आखिर सहकारिता और खाद्य विभाग ने ऐसा क्या लिखा जिस पर राहुल सिंह ने लिया ऐतिहासिक निर्णय

मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह के एक बड़े आदेश ने न केवल पूरे मध्य प्रदेश में बल्कि भारतवर्ष के सहकारी संस्थाओं में भूचाल ला दिया है। आखिर क्या था उस आरटीआई में जिसने राहुल सिंह को इतने बड़े आदेश देने पर मजबूर किया? सहकारी विभाग की कार्यप्रणाली पर क्यों उठ रहे थे सवाल? और ऐसा क्या विशेष था इस विभाग में जो यह अपने आपको सूचना के अधिकार के दायरे से बाहर बता रहे थे? इन सब बातों का विश्लेषण करने के लिए आइए समझते हैं उस आरटीआई आवेदन को जिसमें मध्य प्रदेश के आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी ने एक ऐसी जानकारी मांगी जिसने सहकारिता विभाग की पूरी कार्यप्रणाली पर प्रश्न खड़ा कर दिया। बड़ा सवाल यह था की क्या आम और गरीब नागरिकों को राशन मुहैया कराने वाले सरकारी राशन की दुकान के विक्रेताओं को उनका हक समय पर दिया जाता है अथवा नहीं। इन्हीं कुछ पेमेंट भुगतान को लेकर लगाई गई इस आरटीआई ने सहकारिता विभाग की पोल खोल दी। अब इस दायरे में न केवल सहकारिता विभाग था बल्कि खाद्य और सहकारी बैंक भी कार्यवाही के जद में आ गए।

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सेल्समैन को समय पर पेमेंट न मिलने से सहकारी राशन की दुकानों में हो सकती है चोरी

सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी से चर्चा करने पर उन्होंने बताया की सेल्समैन की पेमेंट से संबंधित जानकारी लेने के पीछे उनका बड़ा उद्देश्य यह था की सरकारी राशन की दुकानों में शासन की महत्वाकांक्षी पीडीएस योजना का खाद्यान्न आखिर गरीबों के मुंह तक क्यों नहीं पहुंच रहा है? बड़ा सवाल यह था की मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री अन्नपूर्णा योजना एवं प्रधानमंत्री योजना के तहत दिया जाने वाला खाद्यान्न की आखिर आए दिन चोरी क्यों हो रही है? इन सवालों की तह पर पहुंचने पर पता चला की अमूमन जिन कुछ राशन की दुकानों में यह चोरी होना बताया जाता था वहां के विक्रेताओं को कई महीनो और यहां तक की वर्षों से पेमेंट ही नहीं मिले हैं। नाम उजागर न होने की स्थिति में कुछ विक्रेताओं ने बताया की ऑनलाइन सिस्टम होने से अब उन्हें कोई फायदा नहीं रह गया इसलिए न तो पेमेंट मिलती है और न ही परिवार चलाने का कोई दूसरा तरीका होता है जिसके कारण कई बार खाद्यान्न में ऊपर नीचे हो जाता है।

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गरीबों के निवाले की चोरी में किन किन की भूमिका?

अब बड़ा सवाल यह है की सरकार की योजना में तो आम जनता के थाली पर तक अनाज को पहुंचाया जा रहा था लेकिन आखिर यह सब घोटाला क्यों हो रहा था? दूसरा पहलू इसका यह भी था कि यदि विक्रेताओं को समय पर पेमेंट का भुगतान नहीं होगा तो वह अपना जीवन और परिवार कैसे चलाएंगे ऐसे में एक ऐसी आरटीआई लगाई जाने की आवश्यकता थी जिसमें सहकारी संस्थाओं में विक्रेताओं को मासिक पेमेंट भुगतान को लेकर व्याप्त अनियमिताओं की जानकारी सार्वजनिक पोर्टल पर साझा की जाए।
इसी बात को लेकर शिवानंद द्विवेदी ने आरटीआई लगाई और आरटीआई में जानकारी न मिलने पर प्रथम और द्वितीय अपील सूचना आयोग में की गई जहां द्वितीय अपील की सुनवाई के दौरान मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त राहुल सिंह ने स्थिति की गंभीरता को देखते हुए पूरे मध्य प्रदेश की सहकारी संस्थाओं को आरटीआई के दायरे में लाए जाने के अपने महत्वपूर्ण निर्णय दे दिए।

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अब सहकारी समितियां जानकारी को न नहीं कह सकती

आरटीआई एक्टिविस्ट शिवानंद द्विवेदी द्वारा लगाई गई आरटीआई के एक महत्वपूर्ण निर्णय में मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त श्री राहुल सिंह ने समितियों को सरकार के द्वारा प्राप्त होने वाली अंश पूंजी, ब्याज अनुदान, खाद बीज वितरण में सब्सिडी प्रोग्राम, सरकारी राशन की दुकानों में विक्रेताओं को सहकारिता विभाग के माध्यम से शासन के द्वारा प्राप्त होने वाली कमीशन और पेमेंट, धान एवं गेहूं उपार्जन आदि का लेखा-जोखा लगाने के बाद यह पाया गया कि मध्य प्रदेश की लगभग सभी सहकारी समितियां मध्य प्रदेश शासन द्वारा निर्धारित मापदंड 50 प्रतिशत अनुदान अथवा 50 हजार रुपए जो भी कम हो उसके दायरे में आ रही है। इस प्रकार समितियों को सूचना के अधिकार कानून के दायरे में लाया जाना अत्यंत आवश्यक था जिसके चलते उन्होंने यह ऐतिहासिक निर्णय दिया।

बड़ा सवाल: अब क्या मप्र की तरह देश के अन्य राज्यों में सहकारी संस्थाओं को आरटीआई के दायरे में लाया जा सकेगा?

अब जानकारों का यह मानना है कि मध्य प्रदेश राज्य सूचना आयुक्त के इस निर्णय ने न केवल मध्य प्रदेश बल्कि पूरे भारत वर्ष में सहकारी समितियां को आरटीआई कानून के विधिवत दायरे में लाने की चर्चा को तेज कर दिया है। अब सिर्फ आवश्यकता है कि हर राज्य में इसी आदेश का हवाला देते हुए हाईकोर्ट में पिटीशन दायर की जाए इसके बाद सहकारी समितियां को विधिवत आरटीआई के दायरे में लाया जा सके।

इस आदेश को लेकर देश के ग्रामीण क्षेत्र में किसानों, मजदूरों, ग्रामवासियों में खुशी की लहर है क्योंकि अब तक मध्य प्रदेश में सहकारी समितियों में महत्वपूर्ण शासन की योजनाओं से संबंधित जानकारी साझा नहीं की जाती थी और सहकारी समितियां अपने आपको सूचना के अधिकार कानून के दायरे से बाहर बताया करती थीं। अब इस आदेश के बाद सहकारी समितियां सूचना के अधिकार के दायरे में आ चुकी हैं और प्रदेश में आम जनमानस में खुशी की लहर है।

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