बलिदान दिवस 23 जून पर विशेष : राष्ट्रभक्त श्यामा प्रसाद मुखर्जी

बंगाल के महान राष्ट्रवादी नेता डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी के पिता सर आशुतोष मुखर्जी एक प्रतिष्ठित शिक्षा शास्त्री और प्रखर देश भक्त थे। वे कोलकता विश्वविद्यालय के कुलपति और कोलकता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश थे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी बचपन से ही प्रतिभाशाली रहे, यही कारण रहा कि वे 33 वर्ष की आयु में कलकत्ता विश्वविद्यालय के कुलपति बने। देश की स्थिति उन दिनों ऐसी थी कि मुस्लिम लीग की सांप्रदायिक राजनीति जो स्पष्ट रूप से बंगाल के विभाजन की संभावना की ओर इशारा कर रही थी उसे सजग होकर डॉक्टर मुखर्जी बंगाल के राष्ट्रवादी राजनीति में कूद पड़े। वे स्वयं सर्वथा एक गैर सांप्रदायिक व्यक्ति थे। डॉक्टर मुखर्जी की सोच अन्य राजनीतिक दलों की तरह व्यक्तिगत हानि लाभ के आधार पर नहीं थी। बल्कि वे इससे ऊपर उठकर पहले राष्ट्र को मानते थे फिर व्यक्ति को। डॉक्टर मुखर्जी का राष्ट्रवाद एक वाद ही नहीं बल्कि एक निष्ठा एवं समर्पण का विचार था। हम जिस देश में रहते हैं उसका अपना वैभव है, और यही हमारी पहचान है। डॉक्टर मुखर्जी भारत की एकता और अखंडता के आसान्न खतरे से तथा हिंदुओं की तेजी से हासिए पर लाए जान से चिंतित थे। अतः वे हिंदू महासभा के निकट आए। उसे समय हिंदू महासभा वीर सावरकर के नेतृत्व में सक्रिय था। सन 1839 में मुखर्जी जी हिंदू महासभा के कार्यकारी अध्यक्ष बन गए। डॉक्टर मुखर्जी के राष्ट्रीय विचारों से प्रेरित होकर महात्मा गांधी ने उन्हें कांग्रेस की सदस्यता हेतु आमंत्रित भी किया था किंतु वे हिन्दू महासभा के विचारों से प्रेरित होकर राष्ट्र सेवा के लिए कूद पड़े थे।*डॉक्टर मुखर्जी के हिंदू महासभा की बागडोर संभालते ही बंगाल में भगवा परचम फहर गया। वे पहली बार एक गैर सांप्रदायिक सरकार बनाने में सफल रहे। एक बार बंगाल के मिदनापुर में बाढ़ की ऐसी ताबही मची कि वहां के निवासी कराह उठे, लेकिन तत्कालीन गवर्नर ने उन्हें कोई राहत नहीं पहुंचाई। उसका कारण यह रहा कि मिदनापुर की जनता ने भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था। इस घटना से डॉक्टर मुखर्जी को काफी कष्ट पहुंचा और वे अपना पद त्याग कर अंग्रेज सरकार की निंदा की। बंगाल में पड़े।*बंगाल में पड़े सूखे एवं अकाल के समय डॉक्टर मुखर्जी ने जिस तरह से पीड़ितों की सेवा एवं सहायता की थी उसकी महात्मा गांधी ने मुक्त कंठ से प्रशंसा की। नेहरू मंत्रिमंडल के राष्ट्रीय सरकार में महात्मा गांधी की पहल पर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को मंत्रिमंडल में शामिल किया गया। भारत के पहले उद्योग मंत्री के रूप में उन्होंने शिदरी का खान कारखाना चितरंजन में रेल कारखाना एवं एच.एम.टी. की नींव अपनी देखरेख में डाली। 1949 में पूर्वी पाकिस्तान में मचे उत्पादन से भारी संख्या में हिंदुओं को वहां से पलायन करना पड़ा। 19 अप्रैल 1950 को उन्होंने लोकसभा में प्रभावी भाषण देते हुए कहा यदि पूर्वी बंगाल के हिंदुओं को भावी पाकिस्तान सरकार द्वारा सताया जाता है, यदि उन्हें नागरिकता के प्रारंभिक अधिकारों से वंचित किया जाता है। उनके जीवन एवं उनके सम्मान पर हमला किया जाता है तो स्वतंत्र भारत मात्र दर्शन बनकर नहीं रहेगा। वैचारिक मतभेद के चलते डॉक्टर मुखर्जी को नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र देकर पूज्य गुरु जी की सहायता से 21 अक्टूबर 19 51 को नई दिल्ली में भारतीय जनसंख्या की स्थापना करनी पड़ी। डॉक्टर मुखर्जी ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि हमारे कार्यकर्ता हमेशा ध्यान रखें कि केवल बलिदान और सतत सेवा से ही लोगों का विश्वास व समर्थन प्राप्त किया जा सकता है। हम भारत के पुनर्जागरण और पुनर्निर्माण के अभियान के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा वर्तमान चाहे जितना भी अंधकार में हो किंतु हमारा भविष्य उज्जवल है। भारत को विश्व में कई बड़े कार्य करने हैं और हमारी भारतीय जनसंघ पार्टी का चुनाव चिन्ह दीपक है जो सदैव अंधकार में प्रकाश फैलाएगा।

1951 के चुनाव में जनसंघ को मिली लोकप्रियता ने जनसंघ को राष्ट्रीय दल बना दिया। जम्मू कश्मीर को भारत में विशेष दर्जा दिए जाने का डॉक्टर मुखर्जी ने कड़ा विरोध किया। भारत से जम्मू कश्मीर पहुंचने वालों को विशेष अनुभूति के आधार पर प्रवेश दिया जाए यह कैसी नीति? मुखर्जी ने कहा कि एक देश में दो निशान ,एक देश में दो विधान, एक देश में जो प्रधान कैसे चलेगा? इसके लिए उन्होंने जम्मूकश्मीर में 11 मई 1953 को प्रवेश करने की घोषणा की। जम्मू कश्मीर प्रवेश की घोषणा पर तत्कालीन केंद्र की सरकार ने डॉक्टर मुखर्जी को गिरफ्तार करवा लिया। हजारों की संख्या में जनसंघ कार्यकर्ता जम्मू कश्मीर में प्रवेश करते समय पुलिस अत्याचार के शिकार हुए। डॉक्टर मुखर्जी को श्रीनगर के बाहरी इलाके में एक मकान में नजर बंद कर दिया गया जहां वे गंभीर रूप से बीमार हो गए। तथा 23 जून 1953 को रहस्यमय परिस्थितियों में उनका निधन हो गया। डॉक्टर मुखर्जी की मां ने प्रधानमंत्री नेहरू जी को एक पत्र लिखकर जांच की मांग की, परंतु कोई जांच आयोग नहीं बैठाया गया। डॉक्टर मुखर्जी के बलिदान के पश्चात सरकार ने जम्मू कश्मीर पर लगे कई प्रतिबंधों को समाप्त कर दिया और उसी समय धारा 370 लगा दिया जो काफी समय तक चलता रहा। भारत में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी की सरकार बनते ही जम्मू कश्मीर में लगी 370 की धारा को समाप्त कर दिया गया। अब भारत एक राष्ट्र के रूप में जाना जाने लगा है। जहां बलिदान हुए मुखर्जी वह कश्मीर हमारा है। इस नारे को भारत के कार्यकर्ता सदैव लगाते रहे और अब यह संभव हुआ है कि कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक भारत एक है और सदैव एक बना रहेगा। डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान भारत में अमर है और सदैव अमर रहेगा। (रामलखन गुप्त, पत्रकार)

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