चूहों की बस्ती में सर्पों का बसेरा है – रामलखन गुप्त

आज नागपंचमी है। नाग की पूजा होगी। नाग के बहाने पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी सर्पों के प्रति अभय भाव धर्म के नाम पर उपस्थित हो ही जाएगा।
साँप के बारे में अनेक अवधारणायें जनमानस में विद्यमान हैं। कहीं नागलोक के माध्यम से उनकी एक अलग सृष्टि और संसार होने की कल्पना मन मस्तिष्क में विद्यमान हो जाती है, तो कहीं इच्छाधारी के नाम पर यह कल्पना कि सर्प प्रजाति में ऐसे भी सर्प होते हैं जो इच्छा के अनुकूल अपना रूप धारण करके जनमानस को अचंभित करते हैं। नाग नागिन के जोड़े पर बनी फिल्म में भी श्रीदेवी ने इच्छाधारी नागिन के रूप में इच्छाधारी नाग की कल्पना को प्रस्तुत करने का सफल अभिनय किया। इच्छाधारी नागिन ने सुंदर स्त्री के रूप में पूर्व जन्म के नागराज को खोजकर उसके साथ अपना जीवन गुजारने की कोशिश की। साँपों की बात आती है तो नागमणि की बातों से लोककथायें अछूती नहीं है। एक प्रकार से पृथ्वी पर जितने दैविक चमत्कारों की चर्चा लोगों में होती है उससे कम आश्चर्य और जिज्ञासा साँपों के प्रति लोगों में नहीं है। कुछ विद्वानों की बात माने तो नगाइच, नागपाल आदि मानव जाति नागलोक की भावना से पृथक नहीं है। कई स्थान के नाम ही नाग से शुरू होते हैं तो कहीं न कहीं लोगों के मन में यह बात आती है कि शायद यहाँ नागवंश से जुड़े लोगों की कभी बस्ती रही होगी। सवाल यहाँ इस बात का है कि सर्पों का आहार चूहा है। चूहा की पूजा पृथक से नहीं होती, यदि कहीं चूहा का मान-सम्मान हुआ है तो वह गणेश जी की सवारी के रूप में। जिसका शोषण होता है उसकी चर्चा नहीं होती, वह निरीह और कमजोर होता है। कमजोर की चर्चा भला समाज क्यों करेगा? शोषण करने वाले की पूजा का विधान सदियों से चला आ रहा है। कहते हैं कि साँप अपना बिल नहीं बनाता, वह चूहे के द्वारा बनाए गए बिल में प्रवेश करता है। चूहे को खा जाता है और उसके बिल में अपना साम्राज्य स्थापित कर लेता है। मानव समाज के बदलते परिवेश में ऐसे अनेक दृश्य हैं जहाँ छोटे और कमजोर तबके के लोग अपना आवास बनाते तो हैं पर दबंग लोग उस पर काबिज होकर उसके अस्तित्व को समाप्त करके उसके परिश्रम से बनाए गए आवास को भी हथिया लेते हैं। चाहे वह कोई राजनीति हो अथवा संस्था। व्यक्ति के जीवन में ऐसे अनेक उदाहरण हैं। जिन्होंने जिस संस्था की रचना की, जिसके लिए संघर्ष किया। उसे एक अच्छा आकार देकर समाज में उसे प्रतिस्थापित किया लेकिन नाग जैसे कुटिल विषधारी लोग उसे हजम कर गए अथवा उस पर कुंडली मारकर बैठ गए। नाग की पूजा आज घर-घर में होगी, नाग को दूध पिलाया जाएगा और प्रणाम भी किया जाएगा। लेकिन ऐसे नाग से समाज को कैसे बचाया जाए जो चूहे के बनाये बिल में घुसकर चूहे को खा जाते हैं और उसके बिल पर अपना कब्जा भी जमा लेते हैं। नाग पंचमी पर न केवल नाग के एक दैविक पक्ष को देखा जाय बल्कि समाज में ऐसे तत्वों पर भी दृष्टि डाली जाय जो सदा सर्वदा साँपों के शिकार होते चले आए हैं।

चूहों की बस्ती में सर्पों का बसेरा है। बचाने का वादा नेताओं का डेरा है।।
राजनीति हो या कोई संस्था उसको संचालित करने वाले लोगों से यह भी तो नहीं कहा जा सकता कि वे केवल चूहा बन कर रहें, और आए दिन नया बिल बनाते ही रहें और न तो उनसे यह कहा जा सकता कि वे चूहों के बिल में साँप बनकर न रहे। नागपंचमी नागों की पूजा के साथ एक अवसर प्रदान करता है उन लोगों के बारे में चिंतन करने के लिए जिनके बल पर देश और समाज का कमजोर तबका जीवित है। नाग पंचमी की अनन्त शुभकामनायें। (रामलखन गुप्त ‘पत्रकार’)

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