बोरवेल में गिरने से हुई बालक की मौत
रामलखन गुप्त, चाकघाट। देश के अंदर बोरवेल में गिरने वाले बच्चों की संख्या निरंतर बढ़ती जा रही है। अभी ताजा घटना त्योंथर तहसील के ग्राम मनिका में मयंक आदिवासी (6 वर्ष) बोरबेल में गिर गया और तीसरे दिन उसकी लाश ही बोरवेल से निकल पाई। सूत्रों की मानें तो देश में अब तक 4 वर्षों में 281 से अधिक बच्चे बोरवेल में गिर चुके हैं। खुले बोरवेल में बच्चों के गिरने की घटना को रोकने के लिए हाई कोर्ट, सुप्रीम कोर्ट एवं प्रदेश की सरकारों ने भी बचाव के लिए निर्देश जारी किए हैं लेकिन उस पर अमल नहीं किया जाता। मनमाने तरीके से क्षेत्र में बोर कराया जा रहा है, जिसके लिए किसी भी सुरक्षा व्यवस्था का कोई भी पालन नहीं किया जा रहा है। अनेक ऐसे खुले बोर यहां हैं जिन्हें खुला ही छोड़ दिया जाता है और उसमें गिरकर बच्चों की जान जा रही है। त्योंथर तहसील में बोरवेल के नाम पर जिस तरह से लापरवाही देखने को मिल रही है उससे लगता है कि प्रशासन ने इस मामले को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया। बोरवेल इस समय त्योंथर क्षेत्र में जगह-जगह धड़ले से हो रही है। जिला प्रशासन के द्वारा रोक लगाई जाने के बावजूद भी मनमाने तरीके से यहां बोर का काम चल रहा है। क्षेत्र में अनेक ऐसे लोग हैं जो बोर खोदने का काम करते हैं किंतु उनके पास न तो कोई वैध लाइसेंस है और न ही उनके पास कोई दक्ष कारीगर है। वे अपनी गाड़ी में बोर का सामान लादकर प्रतिबंधित एरिया में भी जाकर बोर कर रहे हैं और मनमाना पैसा वसूल रहे हैं। ऐसे लोगों को प्रशासन द्वारा न तो चिन्हित किया गया और न ही उनके द्वारा किए जा रहे बिना अनुमति के बोर पर उनके विरुद्ध कोई कार्यवाही की जा रही है।
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उच्च न्यायालय एवं शासन के निर्देश को माने तो बोरवेल खुदवाने के 15 दिन पहले जिलाधिकारी, ग्राउंड वाटर डिपार्टमेंट, स्वास्थ्य विभाग, नगर निगम को बताना जरूरी है। गांव के बोरवेल की खुदाई सरपंच और कृषि विभाग की निगरानी में होनी चाहिए। जिस स्थान पर बोर की खुदाई हो वहां बोर्ड लगाकर बोर की जानकारी देनी चाहिए एवं खुदाई स्थल के चारों तरफ कटीले तार भी लगाया जाना चाहिए। किंतु यहां ऐसा कुछ भी नहीं हो रहा है। इस क्षेत्र में मनमाने तौर पर बोर की खुदाई चल रही है। अवैध बोर खुदाई का सिलसिला यहां इस कदर बढ़ गया है कि जिला प्रशासन के द्वारा खुदाई पर रोक लगाए जाने के बावजूद भी धड़ल्ले से खुदाई का काम चलता है। यहां अनेक ऐसे बोरवेल करने वाले लोग हैं जो बोर के समान (उपकरण) को अपनी गाड़ी में लाद कर मनचाहे स्थान पर पहुंच जाते हैं और हाथ से ही श्रमिकों के माध्यम से बोर कर देते हैं। इनके पास न तो कोई बैध लाइसेंस होता और न ही इनके श्रमिक इस मामले में दक्ष्य होते हैं। सिर्फ पैसे के लालच में इस तरह के बोर करने वाले गांव-गांव में फैल हुए हैं जो पानी के साथ खुले बोर के रूप में मौत को निमंत्रण दे रहे हैं।
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जिला प्रशासन निचले स्तर के कर्मचारियों से जब इस गंभीर बोर दुर्घटना की रोकने के लिए जानकारी मांगते हैं तो उन्हें महज दिखावे के रूप में झूठी जानकारी दे दी जाती है ,जबकि धरातल पर स्थिति कुछ और ही होती है। चाकघाट के समीप ग्राम मनिका (थाना जनेह) में घटित यह घटना जिसमें मयंक आदिवासी 6 वर्ष की बोर में गिर जाने से मौत हुई है। वह बोर भी लापरवाही का ही जीता जागता उदाहरण है। बोर में गिरे मयंक को बचाने के लिए जहां स्थानीय प्रशासन एवं वाराणसी से बुलाई गई राहत बचाव टीम एन.डी.आर. एफ. के लगभग 150 सदस्य यहां काम कर रहे थे, उनकी कठिन मेहनत के बाद तीसरे दिन रविवार को मयंक आदिवासी की लाश ही बोर से निकल पाई। बोर स्थल पर बचाव कार्य को गति देने के लिए स्थानीय और जिला प्रशासन के लोग भी मौके पर पहुंचे, वहीं राजनेताओं का भी आना-जाना बन रहा। क्षेत्रीय विधायक सांसद सहित विभिन्न दलों के नेता भी घटनास्थल पर पहुंचे। इस घटना में एक प्रश्न उभर कर आया की चाकघाट से मात्र 40 किलोमीटर की दूरी पर प्रयागराज में सेना की टुकड़ी रहती है। संकट के दौरान उसे क्यों नहीं बुलाया गया ? इसके पहले भी जब क्षेत्र में बाढ़ की तबाही ने अपना तांडव शुरू किया तो यहां के तत्कालीन कलेक्टर के द्वारा इलाहाबाद से सेना की मदद ली गई थी जबकि इतने बड़े बोर हादसे में इस बार सेना की मदद नहीं लिया गया। हालांकि प्रशासन ने त्योंथर क्षेत्र के जनपद सीईओ और पीएचसी विभाग के एसडीओ को मुख्यमंत्री के निर्देश पर निलंबित कर दिया है किंतु यह निलंबन ही समस्या का समाधान नहीं है।
त्योंथर क्षेत्र में अनेक बोर करने वाले लोग भारी संख्या में कार्य कर रहे हैं वहीं उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे होने के कारण इस क्षेत्र में उत्तर प्रदेश की ओर से भी कई बोर मशीन आकर यहां रातों-रात बोर करके चली जाती है। जिस बोर में पानी नहीं निकलता उसे खुला ही छोड़ दिया जाता है। कई बार बोर करने वाले बोर तो कर लेते हैं लेकिन उसमें लगाने वाले समर्सिबल पंप आदि की व्यवस्था न कर पाने के कारण उसे खुला ही छोड़ देते हैं जिससे इस प्रकार की दुर्घटना घटित हो जाती है। जिला प्रशासन ने अभी तक उन बोर करने वाले लोगों और घातक रूप से बोर कराने वाले लोगों के विरुद्ध कोई कार्यवाही नहीं की है जबकि यह कार्यवाही होनी चाहिए। जिला प्रशासन राजस्व अमला को बचाने का पूरा प्रयास करता है क्योंकि देखा जाए तो राजस्व विभाग द्वारा कुछ समय पहले ही गिरदावली कराई गई और ऐसे में हल्का पटवारी को हर खेत एवं खेत में लगे बोर और खुले बोर की जानकारी होनी चाहिए थी लेकिन उस पर ध्यान नहीं दिया गया। सुप्रीम कोर्ट के वर्षों पुराने निर्देश पर अचानक नींद से जागे प्रशासन के लोगों ने मात्र तीन दिनों में ही सारी जगह से रिपोर्ट मंगा ली ऐसी स्थिति में यह रिपोर्ट धरातल स्तर पर कहां तक सही हो सकती थी इसका सहज अंदाजा लगाया जा सकता है ।
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यह आंचल कृषि के मामले में उन्नतशील क्षेत्र माना जाता है। यहां सिंचाई के लिए तमसा नदी पर सिंचाई परियोजनाओं की अधिकता के बावजूद भी सहज सुलभ पानी प्राप्त करने के लिए लोग बोरवेल को प्रयोग में लाते हैं इसलिए यहां भारी संख्या में अवैध बोर हो रहा है जिस पर नियमानुसार कार्यवाही होनी चाहिए और अवैध रूप से संचालित बोर मशीन जप्त करके बोर करने वाले लोगों के विरुद्ध भी सख्त कदम उठाया जाना चाहिए। जिससे बोर में बालक गिरने की दुर्घटनाओं पर रोक लगायी जा सके। सुप्रीम कोर्ट एवं प्रशासन के निर्देश के बावजूद भी बोर के मामले में बढ़ती जा रही लापरवाही एवं असफलता का परिचायक है जिस पर भी तुरंत रोक लगाया जाना चाहिए। (रामलखन गुप्त)