मध्यप्रदेश में ग्रामीण यांत्रिकी सेवा और पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग भ्रष्टाचार का केंद्र बिंदु बन चुका है। यहां अक्षम अयोग्य इंजीनियरों को बैठाकर उनसे मन मुताबिक काम करवाया जा रहा है और भ्रष्टाचार को खुलेआम बढ़ावा दिया जा रहा है। ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग रीवा में कई ऐसे मामले सामने आ चुके हैं जिसके बाद पूरी प्रशासनिक कार्यप्रणाली को प्रश्न के दायरे में खड़ा कर दिया है। आखिर बड़ा सवाल यह है कि किन नियमों के तहत सहायक यंत्री और उपयंत्रीयों की पदस्थापना की जा रही है और फिर उनसे किस प्रकार एक संभाग से हटकर दूसरे संभाग से काम लिया जा रहा है? उनका वेतन और सेवा पुस्तिका किसी और संभाग में संधारित्र रहता है जबकि यह कार्य किसी अन्य संभाग में कर रहे होते हैं। इससे होता यह है कि जब कभी किसी कार्य की जांच की जाती है तो यह देखा जाता है कि उस कर्मचारी की सेवा पुस्तिका और वेतन कहां से मिल रहा था अब जाहिर है जहां से वेतन मिल रहा था और सेवा पुस्तिका थी वहीं पर उसकी पदस्थापना के दौरान कार्य भी लिया जा रहा होगा लेकिन होता ऐसा नहीं है और इन इंजीनियरों से किसी अन्य संभाग से काम लिया जाता है और ऐसे में भ्रष्टाचार के मामलों में उनकी भूमिका तय कर पाना काफी मुश्किल हो जाता है। रीवा संभाग के जाने-माने भ्रष्ट इंजीनियरों को कुछ ऐसे ही कार्यों में लगाया जाता है और यह कार्य वरिष्ठ अधिकारियों के संरक्षण में किया जा रहा है। कमीशनखोरी के खेल में पंचायती कार्यों का फर्जी गलत मूल्यांकन और सत्यापन किया जाकर पंचायती कार्यों में बंदरबांट किया जा रहा है और इसमें इंजीनियरों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण रहती है।
रिटायर्ड सहायक यंत्री संतोष तिवारी ने भी किया था बड़ा खेला
मजेदार बात यह है कि अभी पिछले वर्ष रिटायर हुए ग्रामीण यांत्रिकी सेवा रीवा के सहायक यंत्री संतोष तिवारी ने अपने कार्यकाल के दौरान वर्ष 2016-17 में संचई प्रभाव से कमिश्नर रीवा संभाग द्वारा रोकी गई इनकी वेतन वृद्धि का भी लाभ प्राप्त कर लिया और अपनी सेवा पुस्तिका में भी दर्ज नहीं होने दिया। अब आप सभी को ताजुब हो रहा होगा कि यह सब कैसे हुआ? इसमें संतोष तिवारी के साथ-साथ कमिश्नर रीवा संभाग कार्यालय में पदस्थ रहे कर्मचारियों की भी भूमिका महत्वपूर्ण रही है लेकिन कमिश्नर रीवा संभाग अनिल सुचारी को शिकायत दिए जाने के बावजूद भी मात्र खाली पत्राचार ही कार्यालय दर कार्यालय किए गए लेकिन कोई सार्थक कार्यवाही नहीं हुई और जिन कमिश्नर के आदेश के बाद वेतन वृद्धि रोकी गई थी उनके संज्ञान में मामला लाने के बाद भी कमिश्नर मात्र हांथ पर हांथ धरे बैठे रहे और असहाय बने कुछ कर नही पाए। इससे साफ जाहिर है कि इस पूरे भ्रष्टाचार में कमिश्नर कार्यालय का रोल भी काफी अहम रहा है।
अमूल्य खरे एक दूसरा उदाहरण जिसने कोर्ट और नियम कायदों को ही विक्रम बेताल के भूत की तरह उल्टा लटका दिया
इसी प्रकार जवा में कुछ समय के लिए अवैतनिक रूप से पदस्थ रहे सहायक यंत्री अमूल्य खरे का भी एक महत्वपूर्ण उदाहरण देना वाजिब रहेगा। मामला ऐसा है की 2013 में तत्कालीन कलेक्टर एस एन रूपला द्वारा पंचायती कार्यों में अनियमितता के चलते खरे को बर्खास्त कर दिया गया जिसके बाद हाई कोर्ट जाकर मात्र 31 मार्च 2013 तक के लिए खरे द्वारा स्थगन प्राप्त किया गया परंतु जिला पंचायत रीवा के तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी से सांठगांठ कर हाईकोर्ट में समय सीमा पर जवाब प्रस्तुत नहीं कराया गया जिसके कारण इनका स्थगन निरस्त नहीं हुआ लेकिन गौरतलब है कि भले ही स्थगन निरस्त करवाया न गया हो लेकिन कोर्ट का स्थगन बेहद स्पष्ट तौर पर मात 30 मार्च 2013 तक के लिए ही था और इस स्थिति में शिकायत के बाद पहले तो यह वेतन के साथ काम करते रहे और बाद में इन्हे अवैतनिक कर दिया गया। अब बड़ा सवाल यह है कि किस नियम के आधार पर इनको वेतन दिया जा रहा था और फिर किस दोष के आधार पर इनको अचानक अवैतनिक किया गया इसका जवाब न तो तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारियों के पास था न ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के कार्यपालन यंत्री और अधीक्षण यंत्री के पास और न ही इसका जवाब अभी तक संभाग आयुक्त रीवा दे पाए हैं। ऐसे में जाहिर है कि निरंतर रीवा संभाग में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के पीछे रीवा संभागीय कार्यालय, संभागायुक्त, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा, कलेक्टर कार्यालय जिला रीवा और वरिष्ठ अधीक्षण यंत्री एवं कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के अधिकारियों की भूमिका काफी अहम रही है।
इंतजार खत्म लीजिए अब एक और मामला केपी मिश्रा कार्य कहीं और और वेतन कहीं और
अब एक और मजेदार मामला सामने आया है जिसमें सिरमौर में पदस्थ रहे सहायक यंत्री केपी मिश्रा की मूल पदस्थापन जब हनुमना में किया जाकर ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग क्रमांक 2 में सेवा पुस्तिका संधारित्र की गई और वहीं से इनको पेमेंट भी दी जाती रही है लेकिन भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने और कमीशनखोरी के खेल को खेलने के लिए तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी एवं तत्कालीन कार्यपालन यंत्रीयों ग्रामीण यांत्रिकी सेवा के सहयोग से इन्हें संभाग क्रमांक 1 में पदस्थापित कर दिया गया। अब जब 31 जुलाई 2023 को यह रिटायर हो रहे हैं ऐसे में एक और खेला हो गया है जिसमें अभी वर्तमान के कार्यपालन यंत्री संभाग क्रमांक 2 एसबी रावत ने इन्हें संभाग क्रमांक 1 के लिए भार मुक्त कर दिया है। अब बड़ा सवाल यह है कि आखिर सहायक यंत्री केपी मिश्रा संभाग क्रमांक 2 में किस आदेश के तहत कार्य कर रहे थे और कैसे इनकी सेवा पुस्तिका और पेमेंट संभाग क्रमांक 2 से दी जा रही थी और फिर किस आधार पर केपी मिश्रा संभाग क्रमांक 2 में सिरमौर जनपद में पिछले 3 वर्षों से पदस्थ रहे?
यह सब कुछ उदाहरण मात्र हैं यदि अल्लादीन का पिटारा खोला जाए तो ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग रीवा और संपूर्ण रीवा संभाग में इसी प्रकार के मामले आपको देखने को मिलेंगे जहां भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने के लिए और भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की शह से इसी प्रकार इंजीनियरों को कहीं पदस्थ किया गया है और काम उनसे कहीं अन्यत्र से लिया जा रहा है और ऐसे में जब कार्यों की जांच होती है और उनका दोष सिद्ध होता है तो यह पता नहीं चल पाता कि किस इंजीनियर के द्वारा सत्यापन और मूल्यांकन किया गया है और कहां पर वह पदस्थ रहा है?
मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी ने अपने आरटीआई के माध्यम से प्राप्त जानकारियों से संभागायुक्त रीवा अनिल सुचारी, मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत संजय सौरव सोनवणे एवं कलेक्टर रीवा सहित कार्यपालन यंत्री संभाग क्रमांक 1 एवं 2 को लिखित शिकायत दी है और तत्काल सहायक यंत्री केपी मिश्रा के विरुद्ध कार्यवाही करने पेंशन रोकने और अधिकारियों की भूमिका तय कर उनके ऊपर एफआईआर दर्ज किए जाने की मांग की है। ( शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता एवं आरटीआई एक्टिविस्ट )
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