भ्रष्टाचार चरम पर : जिला पंचायत रीवा सीईओ की कार्यप्रणाली पर उठ रहे सवाल

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मध्यप्रदेश में पंचायती भ्रष्टाचार चरम पर है। आए दिन लोकायुक्त की कार्यवाहियां सामने आ रही हैं। ऐसे ही एक मामले में अभी अनूपपुर जिले में 23 ग्राम पंचायत के 47 पदाधिकारियों के ऊपर लोकायुक्त ने एफ आई आर दर्ज की है जबकि गौरतलब है कि इस मामले को अनूपपुर के ही पंचायत विभाग ने पहले ही क्लीनचिट दे दी थी। अब सवाल यह है कि रीवा संभाग में भी यही हाल है जहां चाहे वह एलइडी लाइट घोटाला हो, चाहे कराधान करारोपण घोटाला हो अथवा मुख्यमंत्री गौशाला योजना के अंतर्गत बनाई जाने वाली गौशाला में जमकर हुआ भ्रष्टाचार सभी में एक ही पैटर्न देखने को मिल रहा है। जनपद और जिला स्तर से जांच में लीपापोती कर दी जाती है और जब मामला तूल पकड़ता है और अन्य जांच एजेंसियों जैसे ईओडब्ल्यू और लोकायुक्त द्वारा स्वयं जांच की जाती है तब कार्यवाही की जाती है और तब फिर जाकर भ्रष्टाचार उजागर होता है और आरोपियों को जेल की सलाखों के पीछे पहुंचाया जाता है।

धारा 89/40/92 दांडिक मामलों पर हो रही लीपापोती
मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा में मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993-94 के तहत धारा 89 एवं 40 और 92 के अंतर्गत होने वाली कार्यवाहियों को दबाया जा रहा है जिससे भ्रष्टाचारियों के हौसले बढ़े हुए हैं और बिना कार्य के ही पैसों का गबन पंचायती खातों से कर लिया जा रहा है। इस मामले में पूर्व के सरपंचों के ही कई मामले ऐसे हैं जहां बिना कार्य के पैसे निकाल लिए गए और प्रभक्षण के कई मामले में अब तक न तो एफ आई आर दर्ज हुई है और मात्र सुनवाई के नाम पर पेशी दर पेशी और वापस जांच कराकर लीपापोती का खेल खेला जा रहा है।

इस विषय पर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने अभी हाल ही में 28 बिंदुओं का एक ज्ञापन संभागायुक्त संभाग रीवा को सौंपते हुए धारा 40/ 92 और 89 से जुड़े हुए एवं अन्य कई प्रकार की पंचायती अनियमितताओं को लेकर के कार्यवाही की माग की थी।
इसके बावजूद भी स्थितियां जस की तस बनी हुई हैं और नए मुख्य कार्यपालन अधिकारी संजय सौरव सोनवणे ढिलाई बरत रहे हैं और पंचायती भ्रष्टाचार के मामलों में धारा 89/40 और 92 की सुनवाई में कोई खास तेजी नहीं दिख रही है। कई तो मामले ऐसे हैं जिनमें पहले ही जांच हो चुकी है और कई बार आरोपियों की पेशियां भी हो चुकी हैं लेकिन पुनः उच्च अधिकारियों द्वारा की गई जांच को वापस जनपद स्तर के निचले कर्मचारियों और अधिकारियों से जांच करवाई जा रही है जिसको लेकर प्रश्न खड़े किए गए हैं। जाहिर है कई ऐसे मामलों में पहले भी लीपापोती की जा चुकी है और जिला एवं संभाग स्तर से गठित टीम द्वारा बनाई गई वसूली को भी सहायक यंत्री और उपयंत्री जनपद स्तर की जांच द्वारा वसूली विमुक्त किया गया और क्लीन चिट दे दी गई जो बाद में हाई कोर्ट में भी मामले चल रहे हैं।

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मप्र के बहुचर्चित कराधान घोटाले का एक ऐसा ही मामला है जिसको लेकर तत्कालीन संभाग आयुक्त एवं जिला कलेक्टर द्वारा जांच की गई, वसूली बनाई गई जिसमे दोष पाया गया लेकिन बाद में तत्कालीन मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा द्वारा जनपद स्तर की टीम गठित कर मामले पर क्लीनचिट देने का काम किया गया जिसका खामियाजा स्वयं शासन को ही भुगतना पड़ा और अब मामला रिव्यू पिटिशन हाई कोर्ट में चल रहा है। इस मामले में कुछ आरोपी अभी भी जेल में बंद हैं।

इस बात को लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं ने प्रश्न खड़ा किए हैं और कहा है कि मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत को जबसे धारा 40 और 92 एवं 89 की सुनवाई का अधिकार प्राप्त हुआ है तब से इसमें लीपापोती की जा रही है जो नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत के बिलकुल विरुद्ध है और इस पर पारदर्शिता आनी चाहिए। इस सुनवाई को लेकर सामाजिक क्षेत्र से जुड़े हुए लोगों ने पारदर्शिता की मांग की है और कहा है कि ऐसी सुनवाई भी ओपन कोर्ट में होनी चाहिए जहां सब कुछ स्पष्ट हो और उसकी वीडियो रिकॉर्डिंग भी होनी चाहिए। ( शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता )

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