रीवा में न्याय के नैसर्गिक सिद्धांत को पूरी तरह से खत्म किए जाने का मामला प्रकाश में आया है। जिला कलेक्टर रीवा श्रीमती प्रतिभा पाल के एक ऐसे ही निर्णय ने सब ज्यूडिशियल व्यवस्थाओं पर एक बार पुनः प्रश्न चिन्ह सा लगा दिया है। देश प्रदेश की सभी अर्ध न्यायिक व्यवस्थाओं पर पहले से ही सवाल खड़े किए जाते रहे हैं चाहे वह तहसीलदार और एसडीएम कार्यालयों में चलने वाली राजस्व सुनवाइयों का रहा हो अथवा सूचना आयोग और अन्य कलेक्टर एवं कमिश्नर की सुनवाइयों का, इन सभी न्यायालयों पर समय समय पर सवाल खड़े होते रहे हैं। राजस्व न्यायालयों के कितने खराब हाल हैं यह किसी से छुपा नहीं है जहां किसी की जमीन किसी के नाम और कहीं का नक्शा कहीं तरमीन कर दिया जाता है और कुछ भी बिना सर पैर के निर्णय यह कथित माननीय अर्ध न्यायिक जज दे दिया करते हैं। लेकिन जिस मामले की हम यहां पर चर्चा कर रहे हैं यह सीईओ जिला पंचायत और कथित कलेक्टर न्यायालय के सीईओ के आदेश को पलटने का मामला है।
बर्खास्त जीआरएस को कलेक्टर ने बिना आधार के ही कर दिया बहाल
गौरतलब है की गंगेव जनपद अंतर्गत सूरा पंचायत के तत्कालीन ग्राम रोजगार सहायक पुष्पेंद्र तिवारी को प्रधानमंत्री आवास घोटाले में संलिप्त पाए जाने पर जिला सीईओ द्वारा संविदा सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था। बर्खास्तगी के बाद जीआरएस पुष्पेंद्र तिवारी ने हाईकोर्ट जबलपुर की शरण ली थी जिसके बाद हाईकोर्ट जबलपुर ने मामले की अपील कलेक्टर रीवा के पास करने का आदेश दिया था। याचिकाकर्ता द्वारा मामले की अपील जब कलेक्टर रीवा को की गई तो सीईओ जिला पंचायत रीवा को शासन की तरफ से प्रतिवादी बनाया गया। मामले पर शिकायतकर्ता, जिनकी की शिकायत पर जांच और कार्यवाही होकर जीआरएस को सेवा से बर्खास्त किया गया था, उन्होंने भी कलेक्टर रीवा प्रतिभा पाल के समक्ष अपना पक्ष रखना चाहा। शिकायतकर्ता नीरज सिंह ने तर्क दिया की वह न तो कैविएट लगा रहे न ही इंटरवेंशन फाइल कर रहे बल्कि उन्हें कलेक्टर द्वारा इसलिए सुना जाय क्योंकि वह इस गंभीर भ्रष्टाचार के मामले में एक प्रमुख शिकायतकर्ता हैं इसलिए शासन की मदद करना चाहते हैं जिससे कि मामले के सभी पहलू कलेक्टर न्यायालय के समक्ष सुनवाई के दौरान रखे जा सकें लेकिन कलेक्टर प्रतिभा पाल ने एक न सुनी और शिकायतकर्ता को अपना पक्ष रखने का कोई मौका नहीं दिया।
कलेक्टर रीवा प्रतिभा पाल ने की नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की हत्या – शिकायतकर्ता
अब जब याचिकाकर्ता बर्खास्त जीआरएस पुष्पेंद्र तिवारी बनाम सीईओ जिला पंचायत रीवा प्रकरण की सुनवाई चली तब कलेक्टर की सुनवाई को गौर से देखने वाले लोगों ने बताया की कलेक्टर ने सीईओ जिला पंचायत को भी तलब नही किया और बिना कुछ देखे सुने ही मनमाफिक निर्णय पारित कर दिया। अब जो निर्णय पारित किया गया उसमे श्रीमती प्रतिभा पाल ने अपने आदेश में लिखा की चूंकि सीईओ द्वारा दोषी पाए गए जीआरएस पुष्पेंद्र तिवारी ने गबन की वसूली की राशि अब भर दी है और क्योंकि जियोटैग के समय सर्वर काम नहीं किया था इसलिए जीआरएस निर्दोष है जबकि यदि सर्वर सही नही तो जियटैग ही नहीं हो पाएगा और यह कौन सा सिद्धांत हैं की यदि चोर चोरी का पैसा जमा कर दे तो वह चोरी के अपराध से दोषमुक्त हो जायेगा। साथ ही कलेक्टर ने यह भी आदेश में लिखा की सीईओ जिला पंचायत रीवा द्वारा सुनवाई के दौरान रोजगार सहायक पुष्पेंद्र तिवारी को कोई सुनवाई का मौका ही नही दिया गया जबकि शिकायतकर्ताओं द्वारा सूचना के अधिकार से प्राप्त सैकड़ों पन्नो के दस्तावेजों में दर्जन भर कारण बताओं सूचना पत्र पाए गए हैं जो तत्कालीन सीईओ जिला पंचायत और तत्कालीन कलेक्टर द्वारा दोषी जीआरएस पुष्पेंद्र तिवारी को भेजे जा चुके थे।
सीईओ जिला पंचायत के जीआरएस के बर्खास्तगी के आदेश को प्रतिभा पाल ने किया खारिज
अब बड़ा सवाल यह है की ऐसे में आखिर ऐसे न्यायालय का क्या औचित्य जहां आम गरीब जनता के साथ न्याय ही न किया जाए? यदि कलेक्टर रीवा श्रीमती प्रतिभा पाल को शिकायतकर्ताओं को नहीं सुनना था तो कम से कम सीईओ जिला पंचायत के उस बर्खास्तगी के आदेश को तो ध्यान से पढ़ लेना था। जब पूर्व में जीआरएस की सेवा समाप्त करने की शक्ति तत्कालीन कलेक्टरों के पास थी तब भी और जब यह शक्ति सीईओ जिला पंचायत के पास स्थानांतरित हुई तब भी याचिकाकर्ता जीआरएस पुष्पेंद्र तिवारी को पर्याप्त सुनवाई का अवसर दिया गया था। ऐसे में जिला कलेक्टर रीवा द्वारा यह कहा जाना की जीआरएस को सुनवाई का अवसर न दिए जाने के कारण जीआरएस की सेवा बहाल की जाती है यह पूर्णतया दोषपूर्ण और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के विपरीत है। दूसरी तरफ यदि यह माना भी जाय की दोषी पाए गए बर्खास्त जीआरएस को पूर्व में सीईओ जिला पंचायत द्वारा युक्तियुक्त अवसर नहीं दिया गया तब भी कलेक्टर रीवा श्रीमती प्रतिभा पाल यह आदेश दे सकती थीं की सीईओ जिला पंचायत पुनः प्रकरण की सुनवाई करें और जीआरएस को सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर दें न की यह की सीईओ जिला पंचायत के आदेश को खारिज करें और दोषियों को संरक्षण दें।
बहरहाल रीवा कलेक्टर प्रतिभा पाल का बर्खास्त जीआरएस पुष्पेंद्र तिवारी के बहाली का आदेश चर्चा का विषय बना हुआ है क्योंकि जानकारों का मानें तो उनके अनुसार यह पूरी तरह से दोषियों को संरक्षण देने और नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत की हत्या बताई जा रही है जिसे बुद्धिजीवी और न्यायिक प्रक्रियाओं के जानकार बिलकुल ही पचा नहीं पा रहे हैं।