रीवा शहर में बच्चों को किताबों की जरूरत पड़ते ही सिर्फ एक नाम सामने आता है अग्रसेन बुक सेलर, दो जगह है दुकान एक रामगोविन्द सिरमौर चौराहे पर दूसरा बेकंट चौराहा बड़ी पुल रोड़ पर। यहां अभिभावकों की लाइन सरकारी गल्ले की दुकान की तरह लगी रहती है। पहले पैसा जमा कर पर्ची लो फिर किताब मिलेगी। रतहरा स्थित गडरिया में संचालित रीवा इंटरनेशनल स्कूल, संजय नगर में इंडियन एक्सीलेंस स्कूल, तुलसी नगर में पचपन एकेडमी, नेहरू नगर में संचालित मारुति हायर सेकेंडरी स्कूल, ज्योति सीनियर सेकेंडरी, बाल भारती, सेंट्रल एकेडमी, राजहंस ज्ञानस्थली, सहित लगभग सभी स्कूलों की किताब सिर्फ एक ही दुकान पर मिलेगी। जिसके पीछे का कारण है कि जिस प्रकाशक की किताब चाहिए वह स्कूल प्रबंधन द्वारा पहले ही बता दिया जाता है। वहीं छात्रों के हिसाब से स्टाक मंगा लिया जाता है। सूत्रों की माने तो सबसे बड़े मुनाफे का खेल उन किताबों को लेकर चलता है जिसको लेकर स्कूल प्रबंधन के दबाव में अभिभावक खरीदने को मजबूर हो जाता है। हालाँकि कुछ लोगों द्वारा बताया गया कि उन किताबों की जिल्द एवं कीमत वाले पेज की छपाई अग्रसेन बुक दुकान मालिक द्वारा ही छपवा कर बदल दिया जाता है। मतलब जो किताब तीन सौ रुपए की रहतीं हैं उसके जिल्द एवं रेट पेज़ पर बदलाव कर 600 या मन चाहे कीमत करने का काम किया जाता है और अभिभावकों को स्कूल के दबाव में किताबें स्कूल द्वारा बताई दुकानों से ही खरीदनी पड़ती हैं। सूत्रों कि माने तो कुछ स्कूल मालिकों का छात्र संख्या पर कमीशन तय है। कुछ स्कूलों में तो हवाई जहाज या टूर खर्च लिया जाता है। अधिकतर स्कूलों में गोपनीय सौदा होने से अभिभावकों की कमर टूट रही है। एक तरफ मनमानी फीस वसूली, फीस यूनिफार्म, जूते, टाई, फिर अलग – अलग तरीके से फीस निर्धारित दुकान से कमीशन की किताब चाहिए। यह इस खेल में ईओडब्ल्यू को संज्ञान में लेकर मामले की जांच कर सत्यापन किया जाना चाहिए। ताकि निकल रहे तथ्यों कि जाँच हो सके और शिक्षा के नाम पर लूट के इस खेल का पर्दाफाश हो सके।
