सिरमौर। रीवा जिले की जनपद पंचायत सिरमौर के ग्राम पंचायत डिहिया के अरखा टोला के निवासी इक्कीसवीं सदी के विकास राज में भी नरकीय जीवन जीने को मजबूर हैं। हालत यह है कि गांव के लगभग 300 परिवार वाले अरखा टोला के 1000 लोगो के लिये बरसात का मौसम हर साल किसी त्रासदी से कम नहीं रहता बाकी ठंडी, गर्मी के मौसम में तो किसी कदर मुख्य सड़क तक पहुँच ही जाते हैं। हालाँकि जब बात बारिश और बरसात कि आती है तो, गांव वालों की भाषा में कहे तो “मूतना भी सपन हो जाता है।”
बरसात के मौसम में लगभग चार महीने, गांव वाले इस मौसम को एक ऐसी सजा की तरह काटने को मजबूर हैं जो गुनाह उन्होंने किये ही नहीं और अगर कोई गुनाह किया भी तो सिर्फ इतना की उन्होंने स्थानीय, राज्य और केंद्र स्तर पर ऐसे जनप्रतिनिधि चुने जिन्हे उनकी कोई परवाह ही नहीं है। कई बार बात करते – करते धीमी जुबान पर ग्रामीण एक दर्द और बयां कर देते हैं। मोहल्ले के अधिकतर निवासी एसटी, एससी, ओबीसी और सामान्य गरीब हैं शायद इस लिए भी नेताओं को उनकी हालत से फर्क नहीं पड़ता। गांव के लोग तो यहाँ तक बताते हैं कि चुनाव के समय उनसे सूर्य देवता की तरफ हाथ करके स्थानीय जनप्रतिनिधि सरपंच ने रोड बनवाने की कसम खाई थी और ऐसा ही वादा माननीय विधायक पिछले दो चुनावों से गांव वालों से कर चुके है, हालांकि माननीय सांसद महोदय जी से शिकायते थोड़ी कम है क्युंकि वो गांव मे गए वगैर ही तीसरी बार भी माननीय सांसद हैं, जिस पर गांव वाले कहते हैं कि, “हम झूठ न बोलब सांसद नहीं आये रहे, न रोड बनावय का कहिन।” लेकिन सवाल जो महत्वपूर्ण हो जाता है वो ये है कि, क्या अरखा टोला के लोगों का कीचड़ भरा बनवास कोई खत्म करने की पहल करेगा या फिर ऐसे ही सबके साथ, सबके विकास की टैगलाइन के साथ इस गांव को भुलाया जा चुका है ? गांव के लोगों की माने तो सड़क के लिए पैसे भी निकाले जा चुके हैं, जिसकी हकीकत प्रशासन जाने, लेकिन बीती गर्मी में ही अधिकारियों ने सड़क पर चूना डाला था, तब लगा सड़क बन जायेगी लेकिन जब बरसात आई तो पता चला की चूना डालकर ग्रामीणों को चूना लगाया जा चुका है। इस गांव की मौजूदा हालत देख कर अदम गोंडवी की पंक्तियाँ बिल्कुल फिट बैठती हैं:
“तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है, मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।” (रिपोर्ट – अनुपम अनूप)