मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान 10 अगस्त गुरुवार के दिन रीवा जिले के दौरे पर हैं जहां वह बड़ी-बड़ी घोषणाएं करेंगे और एक बार पुनः चुनावी पैंतरों के तहत बड़े बड़े वादे होंगे। लेकिन किसी भी समाज के उत्थान के लिए सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा की दुर्दशा मध्य प्रदेश में देखते ही बनती है। कहने को तो फ्री में मध्यान भोजन, फ्री में पुस्तक, फ्री साइकिल, फ्री स्कॉलरशिप सब कुछ उपलब्ध है। लेकिन सरकारी स्कूलों में शिक्षा का स्तर बद से बदकर होता जा रहा है जिसका नतीजा यह है कि स्कूल पास आउट छात्र कॉलेज में दाखिले और वहां से निकलने तक न तो कंपनियों में काम करने के योग्य रहते न कोई प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा उत्तीर्ण कर पाते। जिसका नतीजा यह है की बेरोजगारी दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। बड़ा सवाल ये है कि क्या अब मध्यप्रदेश में भी दिल्ली की तर्ज पर सरकारी स्कूलों और शिक्षा में सुधार नहीं किया जा सकता? लेकिन फिर समय किसे है यह सब सोचने को क्योंकि यदि सब शिक्षित हो जाएंगे तो फिर राजनीति के शिकार कौन बनेंगे और कैसे वोट बैंक के चक्कर में पड़कर पार्टियों की जय जयकार बुलाते हुए दंगा फसाद करेंगे। यह सब तो तभी संभव है जब लोग अनपढ़ नासमझ और बेरोजगार ही बने रहें और शिक्षा का स्तर बद से बदतर होता जाए। मैकाले की शिक्षा पद्धति का भी यही मानना था कि देश के नागरिकों को जिम्मेदार बनाने की। अपेक्षा सिर्फ बाबू बनाकर और नौकर बनाकर छोड़ दिया जाए।
हिनौती स्कूल भवन जर्जर, बरसात के दिनों में छत से टपकता है पानी, छात्रों का जीवन संकट में
रीवा जिले के गंगेव जनपद अंतर्गत आने वाली शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हिनौती में जहां शिक्षा के स्तर में भी भारी गिरावट देखने को मिलती है वहीं यहां के स्कूल भवन संधारण और रखरखाव में भी गड़बड़ियां और भ्रष्टाचार देखने को मिल रहा है। ताजा मामला पिछले दिनों का है जब सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने एक आरटीआई के सिलसिले में हिनौती स्कूल परिसर का भ्रमण किया और पाया कि अभी हाल ही में हुई बरसात में लगभग स्कूल भवन के सभी कमरों में पानी का पसाव हो गया है और भवनों से पानी टपक रहा है। जब मौके पर बच्चों से बात की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि जब ऊपर से पानी टपकने लगता है और तेज बारिश होने लगती है तो वह कमरे के एक कोने में दुबक कर बैठ जाते हैं। इस विषय पर जब शिक्षकों से बात की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि यह स्थिति काफी समय से है और निर्माण एजेंसी के द्वारा भवनों का गुणवत्तापूर्ण निर्माण नहीं करवाया गया जिसकी वजह से दरारें और क्रैक आने की वजह से पानी का रिसाव हो रहा है।
बिजली, बोर्ड, प्लग, पंखे, तार सभी छतिग्रस्त! टेबल कुर्सियां भी टूटी पड़ी
कमरों के अंदर पहुंच कर देखा गया तो पाया गया की बिजली संबंधित कनेक्शन कई जगह पर डिस्मेंटल हैं जहां न तो उनके प्लग सही हैं, न बोर्ड, और न ही पंखे काम कर रहे हैं। यहां पर वीडियो के माध्यम से भी कुछ पंखों की स्थिति देखी जा सकती है जहां वह टूटे और मुड़े हुए देखे जा सकते हैं। जब इस विषय पर उपस्थित शिक्षकों से बात की गई तो उनके द्वारा बताया गया कि यह सब छात्रों की करतूत है और कुछ हुड़दंग छात्र बिजली कनेक्शन और पंखे वगैरह क्षतिग्रस्त कर देते हैं।
कमरों में टेबल कुर्सी भी इधर-उधर टूटी पड़ी नजर आई जिसके विषय में जानकारी लेने पर पता चला कि टेबल कुर्सियां भी छात्रों द्वारा ही तोड़फोड़ की गई है जिसका अभी तक मेंटेनेंस नहीं हो पाया है।
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यदि नुकसान हुआ तो फिर मेंटेनेंस क्यों नहीं हुआ?
सवाल यह है कि किसी स्कूल भवन परिसर अथवा संस्थान में नुकसान तो समय-समय पर हो जाते हैं लेकिन उसके मेंटेनेंस और व्यवस्था के लिए भी राशि आती है तो फिर आखिर उस राशि का सदुपयोग इस प्रकार के मरम्मत कार्य में क्यों नहीं किया जाता? प्रतिवर्ष स्कूल के रखरखाव और मेंटेनेंस के लिए आने वाली राशि का आखिर कहां उपयोग किया जाता है इस विषय पर न तो प्राचार्य ने कोई जवाब दिया और न ही वहां पर उपस्थित शिक्षकों ने जिससे यह स्पष्ट था कि मेंटेनेंस का काम तो कभी हुआ ही नहीं और सरकार द्वारा और फीस के माध्यम से प्राप्त होने वाली राशि का क्या किया जा रहा है यह स्पष्ट नहीं हो पाया।
हिनौती स्कूल के प्राचार्य गुप्ता ने क्या कहा यह भी जान लीजिए
मामले पर जब हिनौती स्कूल के प्राचार्य श्री गुप्ता से चर्चा की गई तो उनके द्वारा बताया गया की कुछ राशि पिछले वर्ष स्कूल के मेंटेनेंस और रखरखाव के लिए आई थी जिसका स्कूल की पुताई और दरवाजों के लिए उपयोग किया गया है। प्राचार्य गुप्ता ने बताया कि अभी लाखों की राशि की आवश्यकता है तब जाकर स्कूल में पूरी तरह से बिजली फर्नीचर और छत आदि से संबंधित मेंटेनेंस का कार्य पूरा किया जा सकेगा। जब इस विषय पर प्राचार्य से पूछा गया कि क्या उनके अथवा स्कूल प्रशासन के द्वारा कोई लेख किया जाकर वरिष्ठ अधिकारियों कलेक्टर कमिश्नर अथवा जिला शिक्षा अधिकारी को स्कूल की जर्जर हालत के विषय में अवगत कराया गया है और क्या फंडिंग की मांग की गई है? तब प्राचार्य ने इसके विषय में कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दिया जिससे स्पष्ट था की स्वयं प्राचार्य और स्कूल प्रशासन के द्वारा भी स्कूल व्यवस्था में सुधार के लिए कोई सार्थक प्रयास नहीं किए गए।
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जिले और प्रदेश की अधिकतर सरकारी स्कूलों की हालत एक जैसी
सवाल सिर्फ शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हिनौती का ही नहीं है। सवाल इस प्रकार की समस्त सरकारी स्कूलों का है जो जिला रीवा अथवा पूरे मध्यप्रदेश में संचालित हो रही हैं। स्कूलों में कार्य करने वाले शिक्षकों को बाबू और डाक का काम सौंपा जाता है जिसमें वह शिक्षण प्रशिक्षण का काम छोड़कर शेष सभी काम में लगे रहते हैं। यदि गौर से देखा जाए तो शासकीय स्कूलों में अध्ययन और अध्यापन का पूरा जिम्मा आजकल अतिथि शिक्षकों के माथे पर रहता है। चंद हजार महीने पाने वाले अतिथि शिक्षक काम न करें तो स्कूलों में ताला लग जाए। भारी भरकम तनख्वाह पाने वाले शासकीय शिक्षक स्कूलों में मौज कर रहे हैं और न तो उनके आने और न ही जाने का कोई समय निर्धारित रहता और कुछ तो बाबूगिरी करने, डाक को इधर से उधर ले जाने और मीटिंग में ही समय जाया कर रहे हैं तो फिर बड़ा सवाल यह है इतनी मोटी रकम पाकर यह शासकीय शिक्षक आखिर क्या जनता के टैक्स के पैसे की बर्बादी कर रहे हैं। क्या इन शिक्षकों को मात्र बाबू के कार्यों के लिए ही रखा गया है? गौरतलब है कि गिरते हुए शिक्षा के स्तर से यह स्पष्ट होता है की मध्यप्रदेश में स्कूली शिक्षा बद से बदतर होती जा रही है और अपनी राजनीति में मशगूल देश की सरकार और सत्ताधारी पार्टी सिर्फ तुष्टीकरण में पड़ी हुई है। किसके खाते में कितना पैसा भेजना है और वोट कहां से मिलेगी इस पर पार्टियों का ज्यादा ध्यान है। पर देश के कर्णधार बच्चों और उनकी शिक्षा की गुणवत्ता पर किसी का कोई ध्यान नहीं है। (शिवानन्द द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता)
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