रीवा की पंचायतीराज व्यवस्था रसातल में, भाजपा के नेता मंत्री और विधायकों ने खत्म करवा दी प्रदेश की पंचायतीराज व्यवस्था !

आपने शिव महापुराण का वह चर्चित प्रसंग तो सुना ही होगा जब एक तपस्वी असुर को हिंदुओं के देवता भगवान शिव उसकी तपस्या से अत्यधिक प्रसन्न होकर उसे बिना विचार किए मनचाहा वरदान दे देते हैं। वरदान भी ऐसा की आगे चलकर वह भगवान शिव के लिए ही मुसीवत बन जाता है। जी हां हम उसी चर्चित कथानक भस्मासुर और शिव प्रसंग जी बात कर रहे हैं। आज मप्र में वही देखने को मिल रहा है। हालांकि यहां सीधे तुलना नही की जा रही है और मात्र इस पूरे स्टेज को समझने का प्रयास किया जा रहा है जिससे आम जनता को भी वर्तमान परिवेश बखूबी समझ आ जाए की आखिर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में आजकल चल क्या रहा है। प्रदेश में सत्ताधारी पार्टी भाजपा का शासन है और जनता त्राहि त्राहि कर रही है। सुशासन से प्रारंभ हुआ भाजपा का जुमला दुशासन की तरफ मुड़ता नजर आ रहा है। जल जीवन मिशन का अरबों खरबों का घोटाला हो अथवा सड़क और खेतों में गोमाताओ की दुर्दशा, व्यापम, ई टेंडर घोटाला हो अथवा हरियाली परियोजनाओं के लाखों करोड़ों की संख्या में गायब पौधे, सरकारी टेंडर और कार्यों में सत्ताधारी पार्टी के लोगों के ठेके और पेटी ठेके हों अथवा सहकारता और कृषि विभाग में खाद बीज घोटाला, सिंचाई विभाग को दशकों से पड़ी अपूर्ण कृषि सिंचाई परियोजनाएं हो अथवा राजस्व पुलिस विभाग के अत्याचार हर जगह भ्रष्टाचार और अव्यव्यस्थाये अपने चरम पर है जिसे कोई देखने सुनने वाला नहीं है। पुरानी कहावतें जैसे अंधे पोएं कुत्ते खाएं, अंधेर नगरी चौपट राजा और जिसकी लाठी उसकी भैंस सभी मुहावरे चरितार्थ होते दिख रहे हैं। सैद्धांतिक और आदर्शवादी लोग बगलें झांक रहे हैं। भ्रष्टाचार से सराबोर सिस्टम में इस सिस्टम का विरोध करने वालों की कोई सुनवाई नहीं हो रही है। भ्रष्टाचार का विरोध अब सरकारी और सामाजिक शिष्टाचार का विरोध बन रहा है जिसे न तो सिस्टम स्वीकार कर रहा है और न ही बहुतायत समाज। यदि भ्रष्टाचार के विरोध की बात की जाती है तो सिस्टम तो था ही अब समाज भी कहता है की खाते हैं तो खाने दो आपका क्या जाता है। लेकिन जनाब इनके खाने से हमारा ही तो जा रहा है। हमारे टैक्स का पैसा ही तो जा रहा है। अब भला आमजन को यह बात कौन समझाए।

अब जरा रीवा और मऊगंज जिले की पंचायतीराज व्यवस्था की बात कर ली जाय तो यहां डॉक्टर मोहन यादव सरकार में पिछले 6 माह से अधिक समय से इन दो जिलों में जिला पंचायत सीईओ का पद खाली पड़ा है। यहां पूरा कामकाज अब प्रभार में चल रहा है। गौरतलब है की रीवा और मऊगंज दोनो जिलों को मिलाकर 820 से अधिक ग्राम पंचायतें हैं। हर रोज जिला पंचायत रीवा में सैकड़ों की संख्या में सरपंच सचिव पंचायत पदाधिकारी से लेकर आम जनता अपने छोटे बड़े काम लेकर आती है। इस उम्मीद और आस के साथ सैकड़ों किलोमीटर की यात्रा करके लोग आते हैं की उनकी समस्याओं को सुना जाएगा और उसका निराकरण किया जायेगा। लेकिन इसके उलट उनको कहां पता की रीवा और मऊगंज के लिए तो सरकार के पास सीईओ जिला पंचायत ही नहीं बचा है। जाहिर है यदि कोई सीईओ बचा होता तो वह पदस्थापित होकर यहां सीट पर बैठता और लोगों की समस्याएं सुनता।
विश्लेषकों का मानें तो विंध्य और विशेषकर रीवा संभाग में सत्ताधारी पार्टी के कुछ नेताओं का मजबूत होना ही जनता को कमजोर होना माना जा रहा है। इन कथित कुछ नेता मंत्री के मजबूत होकर बड़ा पद पाने से इनकी पूरे संभाग और विंध्य क्षेत्र में अपनी मनमुताबिक पकड़ बनाने की भस्मासुर वाली लालसा ने ऐसी परिस्थिति निर्मित कर दी है की यह सुनिश्चित नही कर पा रहे की अपने जी हजूरी करने वाले किन अधिकारियों को किस कुर्सी में बैठाया जाय जिससे पूरे सिस्टम को हाईजैक करके रखा जाय। जाहिर है इन सत्ताधारी पार्टी के कुछ कथित नेताओं के मजबूत होने का परिणाम यह है की प्रतिपक्ष और जनता दोनो ही इस लोकतंत्र में कमजोर होकर अब मारी मारी फिर रही है और न तो कहीं कोई सुनवाई हो रही है और भ्रष्टाचार अपने चरम की तरफ बढ़ रह है।

तो मतलब पूरी कथा का सार यह है की यदि जनता ने इस लोकतंत्र में किसी पार्टी विशेष को मजबूती दी है और वह सत्ता में आ गई तो न केवल प्रतिपक्ष कमजोर हुआ बल्कि जनता स्वयं कमजोर हुई है। सत्ताधारी पार्टी की जरूरत से ज्यादा मजबूती का मतलब जनता ने अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी। इसका जीता जागता उदाहरण रीवा मऊगंज में स्पष्ट दिखने को मिल रहा है, जहां पार्टी विशेष के लोगों और उनके कार्यकर्ताओं की मौज है और सुशासन की बात करने वालों और सरकारी सिस्टम में व्याप्त व्यापक भ्रष्टाचार के विरोध में लड़ने वालों की कोई सुनवाई नहीं हो रही। इसलिए शिव महापुराण की भस्मासुर और शिव की वह कथा बार बार सुनाने का मतलब यही है की हमे अपने इतिहास ग्रंथों से अभी भी बहुत कुछ सीखने की आवश्यकता है।

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