आने वाले नवम्बर – दिसंबर में मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव होने के कयाश लगाए जा रहे हैं। लेकिन जैसे – जैसे चुनाव नजदीक आ रहा उन विधायकों की टेंशन जरूर बढ़ गई होगी, जिनका पार्टी सर्वे रिपोर्ट में परफॉर्मेंस खराब निकला है। सूत्रों की माने तो भाजपा के आंतरिक सर्वे रिपोर्ट में कई विधायकों को डेंजर जोन में बताया गया है। इनमें से कुछ विधायक तो वो हैं जो पाला बदलकर भाजपा में शामिल हुए थे। अब ऐसे में अगर गुजरात चुनाव को आधार माने तो भाजपा की रणनीति विधानसभा चुनाव में केवल जीताऊ विधायकों को ही टिकट देने की हो सकती है। जिसकी वजह से कांग्रेस, सपा, बसपा से आये विधायकों के भी टिकट कट सकते हैं, ऐसा अंदाजा लगाया जा रहा है।
क्या भंवर में फंसे हैं टिकट
मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव जीतने के लिए भाजपा अब विधायकों के कामकाज की कैफियत ले रही है, मैदानी तैयारी में जुटी भाजपा ने अपने सभी मंत्री-विधायकों को अपने विधानसभा क्षेत्रों पर फोकस करने को तो कह दिया है लेकिन उपचुनाव वाली सभी 32 सीटों पर इस बार टिकटों का मामला अनिश्चय के भंवर में है। बताया जाता है कि सत्ता संगठन ने उन्हें एक बार ही टिकट की गारंटी दी थी लेकिन अब सर्वे रिपोर्ट, जीत की संभावना के साथ और भी कई फैक्टर निर्णायक होंगे।
कई विधायकों की स्थिति चिंताजनक
इनमें से 22 विधानसभा सीटें ऐसी हैं जो सियासी उथल-पुथल के दौरान कांग्रेसी विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई थीं। आधा दर्जन सीटें विधायकों के निधन से खाली हुई और 4 अन्य भी कांग्रेस की विधायकी छोड़कर भाजपा के टिकट पर उपचुनाव जीत गए। भाजपा के आंतरिक सर्वे, पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव के दौरान जो फीडबैक मिला है l उसमें पार्टी के आधा सैकड़ा से अधिक विधायकों की स्थिति बेहद चिंताजनक है।
पुराने नेता बनाम बागी विधायक
ख़ास बात यह है की इन सीटों में चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस से आये विधायक और पुराने भाजपा नेताओं के बीच तकरार बनी हुई है। ऐसे में उपचुनाव वाली 32 में से ज्यादातर सीटों पर टिकट को लेकर सबसे ज्यादा जद्दोजहद की स्थिति बन सकती है क्योंकि कई सीटों पर पुराने नेता संकेत दे चुके हैं। हालिया निकाय चुनाव में भी खुलेआम बगावत के दृश्य सामने आ चुके हैं। शायद भाजपा भी यह बात जानती है कि कार्यकर्ताओं पर ज्यादा दबाव डालना ठीक नहीं होगा। यही वजह है कि राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री शिवप्रकाश, प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और क्षेत्रीय संगठन महामंत्री अजय जामवाल ने सभी 65 हजार बूथों को मजबूत और 10 फीसदी वोट शेयर बढ़ाने की मुहिम शुरू की है। हालांकि कांग्रेस से आये विधायको के टिकट पर संकट को लेकर कांग्रेस कटाक्ष कर रही है।
11 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा
सत्ता पलट के बाद उपचुनाव में 11 सीटें कांग्रेस जीती थी। जिसमें ग्वालियर, डबरा, बमोरी, सुरखी, सांची, सांवेर, सुमावली, मुरैना, दिमनी, अंबाह, मेहगांव, गोहद, ग्वालियर पूर्व, भांडेर, करैरा, पोहरी, अशोकनगर, मुंगावली, अनूपपुर, हाटपिपल्या, बदनावर, सुवासरा, नेपानगर, मांधाता एवं दमोह है। इनमें से 22 सीटें सिंधिया के समर्थन में खाली हुई और 3 अन्य बाद में रिक्त हुई। जौरा, आगर, ब्यावरा, जोबट, रैगांव और पृथ्वीपुर सीटों पर विधायकों के निधन होने से उपचुनाव की नौबत आई। मतलब 32 में से 11 सीटों पर कांग्रेस काबिज हुई।
कमजोर विधायकों पर टिकट का संकट
भाजपा का पूरा फोकस अधिक से अधिक सीटें जीतकर सत्ता पर बने रहना है। हालिया निकाय पंचायत चुनाव के दौरान भाजपा को कई जिलों से मैदानी स्थिति की रिपोर्ट मिल चुकी है। अगर चुनावी नतीजों की माने तो कांग्रेस से जो लोग भाजपा में शामिल हुए, उनमें से 3 मंत्री सहित 11 तो उपचुनाव में ही हार गए थे लेकिन जो भाजपा के टिकट पर चुन लिए गए हैं उनका क्या। जानकारों की माने तो अगले चुनाव में उनके टिकट को लेकर स्थिति साफ नहीं है क्योंकि उन सभी सीटों के पुराने नेता भी अब पूरी ताकत से अपनी दावेदारी जताएंगे। सूत्रों का कहना है कि पाला बदलने वालों को सिर्फ उपचुनाव में ही टिकट की गारंटी दी गई थी। ऐसे में पार्टी कमजोर स्थिति वाले विधायकों के टिकट पर कैंची चला सकती है। अब आने वाले चुनाव की तारीखों के साथ ही तय होगा, किसकी झोली में टिकट गिरा और किसको नज़रअंदाज किया गया।