रामचरित मानस हमें जीवन मूल्यों और आदर्शों की शिक्षा देती है – डीआईजी

राज्य आनंदम संस्थान द्वारा कमिश्नर कार्यालय सभागार में संभागीय अधिकारियों की एक दिवसीय अल्पविराम कार्यशाला का आयोजन किया गया। कार्यशाला का शुभारंभ करते हुए कमिश्नर बीएस जामोद ने कहा कि शासकीय सेवा में हम सबका जीवन इतना बंध गया है कि हमें स्वयं के संबंध में सोचने का समय नहीं मिलता है। हर व्यक्ति को प्रतिदिन अपने लिए कुछ न कुछ समय अवश्य देना चाहिए। स्वयं की अच्छाईयों को और बेहतर करने तथा कमियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए। यदि हमें कोई व्यक्ति छोटी सी भी सहायता देता है तो मन में कृतज्ञता का भाव अवश्य होना चाहिए। हर व्यक्ति को घर, परिवार, समाज, कार्यालय और जहाँ उसे अवसर मिले वहाँ दूसरों की मदद जरूर करें। इससे मन में जो आनंद की अनुभूति होती है उसे केवल महसूस ही किया जा सकता है। हमारे मन में कटुता, ईर्ष्या और क्रोध जैसे भाव कमियों के रूप में प्रकट होते हैं। मन में जब सही भाव होगा तभी आनंद होगा। मन में दया, क्षमा, करूणा और सहयोग की भावना का विकास करें। हम सबमें यह भावना ईश्वर ने दी हुई है। अपने मन के अंदर इनकी खोज करके इन्हें प्रतिदिन के जीवन में अमल में लाना है। आनंदम कार्यशाला का मुख्य उद्देश्य यही है कि हम आत्मावलोकन करके अपने जीवन की कमियों को दूर करें और जीवन को नई दिशा दें।

कमिश्नर ने कहा कि हर व्यक्ति के जीवन में दुख और सुख दोनों होते हैं। हमें अपनी खुशियों के कारण स्वयं तलाशने होंगे। हम किसी को दुखी न करें और परिस्थितियों के अनुसार आचरण करें। यदि कोई भूल हो जाती है तो अपना अहंकार त्यागकर निर्मल मन से क्षमा मांग लें। हमें क्षमा मांगना और क्षमा करना दोनों आना चाहिए। जीवन अनमोल है। इसके हर क्षण का आनंद लेना चाहिए। हमने दिन भर क्या कुछ किया इसका प्रतिदिन मूल्यांकन करना चाहिए। जीवन के उद्देश्य और जीवन के प्रति दृष्टिकोण सही होगा तो मन में सदैव अच्छे भाव आएंगे। क्रोध अथवा ईर्ष्या के भाव क्षणिक होंगे और हम जीवन का वास्तव में आनंद ले सकेंगे।

कार्यशाला में डीआईजी साकेत प्रकाश पाण्डेय ने कहा कि हमारी प्राचीन परंपरा में संयुक्त परिवार में लालन-पालन होने से हमें जो संस्कार आते थे उनसे स्वाभाविक रूप से सद्गुणों का विकास होता था। हम अपनी कमियों और असफलताओं को ईश्वर को समर्पित करके फिर से सकरात्मक दृष्टिकोण से कार्य करने लगते थे। अब माइक्रो परिवारों में इन संस्कारों का मिलना बहुत कठिन है। रामचरित मानस घर-घर पढ़ी जाती थी। रामचरित मानस हमें जीवन मूल्यों और आदर्शों की शिक्षा देती है। अब हम केवल मनोरंजन और यांत्रिक पाठ के रूप में रामचरित मानस पढ़ते हैं। इसे पढ़कर मनन करने और हृदय की गहराईयों में उतारने की आवश्यकता है। कार्यशाला में आनंदम विभाग के संचालक सत्यप्रकाश आर्य ने कहा कि अपने जीवन के मैनेजर हम स्वयं ही हैं। अपने गुणों, समय और आचरण का सही प्रबंधन करेंगे तो जीवन में आनंद अवश्यक मिलेगा। हम जो सोचते हैं और निर्णय लेते हैं उसके जिम्मेदार भी हम ही हैं। कभी-कभी संगीत सुनने, पर्यटन, कुछ अच्छा खाने से जो मजा मिलता है उसे हम आनंद मान लेते हैं। आनंद तब मिलता है जब हम अपने मन की ओर देखते हैं। भौतिक जीवन की आधुनिकतम सुविधाओं में जो हैं उनसे भी अधिक सुख उन लाखों साधु-संतों के पास है जो एक लंगोटी में घूम रहा है। उन्हें अपने जीवन का उद्देश्य, मन का भाव और जीवन का आनंद मिल गया है। जीवन को सही दिशा देने के लिए अपने आप से कनेक्शन करें, कमियों का करेक्शन करें और जीवन को सही डायरेक्शन दें।

कार्यशाला में आनंदम विभाग के प्रशिक्षकों ने छोटी-छोटी लघु फिल्मों, नुक्कड़ नाटक तथा अन्य माध्यमों से जीवन में प्रतिदिन की छोटी-छोटी घटनाओं से तनाव के कारण, परिवार और समाज में हमारे रिश्ते, आत्मावलोकन की पद्धति और छोटी-छोटी बातों से सुख की अनुभूति के संबंध में प्रस्तुतिकरण दिया। कार्यशाला में प्रशिक्षक साक्षी सहारे, पुनीत मैनी, संजय पाण्डेय तथा प्रदीप महतो ने जीवन में सकारात्मक दृष्टिकोण बनाए रखने तथा आनंद की अनुभूति के संबंध में रोचक बातें बताई। कार्यशाला के समापन पर सभी प्रतिभागियों को कमिश्नर तथा प्रभारी आईजी ने प्रमाण पत्र प्रदान किए। कार्यशाला का संचालन अतिरिक्त मुख्य कार्यपालन अधिकारी जनपद पंचायत रायपुर गोविंद नारायण श्रीवास्तव ने किया। कार्यशाला में संयुक्त आयुक्त दिव्या त्रिपाठी, संयुक्त संचालक महिला एवं बाल विकास श्रीमती ऊषा सिंह सोलंकी, मुख्य अभियंता ऊर्जा आईके त्रिपाठी, क्षेत्रीय संचालक स्वास्थ्य डॉ एमएल गुप्ता, अतिरिक्त संचालक उच्च शिक्षा आरपी सिंह, जन अभियान परिषद के संभागीय समन्वयक प्रवीण पाठक, संयुक्त संचालक सामाजिक न्याय अनिल दुबे, प्राचार्य कन्या महाविद्यालय डॉ विभा श्रीवास्तव, आनंदक तथा समाजसेवी डॉ. मुकेश येंगल तथा सभी संभागीय अधिकारी उपस्थित रहे।

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