महर्षि भारद्वाज और तीर्थराज प्रयागराज का क्या सम्बन्ध है

प्रयागराज। प्रयागराज में माघ पूर्णिमा के स्नान के साथ मेले की शुरुआत हो चुकी है। लेकिन कुछ ऐसी प्राचीनतम जानकारियां हैं जिन्हे शायद कम ही लोग जानते हैं। यहाँ तक की तीर्थराज प्रयागराज अस्तित्व में कैसे आया, इस जानकारी से भी हम सब अनभिज्ञ हैं। चलिए आप लोगों को एक चौपाई सुनाता हूँ –

भरद्वाज मुनि बसहिं प्रयागा। तिन्हहि राम पद अति अनुरागा॥
तापस सम दम दया निधाना। परमारथ पथ परम सुजाना॥

तीर्थों के राजा प्रयागराज में आज महर्षि भारद्वाज जयंती के उपलक्ष में शोभायात्रा निकाली गई। जिसमें सैकड़ों – हजारों के तादात में श्रद्धालु मौजूद रहे। शोभायात्रा सुबह 9 बजे बालसन चौराहे के महर्षि भारद्वाज आश्रम से शुरू होकर संगम तट पर जाकर खत्म हुई।
शोभायात्रा के समापन से पहले माँ गंगा जमुना सरस्वती के संगम तट पर सैकड़ों लोगों कि उपस्थिति में महर्षि भरद्वाज जी की प्रतिमा को जल स्पर्श कराया गया और फिर सगम तट की आरती हुई।

भले ही कई बार हमारे अस्तित्व को मिटाने की कोशिश की गई हो लेकिन आज भी दुनिया भर में सनातन धर्म की अलग ही पहचान है और इसीलिए दुनिया के कोने – कोने से लोग प्रयागराज मेले में पहुँचने को आतुर रहते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दूँ ऋषि भारद्वाज को प्रयागराज का प्रथम वासी माना जाता है अर्थात ऋषि भारद्वाज ने ही प्रयागराज को बसाया था। प्रयागराज में ही उन्होंने धरती के सबसे बड़े गुरूकुल की स्थापना की थी और हजारों वर्षों तक विद्यादान करते रहे। प्रयागराज मेले को लेकर ऐसी कई और रोचक जानकारियां हैं जो शायद ही अब तक आपने कभी सुनी हो या पढ़ी हो।

पुराणों में उल्लेख है कि वनवास के लिए चित्रकूट जाते वक्त श्री राम और लक्ष्मण ने प्रयागराज में महर्षि भरद्वाज से उनके आश्रम आकर आशीर्वाद लिया था। तमसा-तट पर क्रौंचवध के समय भारद्वाज महर्षि वाल्मीकि के साथ थे, वाल्मीकि रामायण के अनुसार भारद्वाज महर्षि वाल्मीकि के शिष्य थे।

चरक संहिता के अनुसार भारद्वाज ने इन्द्र से आयुर्वेद का ज्ञान पाया। ऋक्तंत्र के अनुसार वे ब्रह्मा, बृहस्पति एवं इन्द्र के बाद चौथे व्याकरण-प्रवक्ता बने। उन्होंने व्याकरण का ज्ञान इन्द्र से प्राप्त किया था। ऋषि भारद्वाज ने अनेक ग्रंथों की रचना की उनमें से यंत्र सर्वस्व और विमानशास्त्र की आज भी चर्चा होती है।

ऊपर जो चौपाई लिखी उसका भावार्थ है –
भरद्वाज मुनि प्रयाग में बसते हैं, उनका राम के चरणों में अत्यंत प्रेम है। वे तपस्वी, निगृहीत चित्त, जितेंद्रिय, दया के निधान और परमार्थ के मार्ग में बड़े ही चतुर हैं।

अब सोचिये जिन तकनीकों को लेकर आज के दौर में आपधापी लगी है, वो हमारे ऋषि – मुनियों ने हजारों – करोड़ों वर्ष पहले ही खोज निकला था। और इसका लोहा तो दुनिया के कई विकसित देश भी मानते हैं। अगर आप भी प्रयागराज वासी हैं तो आपके लिए शान की बात है।

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