भ्र्ष्टाचार का भूत : रीवा में 60 लाख की रिकवरी बन गई 56 हजार की, सीईओ भी लपेटे में

मध्य प्रदेश पंचायत राज अधिनियम 1993 की धारा 89 की सुनवाईयों का असर जनपद अधिकारियों को नहीं हो रहा है। आलम यह है की सीईओ जिला पंचायत सौरभ संजय सोनवणे के द्वारा धारा 89 की सुनवाई में जारी किए जाने वाले आदेशों की तामिली तक सीईओ जनपद नहीं करवा पा रहे हैं। ताजा मामला जिलहंडी ग्राम पंचायत का है जो जनपद पंचायत नईगढ़ी के अंतर्गत आती है जहां ग्रामीण यांत्रिकी सेवा त्यौंथर के अनुविभागीय अधिकारी एसआर प्रजापति के द्वारा दो बार जांच किया जाकर जांच प्रतिवेदन में 68 लाख रुपए की वसूली और अनुशासनात्मक कार्यवाही प्रस्तावित की गई थी। जब मामला मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा सौरभ संजय सोनबड़े की धारा 89 की सुनवाई के समक्ष आया तो पता चला की तीसरी जांच में वसूली को काफी कम किया जाकर मात्र 56 हजार रुपए कर दिया गया। इस प्रकार 100 गुना से भी ज्यादा कम वसूली कम किए जाने पर प्रश्न खड़े हो गए कि आखिर पहले जांच अधिकारी ने नशे की हालत में जांच की थी अथवा दूसरे जांच अधिकारी ने।

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68 लाख की वसूली कैसे 56 हजार रुपए हुई अभी तक बनी हुआ पहेली?
बड़ा सवाल यह भी था कि जब तीसरी बार जांच होकर 56 हजार रुपए की वसूली बनाई गई तो उसमें सहायक यंत्री आरपी मिश्रा एवं कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 01 टीपी गुरुद्वान के हस्ताक्षर थे जबकि टीपी गुरुद्वान की अधिकारीता ही नहीं थी कि संभाग क्रमांक 2 में वह हस्तक्षेप करें। इस विषय पर सीईओ जिला पंचायत सोनवड़े ने भी सवाल खड़ा किया कि जिस जांच प्रतिवेदन में कार्यपालन यंत्री संभाग क्रमांक 2 एसबी रावत के हस्ताक्षर होने चाहिए थे, उसमें आखिर संभाग क्रमांक 01 के कार्यपालन यंत्री टीपी गुरुद्वान के हस्ताक्षर कैसे आ गए? इससे साफ जाहिर हुआ कि इस पूरे फर्जीवाडा और मामले को रफा दफा करने के लिए अवैधानिक तरीके से अपने कार्यक्षेत्र से अलग जाकर कार्यपालन यंत्री संभाग क्रमांक 01 के द्वारा फर्जी तरीके से जांच रिपोर्ट तैयार कराई गई। क्योंकि 100 गुना से अधिक वसूली को कम किया जाना इंजीनियर और जांच अधिकारी पर सीधे प्रश्न खड़ा करता है।

शिकायतकर्ता यदि आपत्ति नहीं करते तो मामला हो चुका था रफादफा
मामले को लेकर शिकायतकर्ताओं सुधाकर सिंह जगदीश सिंह वनस्पति द्विवेदी एवं सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने धारा 89 की सुनवाई के दौरान जब आपत्ति दर्ज की तो मामले की नजाकत को भांपते हुए सीईओ जिला पंचायत ने चौथी जांच टीम गठित की जिसमें ग्रामीण यंत्रकी सेवा संभाग क्रमांक 2 के कार्यपालन यंत्री एसबी रावत वाटरशेड के अधिकारी संजय सिंह और प्रोग्राम ऑफिसर शिव सोनी को जांच दल में रखा गया और 7 दिन के भीतर जांच रिपोर्ट सबमिट करने के आदेश दिए गए। लेकिन यहां भी देखिए की जो जांच रिपोर्ट 7 दिन के अंदर दिया जाना था उसे 7 हफ्तों में भी पूरा नहीं किया जा सका है। जब मामले पर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा से बात की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि अधिकारियों पर लोड ज्यादा है इसलिए जांच में देरी हुई है साथ ही कार्यपालन यंत्री एसबी रावत से पूछा गया तो उन्होंने बताया कि मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत नईगढ़ी को पंचायती अभिलेख उपलब्ध करवाने हेतु तीन बार पत्र जारी किए जा चुके हैं जो उनके ईमेल एड्रेस और साथ में लेखाधिकारी को भी दिया जा चुके हैं लेकिन अब तक अभिलेख उपलब्ध नहीं हो पाए हैं जिसकी वजह से जांच पूरी नहीं की जा सकी है। जब मामले पर आर टी आई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी ने नईगढ़ी जनपद के मुख्य कार्यपालन अधिकारी से बात की तो उनके द्वारा बताया गया कि उन्हें अब तक कोई पत्र ही नहीं मिला है इसलिए अभिलेख उपलब्ध कराए जाने का प्रश्न ही नहीं उठाता।

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07 हफ्ते बाद भी जनपद सीईओ नईगढ़ी को नहीं मिला सीईओ जिला पंचायत का जांच पत्र- जिम्मेदार कौन?
अब बड़ा सवाल यह है कि जहां मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा 7 हफ्ते पहले जांच टीम गठित कर पत्र जारी कर चुके हैं वही कार्यपालन यंत्री संभाग क्रमांक 2 एसबी रावत ने भी तीन पत्र जारी किए हैं और वहीं जनपद पंचायत नईगढ़ी के सीईओ यादव मैडम द्वारा बताया जा रहा है कि उन्हें कोई पत्र ही अभी तक नहीं मिला ऐसे में आखिर जवाबदेही किसकी तय होगी? क्या कार्यालय में अफसरशाही और बाबूगिरी इतनी हावी है कि वरिष्ठ अधिकारी पत्र जारी करते हैं वह संबंधित अधिकारी के पास पहुंच ही नहीं पा रहे हैं? सबसे बड़ा सवाल यह है कि इस पूरे मिलीभगत में नीचे से लेकर ऊपर तक कर्मचारियों और अधिकारियोंका हांथ है और कोई नहीं चाहता की वसूली और दंडात्मक कार्यवाही हो। और इसी प्रकार पंचायती भ्रष्टाचार दिन दूनी रात चौगुनी फलता फूलता रहे।

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