कभी गरीबी में जीवन यापन करने को मजबूर था परिवार और आज

ग्रामीण विकास विभाग के तहत संचालित ग्रामीण आजीविका मिशन महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता के अवसर दे रही है। कई गरीब महिलाओं ने आजीविका मिशन के स्वसहायता समूह से जुड़कर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार किया है। रीवा जिले के हनुमना विकासखण्ड के ग्राम खौरा निवासी अनुसूचित जाति की श्रीमती चन्द्रकली साकेत ने भी स्वसहायता समूह से जुड़कर अपना भाग्य संवारा है।

स्वसहायता समूह से जुड़कर संवारा चन्द्रकली ने अपना भाग्य

रीवा, मप्र। श्रीमती साकेत ने बताया कि मेरा परिवार गरीबी में जीवन यापन कर रहा था। परिवार का पेट पालने के लिए केवल मजदूरी का सहारा था। अगर रोज मजदूरी न मिली तो परिवार का भरण-पोषण और बच्चों की पढ़ाई-लिखाई मे कठिनाई आती थी। ऐसे में मुझे आजीविका मिशन के स्वसहायता समूह से जुड़ने का अवसर मिला। मैंने अपने पड़ोस की महिलाओं को जोड़कर वैभव स्वसहायता समूह का गठन किया। आजीविका मिशन के द्वारा स्वसहायता समूह ने मुझे एक हजार रुपए की ऋण राशि प्रदान की। इसका उपयोग करने के बाद मैंने ब्याज सहित राशि समूह को वापस लौटा दी। इसके बाद मुझे समूह से 12 हजार रुपए की ऋण राशि मिली। जिससे मैंने सिलाई मशीन खरीदकर सिलाई का काम शुरू किया। प्रतिदिन सिलाई करने से मेरी आमदनी बढ़ने लगी। इसके बाद मुझे बैंक लिंकेज से 18 हजार रुपए की राशि प्राप्त हुई जिसमें मैंने अपना सिलाई सेंटर शुरू कर दिया। इसमें मेरे अलावा दो अन्य महिलाएं सिलाई का कार्य करने लगीं। अपने गांव तथा आसपास के गांवों से हमें सिलाई के लिए कपड़े मिलने लगे। अब मैं हर महीने लगभग 8 हजार रुपए कमा लेती हूं। इससे मेरा परिवार दुखों को भूलकर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा है। आजीविका मिशन से जुड़े होने के कारण मुझे रोजगार मेले की जानकारी हुई। जिसमें शामिल होकर मेरे बेटे का चयन आटो पार्ट्स कंपनी में हो गया है। ट्रेनिंग के बाद उसे 20 हजार रुपए मिल रहे हैं। आजीविका मिशन के स्वसहायता समूह ने मेरा जीवन बदल दिया है।

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