आम नागरिकों के साथ शक्ति के दुरुपयोग पर सीधी कलेक्टर को तत्काल हटाया जाए – शिवानंद द्विवेदी
सीधी जिले में जनसुनवाई के दौरान वहां के जिला कलेक्टर साकेत मालवीय द्वारा फरियादी के साथ जोर जबरदस्ती पूर्वक कक्ष से बाहर निकाले जाने का मामला सामने आया है। फरियादी की गलती सिर्फ इतनी थी कि वह 3 वर्षों से इन कार्यालयों के चक्कर काट काट कर थक गया था और अपनी गांव के सड़क की समस्या कलेक्टर को बताना चाह रहा था। रामपुर ग्राम पंचायत निवासी उपेंद्र तिवारी द्वारा जनसुनवाई के दौरान कक्ष से बनाए गए एक वीडियो में यह वाकया वायरल हो रहा है। इसमें उपेंद्र तिवारी द्वारा उनकी शिकायत पर कार्यवाही को लेकर बातें की जा रही हैं। इस पर कलेक्टर द्वारा उनके शिकायत की पावती छीन ली गई और उनके ऊपर राजनीतिक आक्षेप लगाने और अन्य बातों को लेकर अंत में जनसुनवाई कक्ष से बाहर निकाले जाने का वीडियो वायरल हो रहा है।
कलेक्टर जनता के सेवक हैं उनके मालिक नहीं
इस मामले को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने कहा है की जनता के टैक्स के पैसे से देश सेवा और जनता के लिए काम करने की शपथ लेने वाले अधिकारी अपने आप को देश का मालिक समझ बैठे हैं। किसी भी वरिष्ठ पोस्ट पर बैठा हुआ व्यक्ति भले ही अपनी योग्यता के आधार पर उस स्थान पर बैठा है लेकिन यदि जनता के टैक्स के पैसे से हासिल जीडीपी के माध्यम से ऐसे अधिकारियों को पेमेंट नहीं दिया जाएगा तो इनकी योग्यता धरी की धरी रह जाएगी। चाहे वह मजदूर हो किसान हो सरकारी अथवा प्राइवेट कर्मचारी अधिकारी हो या फिर कोई उद्योगपति। सभी टैक्स देते हैं टैक्स के पैसे से विकास के कार्य किए जाते हैं और उन्हीं से सरकारी मुलाजिमों को पेमेंट दी जाती है। लेकिन वरिष्ठ पदों पर बैठे हुए यह अधिकारी यह भूल जाते हैं कि यह सरकारी अधिकारी जनता के मालिक नहीं बल्कि उनके नौकर हैं और शायद इन्हें लोक सेवक भी इसीलिए कहा जाता है। जहां तक मामला शिकायतों का है तो चाहे वह सीधी जिला हो या रीवा या फिर मध्यप्रदेश का कोई भी जिला या फिर चाहे बात कर लें पूरे देश की। आज पूरे भारतीय तंत्र की शिकायत निवारण व्यवस्था पूरी तरह से ध्वस्त हो चुकी है। लोग सामान्य शिकायतें करते हैं जब उनकी सुनवाई नहीं होती है तो जनसुनवाई में जाते हैं, सीएम हेल्पलाइन के माध्यम से अपनी बात रखते हैं, वरिष्ठ अधिकारी कई शिकायतों को टाइम लिमिट मैनर पर टीएल मीटिंग में रखते हैं और फिर कई बार प्रदेश स्तर के कार्यालय अथवा जन शिकायत निवारण व्यवस्था के तहत पीएमओ या फिर केंद्रीय स्तर पर उन्हें भेजा जाता है। लगभग ज्यादातर शिकायतें जहां से प्रारंभ की जाती है वहीं पर वापस आ जाती है। भले ही शिकायतों को प्रधानमंत्री को भेजा जाए या मुख्यमंत्री को जांच करने के लिए उसी गांव उसी ग्राम पंचायत या जनपद में आती हैं जिनके ऊपर आक्षेप और आरोप लगाए गए हैं। वही विभाग अधिकारी अथवा कर्मचारी उन शिकायतों की जांच करते हैं जिनके ऊपर आरोप लगाए जाते हैं।
कलेक्टर जैसे जिम्मेदार प्रशासनिक पद पर बैठे व्यक्ति का व्यवहार संतुलित होना चाहिए
कलेक्टर सीधी साकेत मालवीय को उपेंद्र तिवारी के साथ दुर्व्यवहार कर उन्हें बाहर किए जाने के पहले इस बात को सोच लेना चाहिए था कि आखिर वह व्यक्ति 3 वर्ष से शिकायत लेकर क्यों घूम रहा है? आखिर उपेंद्र तिवारी की शिकायत का निराकरण क्यों नहीं हुआ है? मात्र सीधी जिले के रामपुर ग्राम पंचायत की सुदूर सड़क की नहीं बल्कि पूरे मध्य प्रदेश के सभी जिलों की सुदूर सड़क, पीसीसी सड़क या कोई भी पंचायती कार्य को देखा जाए और सही तरीके से तकनीकी जांच करवाई जाए तो हर जगह व्यापक भ्रष्टाचार और अनियमितता है। क्या सीधी कलेक्टर साकेत मालवीय अथवा कोई भी वरिष्ठ अधिकारी ग्राम पंचायतों का दौरा कर देखने की हिम्मत रखते हैं की ग्राम पंचायतों में स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर अब तक आने वाले विकास कार्य की राशि की क्या स्थिति है? अभी भी वर्षा के समय सैकड़ों हजारों ग्राम पंचायतों में आवागमन की सुविधा न होने से लोग प्रोटेस्ट करते हैं। मरीजों को खटिया में ले जाना पड़ता है। एंबुलेंस न आ पाने से जहां प्रसूति और मरीजों को भारी दिक्कत का सामना करना पड़ता है वहीं स्कूल वाहन न पहुंच पाने से बरसात के समय में बच्चे स्कूल नहीं जा पाते। उन्होंने कि आखिर यह सब सीधी जिले के साकेत मालवीय जैसे कलेक्टरों को क्यों नहीं दिखते?
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एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी ने कहा है कि साकेत मालवीय एक टीम गठित करें जिसमें वह स्वयं भी सदस्य हों और तकनीकी दलों के साथ शिवानंद द्विवेदी स्वयं उनके साथ सीधी जिले के सभी ग्राम पंचायतों में चलते हैं और तकनीकी मापदंडों पर अधिकतर कार्यों की जांच करवा ली जाए यदि अधिकतर कार्य तकनीकी मापदंड पर खरा नहीं उतरेंगे। कलेक्टर जैसी पोस्ट पर बैठे हुए वरिष्ठ अधिकारियों को अपनी मर्यादा समझना चाहिए और उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि वह जनता के सेवक है उसके मालिक नहीं। उन्होंने कहा कि जब दूध का धुला उनका स्वयं का सिस्टम ही नहीं है तो आम नागरिक पर वह अपनी भड़ास कैसे उतार सकते हैं? अभी यदि कोई नेता विधायक या सांसद जनसुनवाई कक्ष पर आकर कलेक्टर को खरी-खोटी सुना रहा होता तो कलेक्टर साहब भीगी बिल्ली बने हुए खड़े रहते और चुपचाप सुनते रहते उनके मुंह से कोई आवाज नहीं निकलती लेकिन जिस जनता के टैक्स के पैसे से इन अधिकारियों को पेमेंट मिल रही है जब वह अपनी पीड़ा व्यथा और शिकायत लेकर पहुंचती है तब उसी जनता के साथ वह ऐसे बर्ताव कर रहे हैं यह पूरी तरह से अमर्यादित है। (शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता)
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