काला पानी से भी खतरनाक है केंद्रीय जेल रीवा, मुनाफाखोरी के लिए दी जाती है अमानवीय यातनाएँ

हाल ही में रीवा केंद्रीय जेल से रिहा हुए कमांडो अरुण गौतम ने एक और मामले को लेकर बबाल मचा दिया है। जिसमें उन्होंने जेल प्रशासन द्वारा जेल के अंदर किये जा रहे नियम विरुद्ध कार्यों को मीडिया के सामने रख दिया है। उन्होंने मीडिया को दिए बयान में बताया है कि जिले का केन्द्रीय जेल काला पानी से भी खतरनाक बन गया है। लोग बताते हैं कि काला पानी की सजा बीते जमाने की एक ऐसी सजा थी, जिसके नाम से कैदी कांपने लगते थे। दरअसल, यह एक जेल थी, जिसे सेल्यूलर जेल के नाम से जाना जाता था। आज भी लोग इसे इसी नाम से जानते हैं। हालांकि, अंग्रजों ने इसे सेल्यूलर नाम दिया था, जिसके पीछे एक हैरान करने वाली वजह है। सेल्यूलर जेल अंग्रेजों द्वारा भारत के स्वतंत्रता सेनानियों पर किए गए अत्याचारों की मूक गवाह है। ऐसा ही हाल वर्तमान समय  में केंद्रीय जेल रीवा का हो गया है। जहां पर कैदियों को तरह-तरह की कठोर और अमानवीय यातनाएं सिर्फ चंद पैसों के लिए दी जाती हैं।

जेल से छूटे रिटायर्ड कमांडो का छलका दर्द
जमानत पर बाहर आए आर्मी रिटायर्ड कमांडो अरुण गौतम की माने तो केंद्रीय जेल रीवा इस समय काला पानी जैसे जेल बन गया है । कहने को भारत देश एक स्वतंत्र देश है लेकिन आज भी आज भी केंद्रीय जेल रीवा में पहले जैसे गुलाम देश की तरह कैदियों को तरह-तरह की अमानवीय यातनाएं दी जाती हैं वर्तमान समय में केंद्रीय जेल यातना शिविर में तब्दील हो गया है। जानवरों से भी बदतर जीवन जीने को जेल में निरूद्ध बंदी विवश है क्योंकि उनके साथ पशुता का व्यवहार होता है। और तो और उन्होंने यह भी कहा कि कई चक्कर प्रशांत सिंह चौहान के हेलीकॉप्टर शॉट से कैदियों की चीख पुकार जेल की दीवारों के बेजुबान पत्थरों से टकराकर वापस लौट जाती है। अत्याचार एवं अनाचार के खिलाफ मुंह खोलने का हिम्मत कोई नहीं कर सका क्योंकी ऐसा करने का मतलब उसको हिमाकत समझा जाता है और फिर उसके साथ भी वही हेलीकॉप्टर शॉट वाला व्यवहार किया एवं कराया जाता है।उसके सुनने मात्र से रूह कांप जाती है। जेल को कहा जाता है तो कम समय के लिये जेल में निरुद्ध रहते हैं उनको छोड यदि सजा भुगत रहे कैदी सजा समाप्ति के पूर्व ही किसी न किसी भयंकर बीमारी से ग्रसित है। अरुण गौतम आगे बताते है कि जेल का खान-पान एवं जेल अधिकारियों एवं उनके खास कैदियों का तव उनको मार (रोगग्रस्त) बनाकर छोड़ता है। जेल के भीतर क्या हो रहा है, यह बात बाहर तब आती है, जब कोई बंदी या कैदी जेल से बाहर आता है। जेल मैनुअल के मुताबिक बंदियों-कैदियों को भोजन नहीं मिलता है। खाने के अभाव में बहुतेरे कैदी विशेषकर गरीब जिनके घर से पैसा नहीं पहुंचता है, रक्ताल्पता (खून की कमी) से जूझ रहे है, एनेमिक हो गये हैं जेल के अंदर।

केंद्रीय जेल रीवा में मर गई संवेदना, दफन हुआ मानवाधिकार
कमांडो अरुण गौतम कहते हैं, की सेण्ट्रल जेल रीवा में अधिकारियों कि न सिर्फ मानवीय संवेदनाएं मर गयी हैं बल्कि मानवाधिकार को भी दफन कर दिया गया है। जेल के भीतर कैदियों की मौतों के राज भी मानवधिकार के साथ दफना दिये जाते हैं। शासन-प्रशासन का कोई नुमाइंदा या फिर मानवाधिकार आयोग अथवा अन्य कोई सक्षम अधिकारी जेल के अंदर सीधे प्रवेश कर नहीं पाते है। जब तक जेल का मुख्यद्वार खोला जाता है, तब तक जेल अधिक्षक के इसारे पर अंदर सब कुछ व्यस्थित कर दिया जाता है। कामांडो अरुण गौतम का कहना है कि भारतीयों पर जुल्म ढाने वाले अंग्रेज चले गए लेकिन उनकी औलादे अभी भी यहां है। जिन्होंने अंग्रेजों को भी पीछे छोड़ दिया है। बताया जाता है कि जेल पहुंचने वाले प्रत्येक बंदी को हेलीकॉप्टर बनाकर इतने पट्टे मार कर स्वागत किया जाता है कि वह जब तक जेल में रहता है तब तक खौफ में जीये और जेल अधीक्षक के कहने पर समय-समय पर पैसा मंगवा ले। बंदियों से उनके घर व्हाट्सअप कॉलिंग कराकर पैसा मंगवाया जाता है। इसके लिए दलाल भी लगाए गए हैं जो परिजनों से बात करते हैं और फोन के माध्यम से या नगदी में रुपयों की मांग करते हैं, बंदियों के हिस्से का दूध – अंडा भी बजार पहुंचा दिया जाता है ।बेचने के लिए।

केंद्रीय जेल में नाम का चिकित्सालय
सूत्रों की माने तो केंद्रीय जेल में तीन डॉक्टरों की पदस्थापना है लेकिन डॉक्टरों द्वारा ड्यूटी नहीं दी जाती और पैरामेडिकल कर्मचारी वहां डॉक्टर बनकर जमकर मनमानी करते हैं। यहां तक कि पैरामेडिकल कर्मचारी मौर्य द्वारा कैदियों से वसूली भी की जाती है। कमांडो अरुण गौतम द्वारा बताया गया कि अस्पताल में नाम मात्र के लिए चिकित्सालय है सुविधा के नाम पर कोई उपचार की व्यवस्था नहीं है और फार्मासिस्ट द्वारा हजारों कैदियों का मनमाना तरीके से उपचार किया जाता है और वसूली भी की जाती है।
यदि जेल में लगे सीसीटीवी कैमरे और उपस्थिति रजिस्टर में दस्तखत करते डॉक्टरों की फुटेज निकलवाई जाए तो सच सामने आएगा कि डॉक्टर घर में बैठकर वेतन लेते हैं और पैरामेडिकल कर्मचारी द्वारा कैदियों की जिंदगी के साथ खिलवाड़ किया जाता है।

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