यदि लिखना ही लक्ष्य है तो ,लिखना, सिर्फ नकल नहीं, देवी देवताओं एवं पवित्र ग्रंथों के प्रति उंगली उठाना नहीं, महापुरुषों के प्रति खीझ मिटाना नहीं, मस्करी नहीं, व्यापार नहीं, गुरुर नहीं, लेखनी कोई जहर नहीं। लिखना समझ है, सच्चाई है, निर्भीकता है, लोकहित है, विचार है, क्रांति है, जज्बा है, संदेश है, समाज के लिए आईना है। लिखने और शेयर करने के बाद कितने लोग लाइक एवं कमेंट करते हैं, इस आधार पर अपनी हैसियत का अंदाजा लगाना चाहिए। जब देखो आला-जाला दायरा विहीन, अधिकार विहीन एवं खोपड़ -भंजन लेखनी से जी ऊब गया, उपेक्षा उपहास एवं बहिष्कार का अंदाजा कमेंट एवं लाइक से सरलतम समझ में आ जाता है।
लिखते वक्त क्या ऐसे लोगों को ,उजड़ती हुई खेती, बंद पड़ी नहरें, शिक्षक बिहीन शालाएं, बीमार अस्पताल, चरमराती अर्थव्यवस्था, कमरतोड़ महंगाई, हावी होती नौकरशाही जो हितग्राहियों के सामने मरकहा बैल जैसे आंख लड़ेरते, रोजमर्रा की जरूरतों का हक तक लीलने को मुंह फारे हैं, मुफ्त की बांटी जा रही रेवड़ी, बेसहारा बुजुर्गों की इलाज, मुर्दे की कफन, मां के गर्भ में गर्भस्थ शिशु, लाचार एवं बेबस पिता के द्वारा बिटिया के हाथ पीले करने के लिए सभी बंदोबस्त में बेतहाशा टैक्स, क्या नजर नहीं आता कि उसके संबंध में दो चार लाइन लिखकर जन जागरण फैलाया जाए एवं शासन प्रशासन के समक्ष समस्याओं को दमदारी से उजागर एवं नाक में दम करके निदान हेतु मजबूर किया जाए।
नि:संदेह लिखने का चलन जोरों पर है, गांव की गलियों से दिल्ली की सड़कों तक, मकान दुकान से लेकर लोकतंत्र के मंदिर तक फैले एक बड़ी संख्या में कुछ नौसिखिया कुछ खिसिआये एवं कुछ अनुभवी भी लिखने को आतुर हैं, लेकिन लकीर की फकीरी है, अंधे की लाठी है, किसके खोपड़ी बज जाए, ठिकाना नहीं। इसी अंधी दौड़ में शामिल भला तराई भी कैसे पीछे रहे।
यदा-कदा जवा ब्लॉक v/s त्यौंथर ब्लॉक के बीच फूहड़ पोस्ट का जंगी मुकाबला
जवा ब्लॉक से सत्ताधारी दल के एक सदस्य जब लिखते हैं तो लगता है कि, हेरय भैंस बतावय घोड़ी। त्योंथर ब्लाक के विपक्षी दल के एक राजनैतिक कार्यकर्ता लिखते हैं तो लगता है कि, खिसियान बिलारी खंभा नोचे। कुछ अन्य पोस्ट शेयर करने वालों का तांता लगा है,लगता है कि जिला कलेक्टर द्वारा उनके नाम पावर ट्रांसफर कर दिया गया है, प्रशासनिक अमले द्वारा सब कुछ उन्हीं को प्रभार में दे दिया गया। कुछ लोग देवी-देवताओं महापुरुषों एवं पवित्र ग्रंथों के प्रति भी कपार कूंचते हैं, राजनीतिक प्रतिनिधियों को क्या नहीं लगता कि आपकी यह लेखनी व्हाट्सएप महाविद्यालय का कोई देहाती विद्यार्थी कॉपी पेस्ट कर संभाल कर रखें और जब आप चुनावी जंग में सर्वहारा वर्ग की देहरी पर, समर्थन की अपेक्षा, हाथ जोड़े, आरजू मिन्नत, मान मनौबल। उसी दौरान आपको पहचान कर वही देहाती बोंग से नहीं वल्कि वाणी से ही प्रहार करते हुए खदेड़ ले तो कहां मुंह लुकवाऐंगे, लिखने के पहले इसकी भी फिकर किए हैं क्या ?
अरे! जिसे चाहें आदर्श मान लें, जिस मानव को चाहें देवता मान लें, कौन रोक रहा है। यदि लगता है कि पवित्र ग्रंथों में किसी जाति धर्म का अपमान है, तो स्वयं ऐसा ग्रंथ लिख लें जिसमें खुद की जाति – धर्म का महिमामंडन हो, जिस जाति धर्म संप्रदाय में जन्म लिए यदि उसमें अपेक्षाकृत पूछ-परख कम हो तो बंदनीय जाति धर्म एवं संप्रदाय में परिवर्तन कर लेने की स्वतंत्रता कौन छीन रहा है, लेखनी कौन पकड़ रहा है ?
नया तीर्थराज प्रयाग बना लें, स्वर्ग से नई गंगा उतार लें जिसका पवित्र जल कभी खराब न हो, रामराज्य स्थापित करलें, जिसका ध्येय वाक्य है, जियो और जीने दो। शास्त्र सम्मत एवं परंपरागत भोज भंडारा को नकार, नया शास्त्र लिखें नई परंपरा डालें उसमें बर्थडे , मैरिज एनिवर्सरी, हल्दी रस्म के भोज एवं भंडारा सहित मांगलिक कार्यों में महुआ महरानी को गले लगाऐं ताकि फिजूलखर्ची में लगाम लग सके।
कौन रोक रहा, बाधक कौन ?
कौन रोक रहा, बाधक कौन है, रुकावट डालने वालों का नाम करें न उजागर ? कौड़ी के मोहताज हैं तो, करोड़ों के कारोबारी हैं तो, गॉठ से न निकालें एक पाई, न विदाई, न दक्षिणा, कौन फैला रहा है झोली एवं आंचल, ऐसा करने वालों को मुंह तोड़ जवाब दें। न देओ किसी को प्रसाद की एक पुड़िया कौन गिड़गिड़ा रहा है। ग्रंथों को चैलेंज करने वाले, जरा शर्म करें, पंचांग में सूर्योदय और सूर्यास्त का, सूर्य ग्रहण एवं चंद्र ग्रहण का जो समय दर्ज रहता है, क्या पंचांग लिखने वाले सूर्य और चंद्रमा के पास बैठकर विमर्श करते हैं, उनसे उदय अस्त और ग्रहण का समय निर्धारित करते हैं, तब लिखते हैं ? यह भी कह सकते हैं कि खगोल विज्ञान एवं अक्षांश देशांतर रेखाएं भी समय निर्धारित करने में सहायक हैं किंतु जब विज्ञान का उदय नहीं हुआ था उस समय से पंडितों ज्ञानियों के एक समूह की सहमति एवं ज्योतिष गणित से निर्धारित समय में, तनिक अंतर नहीं आता था। यह सटीक प्रमाणीकरण क्या ऐसा लिखने वालों की दिनचर्या में नजर नहीं आता। उदय अस्त एवं ग्रहण 1 सेकंड भी आगे पीछे नहीं होता। क्या आंखों में रतौंधी है ?
यदि उल्लू को दिन में नहीं दिखाई देता तो, इसमें सूर्य का क्या दोष ? यदि पपीहा को स्वाति नक्षत्र के अलावा वर्षा की बूंदे नहीं दिखाई देती तो इसमें बादलों का क्या दोष ? यदि पूर्वजों की परवरिश, काली करतूत नजर आती हैं, तो आंखों का क्या दोष ? महापुरुषों के पद चिन्ह, शास्त्रीय प्रमाण एवं अपनी पैतृक विरासत का दम, क्या कम पड़ रहा है कि हम प्राप्त उपलब्धियों का समुचित उपयोग कर अपना सामाजिक सरोकार एवं सियासत का ठिकाना नहीं बना सकेंगे, अपनी पहचान की नई मंजिल प्राप्त करने में कामयाब न हो सकेंगे। सुर्खियां बटोरने के लिए क्या ऊल जलूल की कलम ही पर्याप्त है, क्या जनहित का जंग सुर्खियां नहीं दे सकेगा, ज्ञान की दो चार लाइन, सामान्य ज्ञान के प्रश्नोत्तर दुर्लभ है।
हरे भरे बाग में बहेलिया एवं सामान्य जन, चहचहाते हुए पक्षियों के झुंड में उनकी प्रजाति की पहचान कर लेते हैं, जंगलों में विचरण करते जंगली एवं पालतू जानवरों की आवाज से उनकी पहचान कर लेते हैं। चरवाहे के साथ ही अन्य व्यक्ति भी कर लेते हैं, हम मानव हैं, दुराग्रह प्रेरित लेखनी की चोट किसे आहत करेगी इसका आभास नहीं कर पाते। चोट कभी चोट से नहीं समाप्त होगी, उसके लिए समुचित इलाज चाहिए, कीचड़ कभी कीचड़ से साफ नहीं होगा उसे स्वच्छ जल चाहिए। फसल में ओलावृष्टि हुई होगी, क्या जन समस्याओं में भी पाथर पड़ गया? क्या इन तमाम समस्याओं के लिए अक्षर, शब्द, वाक्य एवं पंक्तियों का भी अकाल है ?
यदि ये सब दुर्लभ है तो, लिखो खूब लिखो, जितना बने उतना लिखो। राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर जो नेहरू जी के कट्टर समर्थक थे उनके जीवन पर आधारित लोक देव नेहरू नामक पुस्तक लिखी, साथ ही भारत और चीन के युद्ध में नेहरू जी के नीति की आलोचना भी की। आप भी लिखो लोक देव अपने आदर्श का नाम, अपने नेता का नाम जिसका चाहो उसका नाम, कहां रुकावट है ?
मोहनदास करमचंद गांधी को राष्ट्रपिता, महात्मा एवं बापू कहा गया, बना लें अपने मनमाफिक उनके बराबर का महामानव, अरमान अधूरा क्यों ?
राग, द्वेष, छल, कपट, ईर्ष्या एवं वैमनुष्यता, मानसिक दुर्बलता के प्रमुख कारण है। उस आधार पर चलने वाली लेखनी का कब्ज बेइलाज है, उल्टी करते- करते आंत सहित उल्टी कर देगें किंतु मानसिक दुर्बलता का यह मनोरोगी कब्ज, बेइलाज है, बेइलाज रहेगा, इस रोग में हाजमोला एवं त्रिफला भी सूट नहीं करेगा।
जब देश गुलामी एवं शिक्षा के अभाव से जूझ रहा था, उस दौरान सामाजिक समरसता का बड़ा प्रभाव था। विद्यालय सच्चा लोकतंत्र है, लघु समाज है, लिखने वाले कोई हो उसी लोकतंत्र की उपज है, किंतु वर्तमान पीढ़ी की यह शैक्षिक उपलब्धता एवं जागरूकता तो आई है, किंतु जातीयता का जहर एवं धार्मिक उन्माद का कारण, लगता है शिक्षा ही बनी। सुधरे भी और संभले भी अन्यथा आने वाली पीढ़ी के लिए जहर एवं उन्माद का बोया हुआ बीज, आने वाले कल को, विशालकाय पौधे का आकार लेगा, जिसकी चपेट में समाज का सर्वहारा वर्ग घुन की तरह पिसेगा। विनम्र अपेक्षा है कि वर्तमान व्यापक पैमाने पर, कुतर्क की छिड़ी बहस, प्रबुद्ध एवं युवा समाज के लिए भटगांव है, अलगाव है, दिशाहीनता के साथ बेवजह मूल्यवान समय की बर्बादी है। अच्छा सोचें,अच्छा लिखें, अच्छे मार्ग का अनुसरण करें, यही नेतृत्व है, सामाजिक सरोकार है। समाज, मानसिक दुर्बलता रहित हो, सामाजिक वातावरण खुशनुमा हो, उत्सवी हो, इसी से समाज एवं देश के सुनहरे भविष्य की परिकल्पना की जा सकती है। (शिवबालक पांडेय, जवा रीवा)