” शिक्षा सवाल करती है ” शायद ! यही वजह है कि शासन – प्रशासन नित नए आयाम को लेकर बच्चो के बेहतर भविष्य का प्रयास करती है। इसीलिए बड़े – बड़े शहरों के साथ – साथ छोटे – छोटे गांव – कस्बे तक में और भी स्कूल खोल रही है। साथ ही हर तबके के बच्चों को बेहतर शिक्षा मिल सके इसके लिए शिक्षकों कि नियुक्ति करती है। सरकार लाखों – करोड़ों रूपए बच्चों के बेहतर भविष्य पर खर्च कर रही है। लेकिन अफ़सोस जमींनी हक़ीक़त कुछ और कहती है।
त्योंथर रीवा, मप्र। हमारा देश भारत तेजी से विकास कर रहा है। फिर चाहे वो जमींन का क्षेत्र हो या अंतरिक्ष का। आज हम दुश्मन से आंख में आंख डाल के सवाल करते हैं। साथ ही दुनिया भर के देशों से बेहतर सम्बन्ध बनाने में और भी ज्यादा क्रियाशील हैं। आयात निर्यात में हमारा दबदबा है। हम आज कई तकनिकी मामलो में दुनिया से अव्वल हैं। लेकिन शायद कुछ सालों बाद हमारा विकास फिर वैशाखी पर पहुँच जायेगा। जिसके पीछे कि वजह है गांव – खेड़े में गिरती शैक्षणिक व्यवस्था।
इक्कीसवीं सदी में शिक्षा कि दुर्गती
अगर देश भर से आ रही खबरों के मुताबिक़ बात की जाये तो स्कूल में पढ़ाने वाले ज़्यादातर शिक्षकों को स्वयं ही पढ़ाई की
ज़रूरत है। साथ ही उन्हें ये भी सीखने की ज़रूरत है कि स्कूल में आना कब है और स्कूल से जाना कब है। क्यूंकि जब शिक्षकों में ही अनुशासन नहीं होगा तो बच्चों को शिक्षा कैसे दी जा सकती है। आज देश इक्कीसवीं सदी में डिजिटल शिक्षा के दावे करता है जबकि ज़्यादातर शिक्षक स्कूल में महज मुँह दिखाई करने जाते हैं। अब ऐसे में सवाल उठता है कि ब्लॉक शिक्षा अधिकारी या जिला शिक्षा अधिकारी ऐसे लापरवाह कर्मचारियों पर कार्यवाई क्यों नहीं करते हैं ? आख़िर जाँच के लिए निकलने पर जो भत्ता मिलता है क्या वो घर का रास्ता है ? या फिर ये समझ लिया जाये कि शासन – प्रशासन कि आंख में धूल झोंक उन्हें गुमराह किया जा रहा है।
खबरों के बाद भी नहीं होती जाँच
कई बार पाया गया है कि विकासखंड त्योंथर क्षेत्र में संचालित कई सरकारी स्कूलों में शासन – प्रशासन के दावों कि जमकर अनदेखी कि गई है। यहाँ तक कि जिन बच्चों की व्यवस्था स्कूलों में दिखाई गई वो महज खानापूर्ति ही साबित हुई। हाल ही जब कुछ स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों से हल्के-फुल्के सवाल किये गए तो परिणाम और भी चौंकाने वाले थे। ख़ास कर वो स्कूलें जो सड़क से दूर एकांत में हैं। वहां का बन्दर बाँट तो और भी भयानक है। कुछ लोगों से जब इस मामले को लेकर बात की गई तो उनके द्वारा कई चीज़ें ऐसी बताई गई कि, अगर इन स्कूलों का सीधे जिले से गठित दल के द्वारा औचक निरिक्षण शुरू हो जाये तो कई चौंकाने वाले परिणाम देखने को मिलेंगे। यहाँ तक कि शायद बहुत से शिक्षकों को घर बैठना पड़ सकता है।
लापरवाह कर्मचारियों कि वजह से सरकार कि किरकिरी
शिक्षा एक ऐसी व्यवस्था है जो देश और समाज दोनों को ही क्रियाशील रखती है। क्या गलत क्या सही का ज्ञान रखती है। समय आने पर नहीं बल्कि सोने से लेकर जागने तक और जागने से लेकर सोने तक हमारा साथ देती है। अब ऐसे में जरा सी लापरवाही बच्चों के भविष्य को अंधकारमय बना रही है। ज़्यादातर मामलों में पाया गया है कि शिक्षक अपने मर्जी के मालिक हैं। मन हुआ तो स्कूल आये नहीं तो हाजिरी के बाद चुनावी चौपाल में बैठ जाते हैं। कुछ जगहों पर तो शिक्षक और दो कदम आगे हैं। जो भी दो चार बच्चे गलती से स्कूल आ भी गए तो उनको इमला लिखने को बोल खुद गायब हो जाते हैं क्यूंकि उन्हें भी पता है कि सूने बजाट में कोई अधिकारी जाँच में आने वाला नहीं है।
समय रहते उठाने होंगे बड़े कदम
हाल ही में प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा स्टेज से ही कई कर्मचारियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया था। जिसके बाद से काम में काफी तेजी आई थी। शायद ऐसा ही कुछ बड़ा कदम यहाँ भी उठाना होगा अन्यथा आने वाले नौनिहाल शिक्षा कि कमी से बौद्धिक कमजोर या कहिये वैशाखी पर रहेंगे और इन सब का जिम्मेदार शासन – प्रशासन होगा।
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