चाकघाट। शासन की वर्तमान में तमाम ऐसी योजनाएं हैं जिसका लाभ सीनियर सिटिज़न को नहीं मिल पाता और वृद्धावस्था में वे असहाय लाचार हो जाते हैं। सरकार को सीनियर सिटिज़न के लिए उदार होना चाहिए। जिससे वरिष्ठ जन अपने जीवन का अंतिम क्षण सरकार को दुआ देते हुए व्यतीत कर सकें। पता चला है कि भारत में 70 वर्ष की आयु के बाद वरिष्ठ नागरिक चिकित्सा बीमा के लिए पात्र नहीं हैं, उन्हें ईएमआई पर ऋण नहीं मिलता है। ड्राइविंग लाइसेंस नहीं दिया जाता है। उन्हें आर्थिक काम के लिए कोई नौकरी नहीं दी जाती है। इसलिए वे दूसरों पर निर्भर हैं। उन्होंने अपनी युवावस्था में सभी करों का भुगतान किया था। अब सीनियर सिटिज़न बनने के बाद भी उन्हें सारे टैक्स चुकाने होंगे। भारत में वरिष्ठ नागरिकों के लिए कोई योजना नहीं है। रेलवे पर 50% की छूट भी बंद कर दी गई। दुःख तो इस बात है कि राजनीति में जितने भी वरिष्ठ नागरिक हैं, वे चाहे विधायक हो या सांसद अथवा राज्य व केंद्र के मंत्री उन्हें सब कुछ मिलेगा और पेंशन भी मिलेगी लेकिन सीनियर सिटिज़न पूरी जिंदगीभर सरकार को कई तरह के टैक्स देते हैं, फिर भी बुढ़ापे में पेंशन नहीं, कोई छूट नहीं। कोरोना के बाद तमाम बंद योजनाएं बहाल हो गई हैं किंतु सीनियर सिटिज़न को मिलने वाली सुविधा ट्रेन में छूट अभी भी नहीं चालू की गई है। सोचिए अगर औलाद न संभाल पाए ( किसी कारण वश ) तो बुढ़ापे में कहां जायेंगे, यह एक भयानक और पीड़ादायक बात है। अगर परिवार के वरिष्ठ सदस्य नाराज हो जाते हैं, तो इसका असर चुनाव पर पड़ेगा और सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा।
वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल कौन करेगा ?
वरिष्ठों में है सरकार बदलने की ताकत, उन्हें कमजोर समझकर नजरअंदाज न किया जाय। वरिष्ठ नागरिकों के जीवन में किसी भी तरह की परेशानी से बचने के लिए कोई ध्यान नहीं दिया जाता है। सरकार गैर-नवीकरणीय योजनाओं पर बहुत पैसा खर्चा करती है, लेकिन यह कभी नहीं महसूस करती है कि वरिष्ठ नागरिकों के लिए भी एक योजना आवश्यक है। इसके विपरीत बैंक की ब्याज दर घटाकर वरिष्ठ नागरिकों की आय कम कर रहा है। अगर मामूली पेंशन भी मिलती है जिसमें परिवार का गुजारा भी मुश्किल चलता है, तो उस पर भी इन्कम टैक्स। भारतीय वरिष्ठ नागरिको के प्रति सरकार को उदारता पूर्वक योजना बना के अपने दायित्व का निर्वहन करना चाहिए। (रामलखन गुप्त)