त्योंथर, रीवा। क्या चुनावी पृष्ठभूमि तैयार करने निकले हैं वरिष्ठ पत्रकार मधुकर द्विवेदी जी
पत्रकारीता जगत में अपना एक अलग मुकाम बनाने वाले मधुकर द्विवेदी जी अब विधान सभा के अंदर बैठने की तैयारी में लगे हुए हैं। एक विशेष मुलाकात में श्री द्विवेदी जी ने बताया कि मैंने अपने जीवन में कई उतार चढाव देखे हैं। लोगों को जमीन से उठ कर प्रधान विधाईका पारित करते भी देखा है। मैंने उन नेताओ को भी देखा है जो कल तक भूख हड़ताल करते थे और आज उनका पेट भरता ही नहीं है। राजनिति की इस दुर्दशा को देखते हुए मैं शुध्द और नैतिक मूल्यों को ध्यान में रखते हुए लोकतान्त्रिक चुनाव का आईना दिखाने का प्रयास करूँगा।
चर्चा में
हाल ही में कई दौरों को लेकर जब श्री मधुकर द्विवेदी जी से पूँछा गया कि इन दौरों के पीछे कि वजह क्या है ?
क्या आप राजनैतिक मैदान में उतर कर जन सेवा में आएंगे या फिर समाजिकता को आधार मान सिर्फ लोगों का
सुख – दुःख बांटने आते हैं?
आपको बता दें श्री द्विवेदी जी के पिछले कई दौरों के बाद , ये सवाल अक्सर लोगों के जुबान पर सुनने को मिल रहा है।
श्री द्विवेदी जी ने मुस्कुराते हुए सवालों का ज़बाब बेहद ही संजीदगी एवं गंभीरता से दिया। जिस पर उनके द्वारा कई बिंदुओं
पर प्रकाश भी डाला गया। उन्होंने स्पष्ट तो नहीं लेकिन इशारा जरूर कर दिया है कि त्योंथर में व्यापत समस्याएँ बेहद
ही गंभीर हैं जिनको बिना धौंस जमाये भी कम किया जा सकता है। फिर चाहे वो बिजली पानी सड़क शिक्षा से जुड़ी
समस्याएँ हों या शासन – प्रशासन कि योजनाएँ। प्रत्येक पात्र व्यक्ति को बिना किसी लेन-देन या पेशगी के शासन कि
योजनाओं का लाभ मिलना चाहिए और अगर इन समस्याओं को लेकर जनता चाहती है कि मैं उनका प्रतिनिधित्व करूँ,
तो मुझे इससे कोई परहेज नहीं रहेगा।
उन्होंने ने बेह्द ही सरलता से कहा कि “मैं सम्पूर्ण त्योंथरांचल की जनता जनार्दन को ही अपना प्रसतावक मानता हूँ।”
मैं त्योंथर में खिलाडी भाव से ही चुनावी मैदान में उतर सकता हूँ और चुनावी पारी शुरु करने का आदेश भी त्योंथर
की जनता से ही लुँगा।
एक नज़र इस पर भी
मैं एक सामान्य परिवार का सीधा-सादा व्यक्ति हूँ। मेरे पास कोई धन – वन नहीं है, लेकिन जन – मन हैं।
आदर्शवादी एवं सिधांतो वाला व्यक्ति हूँ और निःस्वार्थ भाव से जनता की सेवा का उद्देश्य लेकर आगे बढ़ता रहुंगा।
अब बाकी का निर्णय त्योंथर क्षेत्र की जनता जनार्दन का होगा। मैं पहले भी समयाभाव काल में त्योंथर की धरती
को माथा टेकने और लोगों के सुख-दुःख में शामिल होने समय-समय पर आया करता था और आज भी आता हूँ
और आने वाले समय में भी आता रहुंगा।
मैं अपना जीवन त्योंथर के पवित्र और पूज्यनीय धरती पर पूर्णरुप से समर्पित कर दूँगा।
अब फैसला त्योंथर की जनता को करना है कि सेवक को सेवा का अवसर देना है या और प्रतिक्षा करवानी है।
श्री द्विवेदी जी ने अपनी बात खत्म करते हुए भावुक होकर यह भी कहा कि त्योंथर के लोगों को यह तय करना है
कि उनका भविष्य कैसा होगा उनका सेवक कौन होगा….
संवाददाता – ब्रह्मानदं त्रिपाठी बिन्नू , बहरैचा