जवा, रीवा। सरकारी स्कूल का नाम आये और लोग भौएं न चढ़ा ले कैसे हो सकता है। क्यूंकि इन्ही शासकीय विद्यालयों को लेकर शासन – प्रशासन तमाम सुविधाएँ मुहैया कराने का दावा करती है , जबकि जमीनी हकीकत से जनता भली भांति रूबरू है। ख़ास कर तराई अंचल में सचांलित हो रही शासकीय विद्यालयों का तो भगवान ही मालिक है।
ताज़ा मामला जवा मुख्यालय के पास संचालित इकलौती शासकीय हाई स्कूल जवा का है, जहाँ प्रभार एक ऐसे व्यक्ति के पास है जो ज्यादातर नशे में डूबा रहता है। शासकीय विद्यालय का माध्यमिक से हाई स्कूल में उन्नयन तो हो गया लेकिन अभी तक शिक्षा विभाग द्वारा कोई प्राचार्य नियुक्त नहीं किया गया लेकिन प्रभार एक ऐसे शराबी व्यक्ति को ज़रूर दे दिया गया है जिसे न तो अपने पद की गरिमा का ख़्याल है और न ही बच्चों पर पड़ रहे बुरे प्रभाव का।
जवा शासकीय हाई स्कूल जवा थाना के बगल में संचालित होती है। वहीं पास में ब्लाक शिक्षा अधिकारी, ब्लॉक श्रोत समन्वयक तहसीलदार एवं जनपद कार्यालय सब जवा में ही संचालित हैं, बावजूद इसके ऐसे स्थान पर संचालित विद्यालय के प्राचार्य राजेश कुमार कोल द्वारा शराब के नशे में धुत्त होकर विद्यालय आना और नशे के हालत में शिक्षकीय ब्यवस्था का संचालन बेरोकटोक हो रहा है और जिम्मेदार कुम्भकर्णीय नींद में हैं।
एक नज़र
जवा हो या त्योंथर, तराई अंचल के ज्यादातर विद्यालयों में एक जैसी कमी पाई गई है और ये खेल लम्बे समय से चला आ रहा है। शिकायतों में कहीं शिक्षक नशे में धुत्त रहते हैं तो कहीं विद्यालय परिसर में ही कुछ लोगों द्वारा नशा किया जाता है। और इस समस्या को लेकर कभी छात्रों द्वारा तो कभी विद्यालय स्टाफ द्वारा अला अधिकारीयों तक बात पहुँचती भी है, लेकिन साहब तो कुम्भकर्णीय नींद में मस्त हैं।
कुछ दिनों पहले जिला कलेक्टर मनोज पुष्प द्वारा जिले भर में नशा मुक्त अभियान चलाया गया था। जिसमें कैमरे के सामने कहीं रैली निकाल कर तो कहीं विद्यालय परिसर के आसपास की गुमटियों में बिक रहे नशे के सामान को जला कर विरोध किया गया था। बड़े – बड़े पोस्टर – बैनर लगाए गए थे। लेकिन अफ़सोस आम जनता को मिलने वाली सरकारी योजनाओं की तरह ही नशा मुक्ति अभियान भी कहीं कागजों दब के रह गया।
सवाल सीधा है , क्या नशा मुक्ति अभियान के दायरे में सरकारी कर्मचारी नहीं आते हैं ? और अगर आते हैं तो फिर अब तक कोई कार्यवाई क्यों नहीं हुई ?
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