रीवा के जवा तहसील अंतर्गत शासकीय मॉडल उच्चतर माध्यमिक विद्यालय सितलहा में विद्यालय के प्राचार्य पीके द्विवेदी पर आरोप लगे थे कि लापरवाही के चलते कक्षा दसवीं में पढ़ने वाली छात्रा आंचल सिंह पिता मुनेश सिंह परीक्षा फॉर्म भरने से वंचित रह गई और जिसके चलते वो परीक्षा नहीं दे पाई। आँचल ने बताया की परीक्षा को लेकर जो भी शुल्क बताया गया था वो जमा कर दिया गया था। बावजूद न तो बच्ची का फॉर्म भरा गया और न ही स्कूल प्रशासन की तरफ से कोई सूचना परिजनों को दी गई। छात्रा ने पूरे मामले की शिकायत जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय आकर लिखित में भी की थी। जिसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी गंगा प्रसाद उपाध्याय ने पूरे मामले की जांच के निर्देश दिए थे। जहां जिला शिक्षा अधिकारी ने बताया कि जांच रिपोर्ट आने के बाद इस पूरे घटनाक्रम में प्रिंसिपल की लापरवाही सिध्द हुई है। जिसके बाद जिला शिक्षा अधिकारी कार्यालय से प्रिंसिपल प्रदीप कुमार द्विवेदी के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए हैं।
मामले में जिला शिक्षा अधिकारी ने बताया कि लापरवाही की वजह से एक छात्रा के परीक्षा से वंचित होने की शिकायत मिली। जिसके बाद जांच रिपोर्ट में ये पाया गया कि छात्रा विद्यालय की नियमित विद्यार्थी है। छात्रा त्रैमासिक, अर्द्धवासिक और जनवरी तक उपस्थित रही है। ऐसे में प्राचार्य की जिम्मेदारी होती है कि विद्यार्थियों के परीक्षा फॉर्म के प्रति वे सचेत रहे। यदि विद्यार्थियों से कोई गड़बड़ी भी होती है तो उसकी पूर्ति करवाए लेकिन प्राचार्य की लापरवाही की वजह से बच्ची का साल खराब हुआ। इसलिए ऐसे प्रिंसिपल के खिलाफ मैंने अनुशासनात्मक कार्यवाही का प्रस्ताव भेजा है।
बच्ची का तो साल ख़राब
इस पूरे मामले में अगर किसी पर सबसे ज्यादा बोझ है तो वो है छात्रा आँचल पर। आँचल ने साल भर पढ़ाई बोर्ड परीक्षा देने के लिए की थी लेकिन प्राचार्य की लापरवाही की वजह से उसे एक और साल इंतजार करना पड़ेगा। ऐसे में महज छोटी – मोटी कार्यवाई कर प्राचार्य को बहाल कर दिया जायेगा लेकिन क्या इस गंभीर विषय पर जिला शिक्षा अधिकारी या मंडल में बैठे कर्मचारी – अधिकारी विचार करेंगे कि “बच्ची का साल” कैसे बचाया जाय या फिर महज खानापूर्ति से ही काम चलाया जायेगा।
एक नज़र
जिले भर में शासकीय विद्यालयों की मनमानी किसी से छुपी नहीं है। पहले भी कई बार स्कूलों में चल रही अनियमितताओं को लेकर खबरें चलीं लेकिन जिला शिक्षा अधिकारी या जिला दण्डा अधिकारी की तरफ से मुँह फेर लिया गया। अब ऐसे में न जाने और कितने बच्चे अपना भविष्य ऐसे ही शासकीय स्कूलों में दांव पर लगाये बैठे हैं और सरकार सिर्फ बैनर – पोस्टर में सर्व शिक्षा अभियान का दावा करती सोशल मीडिया से लेकर नुक्कड़ चौराहे में दिख जाती है।