चाकघाट। त्योंथर की कोलगढ़ी एक लंबे समय के बाद फिर से नई अंगड़ाई के साथ कोल आदिवासी लोगों की गौरवगाथा को स्थायी धरोहर के रूप में आम आवाम के सामने आने जा रही है। इस कोलगढ़ी के जीर्णोद्धार का भूमि पूजन करने मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह जी चौहान आज 9 जून को दोपहर 1 बजे त्योंथर आ रहे हैं। आदिवासी समुदाय के लिए यह एक महत्वपूर्ण क्षण होगा जब उनकी गौरव गाथा को प्रस्तुत करने वाले कोलगढ़ी को नए भव्य स्वरूप में उन्हें देखने का अवसर मिलेगा। एक लंबे समय से जिला पुरातत्व संघ के सदस्य राम लखन गुप्त इस कोलगढ़ी को संरक्षित करने की मांग उठाते रहे हैं। जिला पुरातत्व संघ के माध्यम से भी कई बार इसके संरक्षण का प्रस्ताव भेजा गया। माननीय शिवराज सिंह जी चौहान प्रदेश में जनजातीय लोगों की संस्कृत एवं उनकी विरासत को जीवित जागृत बनाए रखने के लिए कार्य कर रहे हैं इस दिशा में किए गए प्रयास का ही नतीजा रहा की 13 वर्ष पूर्व 9 जून 2010 को त्योंथर तहसील के ग्राम डभौरा में आयोजित आदिवासी सम्मेलन में उन्होंने इस कोलगढी को राज्य शासन द्वारा संरक्षित स्मारक घोषित किए जाने के घोषणा की थी। इसके जीर्णोद्धार की चर्चा होती रही और आज वह दिन आ गया जब प्रदेश के यशस्वी मुख्यमंत्री जी पुनरुद्धार की आधारशिला रखने आ रहे हैं।
त्येंथर क्षेत्र में यत्र-तत्र बिखरी पुरा सम्पदा जिसमें शैलचित्र, पाषाण की खण्डित प्राचीन प्रतिमाएँ, गढ़ी, तालाब, एवं टीले आदि प्रमुख हैं। यहां की पुरा सम्पदा निर्विवाद रूप से यह सिद्ध करती है कि यह अंचल आदिकाल से ही मानव सभ्यता एवं संस्कृतिक धरोहर का केन्द्र रहा है। इस अंचल में आदिवासी राजाओं के शासन होने की बात इतिहास के पटल पर आने लगी । यह क्षेत्र महाजनपदीय काल में चेदि राजवंश से भी शासित रही है। विन्ध्य पर्वत की तलहटी एवं तमसा नदी के तट पर बनी तहसील मुख्यालय त्योंथर की कोलगढ़ी जिसे मध्य प्रदेश शासन के वर्तमान मुख्यमन्त्री शिवराज सिंह ने संरक्षित स्मारक घोषित किया तथा इसके जीर्णोद्धार के लिए के लिए 3 करोड़ से अधिक थीराशि मंजूर की है इस कोलगाढी पुनर्निर्माण एवं सौन्दर्य कार्य के शुभारंभ हेतु मुख्यमंत्री माननीय शिवराज सिंह जी चौहान आज त्योंथर पधार रहे हैं।अतीत के आईने में देखें तो त्योंथर की यह कोलगढ़ी इस बात को सिद्ध करती है कि यहाँ कभी आदिवासी राजाओं ने राज्य किया था।
यहाँ की बिखारी पुरासम्पदा आज भी समकालीन वैभव को प्रदर्शित करने में सक्षम है। इस अंचल में विस्तृत तालाबों की श्रृंखला नगर को मनोरम एवं जीवनोपयोगी बनाते थे। जिनके अस्तित्व आज भी देखे जा सकते हैं। जिला पुरातत्व संघ के सदस्य एवं वरिष्ठ आंचलिक पत्रकार रामलखन गुप्त ने इस अंचल के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा करके अनेक ऐसे साक्ष्यों का अवलोकन किया है जो इस अंचल की वैभवशाली प्रचीन सभ्यता की पुष्टि में सहायक हैं।
त्योंथर नगर की प्रचीन वस्ती एक टीले पर स्थित है। यह टीला त्योंथर नगर पंचायत क्षेत्र की सामान्य धरातल से लगभग 10 मीटर उँचा है। इसी टीले पर बनी कोलगढ़ी जो पहले स्थानीय प्रशासन के अधीन थी अब राज्य शासन द्वारा कोलगढ़ी के रूप में संरक्षित कर दी गई है। प्रस्तर निर्मित पुर्वाभिमुखी यह कोलगढ़ी दो मंजिला है। यदि चारों कोनो पर स्थित बुर्ज को भी जोड़ ले तो इसे तीन मंजिला कहा जा सकता है। समाचार पत्रों के माध्यम एवं जिला पुरातत्व संध की बैठक में इस लेखक की माँग पर 5 दिसम्बर 1999 को इस गढ़ी का पुरातात्विक सर्वेक्षण जिला पुरातत्व संध रीवा के तत्कालीन संग्रहाध्यक्ष एम.के.महेश्वरी पुरातत्ववेत्ता आर.आर. शर्मा, बी.एस. तिवारी एवं संघ के सदस्य रामलखन गुप्त (पत्रकार) आदि की एक टीम के द्वारा हुआ था। टीम के सर्वेक्षण में यह पाया गया कि वर्तमान गढ़ी की निर्माण अवधि 19वीं शताब्दी की है। गढ़ी के पृष्ठ भाग पर जो प्रस्तर लगा है वह किसी मंन्दिर के प्रस्तर प्रतीत होते हैं । इसी मंदिर के समीप दिकपाल प्रतिमा, सरस्वती प्रतिमा, महिषासुर मर्दिनी प्रतिमा ,शैव स्तम्भ एवं सूर्यनारायण आदि की खण्डित प्रतिमाएँ दिखी हैं, जो 11वीं शताब्दी की हैं। त्योंथर की कोलगढ़ी का वर्तमान में जो स्वरूप दिख रहा है वह (बघेल शासनकाल में) बहुतकुछ संभव है कि वेनवंशी राजाओं के द्वारा उसी स्थान पर एवं उसी गढ़ी का पुर्ननिर्माण कराया गया हो जो पहले आदिवासी राजाओं की प्रचीन गढ़ी थी। त्योंथर की कोलगढ़ी समय समय पर समकालीन नरेशों द्वारा मरम्मत करायी जाती रही होगी जिसमें अंतिम स्वरूप पुरातत्ववेत्ता के अनुसार 19वीं की दिखती है। त्योंथर में स्थित कोलगढ़ी निश्चित रूप से यहाँ पर आदिवासी राजा की शासन व्यवस्था की उपस्थिति को सिद्ध करता है। समकालीन यहाँ के आदिवासी राजा निश्चित रूप से शक्ति सम्पन्न रहे होंगे। इस अंचल के नजदीक बहने वाली गंगा नदी के समीप रहने वाले निषाद राज नें चित्रकूट की ओर जाने वाली चक्रवर्ती अयोध्या नरेश की सेना जो भरत की अगुआई में गंगा पार होना चाहती थी उस सेना को चुनौती देने के लिए अपने योद्धाओं से कहा था – ‘‘बजवा दो रण का नक्कारा , होने दो गंगा पार नहीं‘‘
इस अंचल में मिल रहे शैल चित्रों से यह प्रतीत होता है कि यहाँ आदिवासी राजा रहे हैं। इस लेखक द्वारा मई 2002 में त्योंथर अंचल के पूर्वी भाग में स्थित ढ़खरा जंगल में घोड़दर पहाड़ के शैलचित्रों का अवलोकन किया था । वहाँ 100 से अधिक शैल चित्र बने हैं जो लाल गेरू रंग के हैं। इन शैलचित्रों में एक शैल चित्र ऐसा है जिसमें राजा और उसकी सेना का वर्णन होता है। चित्र में दिखता है कि एक मानव के सिर पर मुकुट लगा है संभव है कि वह समकालीन राजा या कबीले का सरदार हो। इसी राजा के साथ कतारबद्ध ऐसे लोग (सैनिक) लोग हैं जो तलवार जैसा हथियार लिए हुए है। चित्र में द्वारपाल भी दिखाया गया है जो हाथ में भाला लिए हुए है। द्वारपाल भाला को क्रास की स्थिति में रखकर द्वार सुरक्षा में तैनात प्रतीत होते है। ढ़खरा जंगल के भित्ति चित्र को यदि साक्ष्य मानें तो यहाँ आदिवासी राजा का राज्य मानव सभ्यता के विकास के साथ ही प्रारम्भ हो गया था।
जनश्रुति एवं साहित्यिक साक्ष से यह पता चलता है कि यहाँ आदिवासी राजा के बाद बेनवंशी राजा गंगा तट झूंसी (प्रयाग) से त्योंथर आए और त्योंथर में अपनी राजधानी बनाया। त्योंथर में राजधानी बनाने एवं त्योंथर की गढ़ी को लेकर एक दन्त कथा यह भी कही जाती है कि त्योंथर की कोलगढ़ी में आदिवासी राजा का अधिकार था। झूंसी से बेदखल होकर आए वेनवंशी राजा को राज्य स्थापना एवं सुरक्षा की दृष्टि से किले की आवश्यकता थी किन्तु वे आदिवासियों को युद्ध में सीधे पराजित करने की स्थिति में नही थे। ऐसी स्थिति में उन्होने छलबल का सहारा लेते हुए गढ़ी में निवासरत आदिवासी राजा की कन्या से विवाह का प्रस्ताव रखा। वेनवंशी राजा की सेना बराती के वेश में किले में प्रवेश कर गई, और बरात के रास-रंग में मदहोश आदिवासी राजा को मारकर किले पर कब्जा कर लिया गया। इतिहासकार प्रो0बी.एल. पाण्डेय की माने तो यहाँ ईसा पूर्व छठीं शताब्दी के समकक्ष लगभग ढ़ाई हजार वर्ष पहले कोल राजाओं का विस्तार था। त्योंथर एवं सितलहा में कोल राजाओं ने गढ़ी बनवायी थी। समाचार पत्र में प्रकाशित डॉ0 महेश सिेह के एक लेख को माने तो यहाँ का अंतिम कोल राजा नागल कोल था। जिसने यहाँ 10 से 12 वर्ष तक राज्य किया था।
पुस्तक ‘विन्ध्य क्षेत्र का इतिहास’ ले0 प्रो.राधेशरण के अनुसार त्योंथर में वेणुवंशियो के पूर्व कोलों का राज्य था। वेणुवंशी राजा गनपत शाह ने त्योंथर में कोलों की गढ़ी पर आकर अपना शासन किया। विभिन्न साक्षों से यह स्पष्ट होता है कि त्योंथर क्षेत्र में कोलों का राज्य था जो समकालीन आदिवासी राजकीय संस्कृति के विकास में सहायक था। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह जी चौहान सहित उनके मंत्रिमंडल के अनेक सदस्यों के आगमन विधानसभा अध्यक्ष मनीष गौतम जी के अध्यक्षता में आयोजित हो रहे कोलगढी जीर्णोद्धार निश्चित रूप से इस अंचल के आदिवासी समुदाय के लोगों को अपनी संस्कृति विरासत के प्रति गर्व उपस्थित कराएगा तथा माननीय शिवराज सिंह जी चौहान की उदार योजनाओं से उन्हें आत्मिक लगाओ भी होगा और वे अपने गौरव गरिमा को जानने समझने के लिए आगे बढ़ेगे। (रामलखन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार)