पावन यज्ञस्थली कैथा हनुमान जी स्वामी मंदिर प्रांगण में श्री शिवमहापुराण भक्ति ज्ञान महायज्ञ का अविरल प्रवाह निरंतर प्रवाहित हो रहा है। भक्ति और अध्यात्म की अविरल गंगा में क्षेत्र के भक्त और श्रद्धालु लगातार डुबकी लगा रहे हैं।
दृश्य जगत में अत्यधिक आशक्ति ही दुख का कारण, अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति ही मोक्ष – वरुणाचार्य
हनुमान गद्दी कैथा के व्यासपीठ पर विराजमान वरुणाचार्या ने उपस्थित भक्तों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए बताया कि श्री शिवमहापुराण भक्ति ज्ञान महायज्ञ की कथा का रसपान करने से आत्मज्ञान प्राप्त होकर अंततः मोक्ष की प्राप्ति होती है। क्योंकि हर जीव का अंतिम लक्ष्य उस अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति ही है। परंतु इस संसार में जन्म लेने के बाद हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाते हैं और मोह माया के बंधन में पड़े रह कर कर्म बंधन से जन्म जन्मांतर तक पुनर्जन्म के बंधन में बंधे रहते हैं। आचार्य ने कहा कि जो भी स्थावर जंगम संसार हमें दिखता है यह एक मायावी रचना है। सृष्टि के पहले कुछ भी नहीं था और सब निराकार था। परमपिता परमेश्वर ने अपनी इच्छा से इस सृष्टि का सृजन किया और इसके उपरांत जीव-जंतु पेड़-पौधे पहाड़ पत्थर और पंचमहाभूत का निर्माण हुआ। ईश्वर ने विचार किया तो एक से अनेक रुप उत्पन्न हुए जिसमें विभिन्न जीवन की उत्पत्ति हुई। यह संसार कर्म के बंधन से बंधा हुआ है और हर जीव अपने कर्म के अनुसार ही फल की प्राप्ति करता है। भारतीय संस्कृत में पुनर्जन्म के सिद्धांत के अनुसार कर्मों के आधार पर ही जीव जन्म जन्मांतर में योनियों को प्राप्त करता हुआ अपने सत कर्मों के आधार पर ही नई योनियां प्राप्त करता है।
वरुणाचार्य ने कहा की समस्त बंधन व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु तक बने रहते हैं और इसके बाद व्यक्ति समस्त बंधनों से मुक्त हो जाता है और नया जीवन प्राप्त करता है। आचार्य ने कहा कि व्यक्ति को इस संसार सागर रुपी माया के मोह जाल में नहीं फंसना चाहिए और अपने अंतरात्मा में इस भाव को निहित रखते हुए कि हम इस संसार में एक अतिथि की तरह हैं और यह संसार एक किराए का घर है इस प्रकार हमें यहां से जाना है इस भाव के साथ परमपिता परमेश्वर पर ही अपना ध्यान केंद्रित करते हुए अपने विहित कर्मों को करते हुए काम क्रोध लोभ मोह से बचते हुए जीवन यापन करना चाहिए। उन्होंने कहा कि इस भाव में रहने वाला व्यक्ति स्वाभाविक तौर पर अध्यात्मिक शक्तियों के नजदीक होते हुए ईश्वर को प्राप्त करता है। लेकिन जो व्यक्ति इस संसार सागर में ही मोह माया के बंधन में पड़ा रहता है और संसार सागर के संबंधों को ही सब कुछ मान बैठा है वह जन्म जन्मांतर तक विभिन्न योनियों को भुगतता रहता है और उसे मुक्ति की प्राप्ति नहीं होती है।
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