त्योंथर रीवा, मप्र। एक ऐसा चुनावी क्षेत्र जिसमें बिना चुनावी सुगबुग़ाहट के ही राजनैतिक दंगल देखने को मिल जाते हैं। फिर चाहे कोई योजना को लेकर सड़क पर उतरना हो या ग़रीबों के हक़ के लिए अनशन करना हो। यहाँ भी बाक़ी जगहों कि तरह ही समस्याओं का प्रकोप है , जैसे बिजली आपूर्ति , पानी आपूर्ति , सड़क निर्माण , शिक्षा व्यवस्था आदि – आदि, हालाँकि ये समस्याएं स्थाई नहीं है। लेकिन इसके बावजूद भी कुछ तो अलग है, जो इस क्षेत्र को पृथक करता है।
इसी दंगल के बीच एक और कहानी शुरू हुई है, जिसमें प्रदेश के मुखिया ने महिला सशक्तिकरण को लेकर महिलाओं को बागडोर अपने हाँथ में लेने का इशारा किया है। शायद उन्होंने बिना कुछ कहे ही आगामी चुनाव में कई विधानसभाओं में महिलाओं को मज़बूत करने और विधानसभा की बागडोर उनके हाँथ में सौंपने का निर्णय लिया हो। हालाँकि इस चर्चा और अंदाजे में कोई सिर पैर नहीं है क्यूंकि अभी तक किसी भी तरह का किसी भी पार्टी कि तरफ से ऐसा कोई सन्देश नहीं जारी किया गया है। लेकिन अगर ऐसा हो तो, क्या इसमें कोई दिक्कत होगी ……
हालाँकि पिछले चुनाव में महिलाओं द्वारा अपनी चुनावी दावेदारी साबित की जा चुकी है, फिर चाहे वो जनपद पंचायत हो या जिला पंचायत या नगर परिषद। हालाँकि इस विषय में पार्टी ही तय करेगी की आगामी चुनाव में टिकट किसे देना है लेकिन शायद जनता इस बार इस फ़ैसले का भी जमकर स्वागत करेगी की किसी महिला नेत्री को बागडोर दी जाये क्यूँकि जो घर चला सकता है , उसके लिए जनता का दिल जीतना कौन सा मुश्किल होगा।
शायद! अब से पहले किसी ने भी महिला सशक्तिकरण को लेकर इतना बड़ा कदम नहीं उठाया है। अब देखना होगा कि जिस गद्दी से महिलाओं को क्षेत्र में महरूम रखा गया, क्या उन्हें आगे ये हक़ मिलेगा ?
क्योकि अधिकांशतः यह देखा गया है की महिला जनप्रतिनिधि होने के बावज़ूद सिर्फ हस्ताक्षर करने मात्र के काम आती हैं और बाक़ी उनके संरक्षक खुद को प्रतिनिधि मान क्षेत्र में घुमते हैं। अब ऐसे में महिला सशक्तिकरण कैसे और किन आधारों पर होगा ये तो समय निर्धारित करेगा। हमारा समाज जो महिलाओ को हर प्रकार की स्वतंत्रता देता है, वही जब राजनैतिक स्वतंत्रता की बात आती है तो किसी और राह की तरफ इशारा हो जाता है, पर गंभीरता से मंथन करना होगा।
खैर विषमताओ की बलि चढता त्योंथर, कब इस बात को समझेगा यह समय ही जाने।