मासूम को स्कूल शिक्षक द्वारा धूप में बाहर नंगे खड़ा करना कहाँ तक जायज

बच्चा प्राइवेट स्कूल में समय पर फीस नहीं दे पाया, तो उसे कई बार धूप में घंटों बाहर नंगे पैर खड़ा किया गया

अजब गजब रीवा। अगर किसी बच्चे की फीस नहीं जमा है तो उसके माता-पिता और अभिभावकों को जानकारी देनी चाहिए ना कि बच्चे को नंगे पैर धुप में खड़ा करना चाहिए और इस तरह के कई मामलों में शासन – प्रशासन ने कड़ी कार्यवाई भी कि हुई है। फिर भी इस तरह के मामले संज्ञान में आना कहीं ना कहीं शिक्षा का तेजी से औद्योगिकीकरण होने का एहसास दिला रहा है। क्यूंकि एक बच्चे का मानवाधिकार और बाल अधिकारों का हनन कोई भी सरकार कतई बर्दाश्त नहीं कर सकती है।

बच्चा फीस नहीं दे पाया तो उसके माता-पिता और अभिभावकों को जानकारी देना चाहिए था और कारण पूछना चाहिए था लेकिन मानवाधिकार और बाल अधिकारों का हनन करते हुए एक चौथी कक्षा के नाबालिक बच्चे को धूप में खड़ा कर टॉर्चर किया जाना कहां तक उचित है? मामला गढ़ की एक निजी स्कूल का है।
एक तरफ सरकार बच्चों के शिक्षा के अधिकार की ओर मतलब बाल अधिकारों की बात करती है और दूसरी तरफ सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के हालात हैं। विश्वास ही नहीं होता कि अभी भी हम सिविलाइज्ड विकसित और 21वीं शताब्दी की तरफ पदार्पण कर विकसित समाज और विकसित लोकतंत्र कहलाने के लायक हैं अथवा नहीं ?

  • शिवानंद द्विवेदी , आरटीआई कार्यकर्त्ता राष्ट्रीय
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