख्ता प्रमाण भी आज भी उपलब्ध हैं और इन्हें जांच एजेंसी ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त को हार्ड कॉपी में प्रस्तुत भी किया जा चुका है।

लोकायुक्त ईओडब्ल्यू से लेकर शासन स्तर तक पहुंचाई गई गौशाला घोटाले की शिकायत
जब पियूष पांडेय और उनके जैसे कई पेटी ठेकेदारों के द्वारा अपने किए गए कार्य का पैसा नहीं मिला तो उन्होंने इसकी शिकायत करना प्रारंभ किया। इसके विषय में विधिवत एसपी कलेक्टर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा से लेकर कमिश्नर रीवा संभाग और ईओडब्ल्यू लोकायुक्त सहित मुख्यमंत्री मध्यप्रदेश शासन एवं प्रधानमंत्री कार्यालय तक अपनी शिकायतें भेजी गई जिसमें वह समस्त दस्तावेज भी संलग्न किए गए जो इस बात के पुख्ता प्रमाण थे कि किस प्रकार से उनके बैंक अकाउंट में राशि का आदान-प्रदान हुआ है और कैसे बिना उनके हस्ताक्षर से फर्जी बिल जारी करते हुए गौशाला निर्माण से संबंधित भुगतान में व्यापक स्तर का भ्रष्टाचार किया गया। मामले से संबंधित जो भी व्हाट्सएप और मोबाइल आदि के माध्यम से कम्युनिकेशन हुए और जो भी रिकॉर्डिंग शिकायतकर्ताओं के पास उपलब्ध थी वह सब वरिष्ठ कार्यालयों को उपलब्ध करवाई गई है। लेकिन इसके बावजूद भी निचले स्तर के जिले में बैठे हुए अधिकारियों के द्वारा स्वयं जांच करते हुए मामले को दबा दिया गया जिसके बाद पियूष पांडे द्वारा परिवाद दायर करते हुए कोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया है।

घोटालों के बीच गोवंशों का जीवन संकट में
अब सवाल यह है कि मानव ने गौशाला निर्माण के लिए आई राशि का जो बंदरबांट मिलजुलकर कर लिया जिसमें घोटालेबाज ठेकेदार सरपंच सचिव तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत जनपद पंचायत सहित इंजीनियर ने मिलकर मामले पर लीपापोती कर दी लेकिन अब सवाल यह है कि यदि गौशालाओं का निर्माण नहीं हो पाता तो ऐसे में उन हजारों लाखों की संख्या में बेसहारा घूम रहे गोवंशों के भविष्य का क्या होगा जिन्हे आए दिन प्रताड़ना का शिकार होना पड़ता है और खेती किसानी करने वाले लोगों के द्वारा उनका मुंह पैर तार से बांध दिया जाना, अवैध बांडों में कैद कर दिया जाना और उनके साथ विभिन्न प्रकार से पशु क्रूरता की जा रही है।

रीवा जिले की गौशाला घोटाला की जांच हो और दोषियों पर कार्यवाही की जाए – शिवानंद द्विवेदी
यदि इस घोटाले की जांच नहीं होती और दोषियों को दंडित नहीं जाता तो निश्चित तौर पर गोवंशों के साथ न्याय नहीं कहलाएगा। इसलिए आज आवश्यकता है कि एक उच्चस्तरीय टीम गठित कर स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से रीवा जिले में हुए व्यापक स्तर के गौशाला निर्माण घोटाले की जांच की जाए और दोषियों पर कार्यवाही किया जाए और जल्द से जल्द गौशाला निर्माण कार्य पूरा किया जाकर गोवंशों को पोषण और संवर्धन हेतु सुरक्षित किया जाए। जिससे न केवल गोवंश की सुरक्षा हो साथ में किसानों की फसल नुकसानी भी न हो जिससे किसानों का उत्पादन भी बढ़े और देश की कृषि उत्पादन में भी बढ़ोतरी हो। यह सब तभी संभव हो पाएगा जब गोवंशों की सुरक्षा और संवर्धन किया जाकर गोवंश आधारित उत्पाद से जैविक कृषि को बढ़ोतरी मिलेगी।

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