मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के रीवा आगमन पर अपनी समस्याओं को लेकर हजारों की तादाद में पहुंचे स्वच्छता ग्राहियों ने सौंपा ज्ञापन। स्वच्छता ग्राहियों द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से न्याय की गुहार लगाई गई। ज्ञापन में मुख्य भूमिका निभाने वाले एक स्वछता ग्राही ने बताया कि जिस तरह सीएम सभी कर्मचारियों पर दया बरसाए हैं, उसी तरह मध्य प्रदेश के 26000 स्वच्छता ग्राहीयों पर दया की दृष्टि बरसाए ताकि हमारे 500000 अभिभावक का भी जीविकोपार्जन हो सके। उन्होंने आगे बताया कि मध्यप्रदेश के स्वच्छता ग्राहीयों को ₹500 मासिक मानदेय का आदेश जारी किया गया था, जो सरकार द्वारा कुछ दिन दिया भी गया लेकिन कुछ महीने बाद उसे बंद कर दिया गया। एक तरफ प्रदेश के मुखिया सभी कर्मचारियों को खुशहाली बांट रहे हैं एवं उनके वेतन वृद्धि की ओर लगे हैं। वही मध्य प्रदेश के 26000 स्वच्छता ग्राही प्रदेश के मुख्यमंत्री से अपने जीविकोपार्जन के लिए एवं मासिक मानदेय के लिए लम्बे समय से गुहार लगा रहे हैं लेकिन अब तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। बात तो यह भी है की प्रदेश के मुख्यमंत्री चुनावी साल में प्रदेश के कई जिलों का दौरा कर चुके हैं। इस दौरान अलग – अलग जगहों पर स्वच्छता ग्राहीयों द्वारा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को ज्ञापन सौंपा जा रहा है परंतु अब तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा स्वच्छता ग्राहीयों के बारे में कोई चर्चा नहीं की गई।
“जो स्वच्छता की बात करेगा, वही मध्य प्रदेश में राज करेगा”
स्वच्छ मध्य प्रदेश बनाने के लिए स्वछता ग्राहियों द्वारा “जो स्वच्छता की बात करेगा, वही मध्य प्रदेश में राज करेगा” का नारा लगाते हुए बताया गया कि, गंदगी को हटाना है चाहे वह गांव हो या शहर, चाहे वह नेता हो या अभिनेता, चाहे वह कर्मचारी हो या आम नागरिक, स्वच्छता सर्वोपरि था स्वच्छता सर्वोपरि है सर्वोपरि रहेगा। मुख्यमंत्री जी को ज्ञापन देने में मुख्य भूमिका में नज़र आये जिला अध्यक्ष पारस नाथ मिश्र, अजय मिश्र, स्वच्छता ग्राही संघ अध्यक्ष आलोक मिश्र, शिवेंद्र तिवारी, अमर मिश्र, प्रदेश मिश्र, सज्जन द्विवेदी, नागेश्वर, सुनील तिवारी, पंकज शुक्ला अन्य। स्वछता ग्राहियों के जिला अध्यक्ष पारस नाथ मिश्र एवं संघ अध्यक्ष आलोक मिश्र द्वारा अपने सहकर्मियों को लेकर जो आवाज उठाई गई है वह कितनी असरदार होगी वो तो वक़्त ही बताएगा लेकिन मामा जी से जीवकोपार्जन की ये गुहार कहीं न कहीं इन पर निर्भर हज़ारों परिवारों का आतंरिक दर्द है।