विन्ध्य के सतना जिले का मैहर माँ शारदा की नगरी के साथ-साथ संगीत शिरोमणि उस्ताद बाबा अलाउद्दीन खाँ के रूप में भी जाना जाता है। बाबा अलाउद्दीन ने मैहर में वर्षों संगीत साधना की और देश ही नहीं दुनिया के कई बड़े सितार और सरोद बजाने वालों को शिक्षा दी। उनके गुरूकुल में पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अबकर खाँ, शरण रानी अग्रवाल, अन्नपूर्णा देवी जैसे महान कलाकारों को प्रशिक्षण मिला। मैहर में 1918 में बाबा अलाउद्दीन खाँ ने मैहर बैण्ड की स्थापना की। यह दुनिया का पहला शास्त्रीय संगीत पर आधारित ऑर्केस्ट्रा है। इसमें पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ-साथ बाबा अलाउद्दीन खाँ द्वारा इजात नल तरंग जैसे अनूठे वाद्ययंत्रो का उपयोग करके अनूठी धुनें बनाई गईं। मध्यप्रदेश शासन ने मैहर बैण्ड को पुनर्जीवित करने के लिए हाल ही में महत्वपूर्ण निर्णय लिया है। मैहर में शीघ्र ही मैहर बैण्ड गुरूकुल की स्थापना की जाएगी। यह विन्ध्य क्षेत्र को मिली बड़ी सांस्कृतिक सौगात है।
मैहर में स्थापित होने वाले संगीत के इस गुरूकुल में बाबा अलाउद्दीन खाँ द्वारा तैयार की गई 150 दुर्लभ संगीत बंदिशों का प्रशिक्षण दिया जाएगा। प्रशिक्षण में बाबा अलाउद्दीन खाँ के मैहर बैण्ड के ही वाद्ययंत्रों का उपयोग किया जाएगा। गुरूकुल में प्रशिक्षण की अवधि दो वर्ष की होगी। इस अवधि में प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले संगीत के विद्यार्थियों को प्रतिमाह 10 हजार रुपए की छात्रवृत्ति दी जाएगी। गुरूकुल में मैहर बैण्ड से ही जुड़े हुए पाँच संगीतकारों द्वारा प्रशिक्षण दिया जाएगा। इन्हें प्रतिमाह 37 हजार 500 रुपए की सम्मान निधि प्रदान की जाएगी। प्रशिक्षण के प्रारंभिक सत्र में 20 प्रशिक्षणार्थियों को प्रशिक्षण के लिए चुना गया है। गुरूकुल की स्थापना से बाबा अलाउद्दीन खाँ की संगीत परंपरा की विरासत को सहेजा जा सकेगा। मैहर का संगीत महाविद्यालय गुरूकुल के माध्यम से सांस्कृतिक धरोहर को नया जीवन देने का साधन बनेगा।