जवा। अध्ययन और अध्यापन का भारतीय सनातन इतिहास में बहुत ही गौरवशाली स्थान रहा है! शिक्षा के बल पर ही भारत विश्व गुरु कहलाता था! परन्तु रणनीतिकारों की सोची समझी रणनीति के कारण शिक्षा को व्यवसायीकरण करके धनार्जन का प्रमुख जरिया बना दिया है!और सरकारी महकमा भी शिक्षा के भविष्य को दरकिनार कर कमाई का जरिया मान बैठा है। इसी कड़ी में रीवा जिले के तराई अंचल में भी सैकड़ों विद्यालयों का बिना मापदंड के संचालन शुरू हुआ! शिक्षा विभाग का महकमा जिनकी इन पर निगरानी रखने की जिम्मेदारी है उन्ही के संरक्षण में शिक्षा की दुकानों का वैध अवैध संचालन शिक्षा के व्यवसायियों द्वारा करने में मददगार नजर आता है! जवा तहसील में सैकड़ों की संख्या में संचालित अशासकीय विद्यालयों में कुछ के अलावा छात्रों के बैठने की व्यवस्था तक नहीं है! ना खेल मैदान है और ना योग्य शिक्षक है ! अभिभावकों को फीस की आड़ में सीबीएससी कोर्स के नाम से भी गोरखधंधा चलाया जा रहा है! शासन के आदेश अनुसार किसी भी विद्यालय में शिक्षक एवं व्यवस्था नहीं है ! फिर इन विद्यालयों को मान्यता कैसे मिली यह प्रश्न चिन्ह है प्रशासन के ऊपर ?वहीं पर जिन विद्यालयों की मानता 8वीं तक हैं 10वी और 12वी की मान्यता ही नहीं है वो दूसरे विद्यालयों के साथ ज्वाइंट सिस्टम से विद्यालय संचालित कर मोटी रकम कमाने का जरिया बना रखे हैं।
जवा तहसील अंतर्गत 8वीं तक मान्यता वाली डभौरा पनवार रामबाग अतरैला पटेहरा भड़रा चौखंड़ी गाढ़ा 137, गाढ़ा 138 और जवा में प्राइवेट स्कूलों की भरमार है लेकिन उक्त विद्यालयों के संचालक बिना 10वीं और 12वीं मान्यता के धड़ल्ले के साथ दूसरे विद्यालय से ज्वाइंट सिस्टम अपनाकर विद्यालय चला रहे हैं। जिससे बच्चों के भविष्य का बहुत बड़ा खतरा है परन्तु शिक्षा विभाग के अधिकारी बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने में तुले हुए हैं और चुपचाप मौन धारण कर आंख में पट्टी बांधे हुए अवैध तरीके से विद्यालय संचालन कर रहे संचालकों के मनमानी को अनदेखा कर मेहरबान हो चुके हैं यहां तक की विद्यालय संचालक गाड़ियों में साउंड बाक्स और स्पीकर लगाकर विद्यालय में प्रवेश के लिए प्रचार प्रसार भी जोरों से कर रहे हैं। ऐसा देखकर लगता है इन विद्यालयों को संचालित करने में प्रशासन भी मदद कर रहा है,क्योंकि जवा तहसील में कुछ ही विद्यालय के अलावा किसी के पास ना तो 8वीं के बाद मान्यता है और ना ही छात्रों को बैठने की व्यवस्था है ना खेल मैदान है और ना ही योग्य शिक्षक है। अब देखना होगा कि क्या शासन प्रशासन ऐसे अवैध तरीके से विद्यालय चला रहे संचालकों पर कानूनी कार्यवाही करेगा या फिर मनमानी करने के लिए खुली छूट दे दी जाएगी? (अनूप गोस्वामी राममनोरथ विश्वकर्मा)