रीवा, मप्र। सरकारी आदेश के अनुसार तो धान उपार्जन बंद हो चूका है। न तो पोर्टल में कुछ भी नया चढ़ाया जा सकता है और न ही तौल कराई जा सकती है। लेकिन कुछ तो ऐसा किया गया है जो अब भी सीमा पार से धान से लदे ट्रैक्टरों की ख़ेप मध्य प्रदेश के कुछ ख़रीदी केंद्रों में पहुँच रही है। ये शक़ तब ज्यादा गहरा हो गया जब ट्रैक्टर के ड्राइवर ने आ रही ख़ेप पर अपना मुंह खोला।
रीवा प्रशासन चाहे जितना दावा करले लेकिन इस बात से इंकार नहीं कर सकती है कि तराई अंचल के धान उपार्जन केंद्रों पर अवैध धान मतलब कि सीमा पार की धान नहीं आई है। ऐसा इसलिए क्यूँकि कई बार कुछ प्रशासनिक अधिकारीयों द्वारा ही ऐसी अवैध ख़ेप पर नकेल भी कसी गई है। ताज़ा मामला रायपुर – सोनौरी क्षेत्र का है जहाँ आज शाम एक धान से लदा हुआ ट्रैक्टर ऋचा चेकपोस्ट पर पाया गया। शक़ होने पर लोगों द्वारा चालक से बात की गई तो जानकारी मिली कि धान की ख़ेप उत्तर प्रदेश के घोघा से आ रही है। ये पूंछने पर कि ये धान कहाँ जा रही है तो जानकरी दी गई, रायपुर सोनौरी क्षेत्र के सोसायटी में। इस मामले को लेकर त्योंथर एसडीएम् पी के पाण्डे जी और तहसीलदार दिलीप शर्मा को भी जानकरी दी जा चुकी है। इस दौरान ऐसे अवैध धान के व्यापारी और संरक्षक भी इलाके में ट्रैक्टर के इर्द गिर्द नज़र आने लगे और शुरू कर दिया जुगाड़। लेकिन चेकपोस्ट में जब बैरियर खुला ही नहीं तो ट्रैक्टर को वापस लौटना पड़ा। चुँकि कुछ लोग भी इर्द गिर्द थे शायद इसलिए भी बात बन नहीं पाई।
आख़िर कैसे होगा जुगाड़
धान उपार्जन के पोर्टल में ख़रीदी बंद होने के बाद, अब आ रही धान कि ख़ेप से क्या फ़ायदा हो सकता है ?
इस सवाल को जब तकनीक से जोड़ा गया तो परिणाम बेहद ही अलग दिखा और शायद अधिकारीयों को भी चौंका देगा।
क्योंकि धान उपार्जन के पोर्टल बंद होने के बाद क्षेत्र में आला-अधिकारीयों समेत पत्रकारों का भी ध्यान अब धान उपार्जन केंद्रों कि तरफ नहीं है और इस बात का फ़ायदा समिति के कर्मचारियों एवं अवैध धान व्यपारियों ने भरपूर उठाया है। सूत्रों के अनुसार ख़रीदी के आखिरी वक़्त में जो खाते खाली मिले उन पर जुगाड़ किये गए अवैध धान को बिना केंद्र में लाये पहले ही चढ़ा दिया जाता है। और बाद में सब जुगाड़ हो जाता है।
लोगों के मुताबिक़ इस तरह के जुगाड़ में फंसने का कोई ख़तरा ही नहीं है क्यूँकि पोर्टल में जितनी मात्रा धान कि चढ़ी है उतना तो सरकार द्वारा परिवहन करना ही है। अगर किसी वजह से ख़ेप आज कल में केंद्र तक नहीं पहुँच पाती है तो भी कोई दिक्कत नहीं है क्यूँकि सरकार द्वारा बाक़ी की बची धान की वसूली तो की ही जाएगी। तो फिर उस वक़्त ऐसे अवैध धान के ख़ेप काम आ जाते हैं।
ऐसे में सवाल उठता है कि आख़िर इन सब से सरकार को कितना नुकसान होता होगा ?
दूसरा बड़ा सवाल आमदनी अठन्नी और खर्चा रुपैया वाला जो रवैया समिति में दिखता है उस पर नकेल कब पड़ेगी ?
आख़िर ऐसे कारनामे के बाद सरकार को जो घाटा लगा, उसकी वजह से कितने ही काम होंगे जिनमें शिथिलता आ जाती होगी भरपाई कौन करेगा ?
यूट्यूब चैनल से जुड़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करें
फेसबुक से जुड़ने के लिए यहाँ पर क्लिक करें
आपके सुझाव और शिकायत का स्वागत है, खबर देने या विज्ञापन के लिए संपर्क करें – +91 9294525160