जवा। रीवा जिले की 827 ग्राम पंचायतों में किस कदर ग़दर मची हुई है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है पिछले कार्यकाल में ग्राम पंचायतों में कार्य के नाम पर किए गए फर्जी आहरण पर वर्तमान कार्यकाल में पूर्व के सरपंच और सचिवों द्वारा कार्य कराए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं जिसका वर्तमान सरपंच जगह-जगह विरोध कर रहे हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या पिछले कार्यकाल में जिन कार्यों के लिए पैसे निकाल लिए गए वह वर्तमान सरपंच के कार्यकाल में कार्य कराए जा सकते हैं? क्या इस प्रकार की अवैधानिक और बिना कार्य कराए किए गए राशि का आहरण गबन और दुर्वियोजन की श्रेणी में नहीं आता? यदि विशेषज्ञों की माने तो प्रत्येक कार्य के लिए ग्राम पंचायतों में वित्त आयोग एवं मनरेगा की राशि का आहरण क्रमवार किया जाता है जिसमें कार्य करने के पूर्व लेआउट किया जाता है जिसके बाद नीव का काम होने के बाद कार्य का इंजीनियर द्वारा मूल्यांकन होता है और मूल्यांकन पश्चात ही पैसे निकाले जाते हैं। अंतिम राशि की निकासी कार्य के अंतिम मूल्यांकन और पूर्णता प्रमाण पत्र जारी होने के बाद ही निकाली जाती है। लेकिन ग्राम पंचायतों में मध्य प्रदेश पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम का बिल्कुल ही पालन नहीं किया जा रहा है और न ही उन नियम-कायदों का पालन किया जा रहा है जो समय समय पर पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के सर्कुलर और नोटिफिकेशंस के जरिए ग्राम पंचायत, जनपद और जिला पंचायतों को जारी करते रहते हैं। ताज्जुब की बात तो यह है कि मध्यप्रदेश में भी पंचायती कार्य करने के लिए मध्यप्रदेश पंचायत भंडार क्रय अधिनियम बनाया गया है जिसके तहत 5000 से अधिक और 50,000 रुपए के बीच की सामग्री क्रय करने के लिए ग्राम सभा से अनुमोदन लिया जाता है इसके बाद ही राशि निकाली जाती है जबकि ₹50000 से अधिक कीमत वाले सामग्री क्रय हेतु बड़े स्तर पर निविदा जारी की जाती है और उसका इस्तिहार और नोटिफिकेशन पेपर पत्रिकाओं के जरिए निकाला जाता है। इस निविदा में आमंत्रित किए गए उन वेंडरों का भी चयन होता है जिन्होंने सबसे कम राशि में कार्य करवाने हेतु निविदा में हिस्सा लिया है। लेकिन ऐसे किसी भी अधिनियम का पालन ग्राम पंचायतों में नहीं किया जा रहा है और मन मुताबिक कमीशन को आला अधिकारियों और इंजीनियरों की मदद से सरपंच/सचिव राशि हजम कर लेते हैं और जब शिकायत होती है तो सीईओ जिला पंचायत और अन्य आला अधिकारियों के सहयोग से कार्य पूरा करवाने का प्रयास करते हैं। कई बार तो जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी ने मौखिक तौर पर भ्रष्टाचारी कई सचिव और जीआरएस को गबन की एफआईआर करवाने की बजाय पिछले राशि हजम किए हुए कार्यों को भी कराने के निर्देश दे दिए गए हैं।
जवा जनपद की भनिगवां और कोनी कला में भी सरपंच सचिवों ने जमकर किया भ्रष्टाचार
रीवा जिले से सुदूर स्थित जवा जनपद में भ्रष्टाचार इस कदर व्याप्त है की ग्राम पंचायतों में पिछले कार्यकाल में लाखों करोड़ों रुपए आहरित कर लिए गए और कार्य आज तक नहीं हुए। भनिगवां ग्राम पंचायत के स्थानीय निवासी गंगा प्रसाद मिश्रा ने सीईओ जिला पंचायत संजय सौरव सोनवाने के समक्ष शिकायत प्रस्तुत कर वर्तमान पदस्थ सचिव विवेकानंद पांडे की कारगुजारी के बारे में अवगत कराया और पंचायत भवन आंगनवाड़ी केंद्र और अमृत सरोवर के नाम पर अंधाधुंध की गई निकासी की शिकायत की है। गंगा प्रसाद मिश्रा ने बताया कि वह सरपंच पति भी हैं और उनकी पत्नी को सचिव विवेकानंद पांडे द्वारा जबरन पिछले कार्य काल के निकाली गई राशि से कार्य कराया जा रहा है जिसका उन्होंने विरोध किया है और कार्य रुकवाने का भी प्रयास किया है लेकिन जवा जनपद के भ्रष्टाचारी मुख्य कार्यपालन अधिकारी डीके मिश्रा के द्वारा सचिव विवेकानंद पांडे की मदद की जा रही है। उन्होंने बताया कि सचिव विवेकानंद पांडे ने सत्यम तिवारी नामक व्यक्ति को प्राइवेट तौर पर पंचायत का कार्य करने के लिए ठेके पर रखा है जो ग्राम पंचायत में उगाही का कार्य कर रहा है। लाडली लक्ष्मी योजना हो अथवा कोई भी सामान्य कार्य सभी के लिए सत्यम तिवारी वसूली कर रहा है और यह सब विवेकानंद पांडे के सहयोग से हो रहा है।
कोनी कला से लालमणि साहू ने भी विवेकानंद पांडे के भ्रष्टाचार की कई बार करी है शिकायत
जवा जनपद के कोनी कला ग्राम पंचायत में ही लालमणि साहू नामक व्यक्ति ने बताया कि उनके द्वारा पिछले 2 से अधिक वर्षों से लगातार जनपद जिला और संभाग में वरिष्ठ अधिकारियों के समक्ष शिकायत की जा रही है लेकिन कोई जांच और कार्यवाही नहीं हो रही है। उन्होंने बताया कि वह कई बार सैकड़ों लोगों को साथ में लेकर मुख्य कार्यपालन अधिकारी जिला पंचायत रीवा के समक्ष धरना प्रदर्शन करने के लिए भी आए हैं लेकिन मात्र आश्वासन दिया जा कर छोड़ दिया जाता है और कोई भी जांच और कार्यवाही नहीं करवाई जा रही है। जिसको लेकर शिकायतकर्ता लालमणि साहू सहित ग्राम पंचायत कोनी कला के लोगों के बीच आक्रोश व्याप्त हो गया है। लालमणि साहू ने बताया कि एक बार उन्होंने शिकायत की थी जिसकी जांच जनपद स्तर से की गई थी लेकिन उस जांच में भी लीपापोती कर दी गई और तत्कालीन सचिव विवेकानंद पांडे को स्थानांतरित कर मामले को शांत करवा दिया गया लेकिन करोड़ों रुपए के भ्रष्टाचार की कोई वसूली नहीं की गई। लालमणि साहू ने बताया कि तत्कालीन सचिव विवेकानंद पांडे के द्वारा अपने परिजनों निजी रिश्तेदारों के नाम पर पंचायती वेंडर बनाए गए हैं जिनके नाम पर पंचायत भंडारकर अधिनियम के विपरीत सामग्री सप्लाई और अन्य के लिए राशि निकाली जा रही है इसकी जांच करवाए जाने की अपील उन्होंने कई बार वरिष्ठ अधिकारियों से की है लेकिन कमीशनखोर अधिकारियों ने किसी भी प्रकार से संज्ञान नहीं लिया। ( शिवानंद द्विवेदी, आरटीआई कार्यकर्त्ता राष्ट्रीय )