हर साल भारतीय सिनेमा द्वारा न जाने कितनी फिल्में बनाई जाती हैं लेकिन कई सालों में एक बार एक ऐसी फिल्म आती है जो भारतीय सिनेमा के साथ – साथ अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना जाती है। हम बात कर रहे फिल्म पान सिंह तोमर की। क्या जबरदस्त फिल्म है लगता है मानों दर्शक स्वयं फिल्म में अदाकारी कर रहे। क्या बेहतरीन फिल्म है, कहीं बोर नहीं करती। फिल्म सोचने को मजबूर कर देती है। मनोरंजन की भी कोई कमी नहीं। आज इस फिल्म के लगभग 12 साल पूरे हो गए। फिल्म 2 मार्च 2012 को रिलीज़ हुई थी। फिल्म में दिवंगत इरफान खान ने पान सिंह तोमर के किरदार को इस तरह निभाया मानो खुद ही उस हालात से गुजरे हों। इस फिल्म को बनाने वाले तिग्मांशू धूलिया को नज़र अंदाज नहीं किया जा सकता। क्या फिल्म बनाई है तिग्मांशू ने। ज़बरदस्त ! पान सिंह तोमर की कहानी को क्या खूबसूरत अंदाज़ में परदे पर उतारा है।
पहले शॉट से ही ये फिल्म दर्शकों की उत्सुकता को किसी बॉल की तरह आसमान में उछाल देती है और हर गुज़रते लम्हे के साथ वो बॉल ऊपर ही जाती रहती है। जैसे गुरूत्वाकर्षण खत्म हो गया हो। अगले दो घंटे तक दर्शक किसी स्पेस ट्रैवलर की तरह पान सिंह तोमर के यूनिवर्स में फ्री फ्लाइंग करता रहता है। फिल्म खत्म होने के बाद जब रिएलिटी में वापस लैंडिंग होती है तो मन के किसी कोने में ये बात किसी नन्हे बच्चे की तरह उछलती है कि काश ये सफर थोड़ा और चलता। ये बात और है कि हम उस नन्हे बच्चे को इग्नोर भी करते रहते हैं क्योंकि यथार्थ से भी तो हम वाकिफ हैं और यथार्थ यही है कि फिल्म खत्म। वो यात्रा खत्म।
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बात करते हैं इरफान खान की। चंद्रकांता के दौर से इरफान खान को देखा है। अबोध बालक ही था मैं तब लेकिन फिर भी उनका किरदार बद्रीनाथ बहुत पसंद आता था। इरफान खान अपने हर कैरेक्टर पर मेहनत करते थे। कड़ी मेहनत और इस किरदार के लिए तो उन्होंने ऐड़ी-चोटी का ज़ोर लगा दिया था। इरफान खान ने स्टीपलचेज़ की कड़ी ट्रेनिंग ली थी। एक वक्त तो ऐसा भी आया था जब स्टीपलचेज़ का एक दृश्य शूट करने वक्त इरफान के टखने में फ्रैक्चर हो गया था लेकिन मजाल कि ये बंदा किसी बॉडी डबल की डिमांड करता। खुद को ठीक किया और फिर से वो सीन शूट किया। एक किस्सा सुनाता हूं इरफान और तिग्मांशू धूलिया का। आपमें से कुछ लोग जानते ही होंगे कि ये दोनोँ एनएसडी के दिनों से एक – दूसरे को जानते थे। इरफान तिग्मांशू से सीनियर थे। एनएसडी में दोनों के बीच बहुत बढ़िया दोस्ती हो गई। तिग्मांशू ने एक दिन इरफान खान से एनएसडी में कहा था कि मैं एक दिन ऐसी फिल्म बनाऊंगा जो तुम्हें नेशनल अवॉर्ड दिलाएगी। वक्त गुज़रा। इरफान का अभिनय सफर शुरू हुआ। ठीक ठाक फिल्मों में उन्हें काम करने का मौका मिला लेकिन वो काम नहीं मिल पा रहा था जिसकी ख्वाहिश उन्हें थी। इरफान ने कई टीवी शोज़ में काम किया। और टीवी शोज़ में जिस तरह के किरदार उन्हें मिल रहे थे उन्हें वो खर्च चलाने के लिए कर तो रहे थे। लेकिन उनसे खुश नहीं थे। एक दिन यूं ही बातों – बातों में इरफान ने तिग्मांशू धूलिया से कहा कि अगर ऐसे ही रोल्स मिलेंगे तो क्या फायदा एक्टिंग करने का। मैं छोड़ दूंगा ये काम। उस वक्त तिग्मांशू ने इरफान से कहा, “तुम भूल गए मैंने तुमसे कहा था कि मैं तुम्हें नेशनल अवॉर्ड दिलाऊंगा। चलो। कोई फिल्म बनाते हैं।” तब तिग्मांशू धूलिया ने इरफान खान के साथ हासिल बनाई और हासिल से इरफान को उनके करियर का पहला फिल्मफेयर अवॉर्ड मिला और फाइनली पान सिंह तोमर वो फिल्म बनी जिसके लिए इरफान खान को बेस्ट एक्टर का नेशनल फिल्म अवॉर्ड मिला और इस तरह तिग्मांशू धूलिया ने इरफान खान से किया अपना वादा पूरा करके दिखाया।
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बावजूद इन सब के फिल्मफेयर वालों ने उस साल बेस्ट एक्टर का अवॉर्ड रनबीर कपूर को फिल्म बर्फी के लिए दिया जबकी इरफान खान को पान सिंह तोमर के लिए बेस्ट एक्टर क्रिटिक अवॉर्ड दिया था। इसमें कोई शक नहीं कि बर्फी भी बहुत बढ़िया फिल्म है लेकिन मेरी नज़र में पान सिंह तोमर बर्फी से बहुत आगे की फिल्म थी। रनबीर कपूर के टैलेंट पर कोई शक नहीं है। उनके फैंस गलत ना समझें। मगर बर्फी कई जगह बोर करती है। पान सिंह तोमर कहीं भी नहीं बोर करती। पान सिंह तोमर का एक-एक दृश्य। एक-एक किरदार और उन किरदारों को निभाने वाला हर एक कलाकार एकदम फिट और सटीक लगता है। फिल्म निर्माता तिग्मांशू धूलिया और दिवंगत अभिनेता इरफ़ान खान की इस जोड़ी ने दर्शकों को हमेशा अपने साथ बांधे रखा है।
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