आख़िर क्यों : भारतीय इंजीनियरों का नायाब नमूना, बांध नीचे और नहरें ऊंची

मऊगंज और हनुमना क्षेत्र में बनाए गए बांधों के विषय में निरंतर जानकारी उपलब्ध कराई जा रही है। पिछले कुछ लेख में देखा गया की कैसे बांधों के निर्माण में जमकर भ्रष्टाचार हुआ और तकनीकी मापदंडों का खुलमखुल्ला उल्लंघन किया गया। अब इस कार्यक्रम में हम आपको मिलाएंगे कई किसानों से और उनसे बात कर रहे एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी और रिटायर्ड इंजीनियर और तकनीकी विशेषज्ञों से।

नीचे बांध और ऊंची नहरें, अब विज्ञान का कौन सा नया सिद्धांत दौड़ाएगा ऊंचाई में पानी
इस देश के इंजीनियरों की यह कैसी कार्यक्षमता है? इसे विडंबना कहा जाए अथवा कुछ और? तकनीकी तौर पर इन इंजीनियरों को अपाहिज क्यों न कहा जाय? यह कमीशन के पैसे का ही कमाल की अब हवा पानी के रुख और विज्ञान के सिद्धांत को भी कमीशन के दम पर बदलने में भारत के यह प्रतिभावान इंजीनियर आमादा हैं। अमूमन पानी का बहाव प्राकृतिक तौर पर गुरुत्वाकर्षण के नियम अनुसार ऊपर से नीचे की तरफ अथवा समतल में होता है जिसे आप वाटर लेवल कहते हैं। ऐसा तो शायद एक अनपढ़ अज्ञान व्यक्ति भी नहीं कहेगा की पानी का बहाव नीचे से ऊपर की तरफ होता है। यह तो आश्चर्य ही है कि कोई ठेकेदार अथवा इंजीनियर यह कहे कि वह पानी के बहाव और प्रकृति के सिद्धांत को ही बदल देगा। जहां तक सवाल जूड़ा बांध का है तो यहां पर बिके अधिकारी और भ्रष्ट ठेकेदारों ने प्रकृति के नियमों को ही बदलने का प्रयास किया है। जूड़ा बांध का अध्ययन विशेषज्ञ वरिष्ठ इंजीनियर की उपस्थिति में किया गया तो पाया गया की बांध गहराई में है और पानी के तल से अपेक्षाकृत नहर अधिक ऊंचाई में है। साथ ही जो नहर की खुदाई टटिहरा एवं कोलहा गांव और उसके आसपास के ग्रामों के पास की गई है वह भी एक जैसी समतल न होकर आगे की तरफ ऊंचाई बढ़ती जाती है। बात करने पर ग्रामीणों ने बताया की जब यह नहर बनी थी तो बांध का पानी छोड़ा गया। पानी छोड़ते ही क्योंकि नहर के दोनो छोर में मिट्टी का बैठाब और कंपैक्शन बिल्कुल नही किया गया था तो पानी के प्रेशर में नहर कई जगह से टूट भी गई। चूंकि टटिहरा कोलहा और उसके आसपास स्थित ग्रामों के पास नहर की ऊंचाई बढ़ती गई इससे पानी का दवाब उल्टा हुआ और नहर में रिवर्स फ्लो की वजह से नहर टूट गई। बाद में किसानों ने बताया की उन्होंने स्वयं भी अपने स्तर से बोरी बंधान आदि तकनीकों से नहर को ठीक करने का प्रयास किया लेकिन सफल नहीं हुए। किसानों ने बताया की इस नहर से उन्हे फायदा कम और नुकसान अधिक हुआ। जगह जगह टूटी पड़ी नहर से उनके खेत में पानी भर जाता है। ( शिवानंद द्विवेदी, आरटीआई कार्यकर्त्ता )

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