एक समय था जब मध्यप्रदेश के कोने – कोने में सरकारी बसें दौड़ती थीं जिससे सवारियों को सुगमता रहती थी लेकिन न जाने किसकी नज़र लग गई कि मध्य प्रदेश में सड़क परिवहन निगम कि सभी बसें अचानक से सेवा मुक्त हो गईं और डिपो बंद कर दिया गया। हालाँकि मध्य प्रदेश राज्य परिवहन को लेकर किसी सरकार ने कभी कोई गंभीरता नहीं दिखाई। मध्य प्रदेश के बारे में यह जानकारी कई लोगों को हैरत में डाल सकती है कि यह देश का ऐसा प्रदेश है जहाँ सरकार ने मध्य प्रदेश राज्य परिवहन की बसों को पूरी तरह से बंद कर दिया था और विस्तृत क्षेत्रफल एवं रेल लाइनों के कम घनत्व के बावजूद राज्य सरकार ने जनता को प्राइवेट बस ऑपरेटरों के सहारे छोड़ दिया। इस सरकारी कवायद का सबसे महत्वपूर्ण पहलू यह है कि हर दिन लाखों यात्रियों को इसका खमियाजा भुगतना पड़ रहा है। दूसरी तरफ, राज्य सेवा बंद होने के बाद निजी बसों में मनमाना किराया वसूल किया जाता है और सवाल करने पर सवारी को आधे रास्ते में उतार दिया जाता है।
दरअसल, मध्य प्रदेश में सड़क परिवहन निगम की बसों का बंद होना आर्थिक अनियमतिता की ऐसी कहानी है जिसने नेताओं के लिए करोड़ों रुपये के मुनाफे का एक नया रास्ता खोला था। इसके पीछे की कहानी बताती है कि मध्य प्रदेश में कैसे करोड़ों की आबादी के लिए हर दिन लुटने की परिस्थितियां भी पैदा कर दी गई है।
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निगम की बसें बिकने के बाद प्राइवेट बसों से अनुबंध
जानकरों कि माने तो मध्य प्रदेश में राज्य सड़क परिवहन निगम पर संकट के बादल वर्ष 2000 के पहले से ही मंडराने लगे थे। ये खुलासा दैनिक भास्कर ने आठ साल पहले ही अपनी एक रिपोर्ट में किया था। जिसमें लिखा हुआ था कि, ” रोडवेज इंटक संगठन के ग्वालियर संभाग के तत्कालीन अध्यक्ष सत्यप्रकाश शर्मा बताते हैं कि वर्ष 2000 से नया सिस्टम लागू हुआ था। जिसमें निगम की बसें बिकने के बाद प्राइवेट बसों को इससे अनुबंधित किया गया। तब बसों पर लिखाया गया था मप्र राज्य सड़क परिवहन निगम से अनुबंधित। इस सिस्टम में बस प्राइवेट मोटर मालिक की होती थी और ड्राइवर भी उनका ही होता था, लेकिन कंडक्टर रोडवेज का रहता था। जिसे वेतन रोडवेज देती थी। यह अनुबंध सिस्टम वर्ष 2006 से समाप्त होना शुरू हुआ और वर्ष 2007 में पूरा रोडवेज ही बंद हो गया। ” अब ऐसी रिपोर्ट को अगर आधार माने तो सिर्फ दो ही चीज़ सामने आती हैं। पहली शासन – प्रशासन के प्रबंधन में बड़ी गड़बड़ी थी जिसकी वजह से राज्य सड़क परिवहन निगम को घाटा हुआ और धीरे – धीरे कर के ठप्प और दूसरी जानबूझ कर लापरवाही बरती गई ताकि कमीशन कि मोटी रकम वसूली जा सके।
फिर से शुरू हुई कवायद ठन्डे बस्ते में
आज भी अन्य राज्यों में राज्य परिवहन कि सरकारी बसें धड़ल्ले से सड़कों पर दौड़ती हैं लेकिन मध्य प्रदेश में यह सुविधा सिर्फ एक सपना बन कर रह गई है। अगर बात करें मध्य प्रदेश के पड़ोसी राज्यों कि जिनमें उत्तरप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान शामिल हैं, वहाँ सरकारी बसें सड़कों पर फर्राटे भरती देखी जा सकती हैं। साथ ही कुछ राज्यों की बसें तो मध्य प्रदेश में भी दाखिल होती हैं। खबरों कि मानें तो मध्य प्रदेश सरकार ने साल 2015 में राज्य परिवहन को फिर से शुरू करने कि कवायद भी कि थी, जिसके लिए मप्र इंटरसिटी ट्रांसपोर्ट अथाॅरिटी (एमपीआईटीए) का गठन कर कुछ पदों को भर भी दिया था, पर यह सपना अब तक पूरा नहीं हो पाया। जिसका खामियाजा सबसे ज्यादा सीमावर्ती जिलों के लोगों को उठाना पड़ रहा है।
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नियंत्रण से बाहर निजी बस संचालक
निजी बस संचालकों की मनमानी इस कदर बढ़ गई है कि किसी भी कार्यवाई से उन्हें भय नहीं, जिससे यह अंदाजा लगाना गलत नहीं होगा कि जिम्मेदार अधिकारीयों के साथ – साथ इन्हे राजनितिक संरक्षण भी प्राप्त है। सूत्रों कि माने तो कुछ बस संचालकों द्वारा प्रति माह अधिकारियों को खुश रखने के लिए कमीशन कि मोटी रकम बांटी जाती है, जिसकी वजह से नियमों को अनदेखा कर मनमानी ढंग से बसों का संचालन किया जाता है। क्षमता से अधिक यात्रियों को ठूँसा जाता है। मनमाने हिसाब से किराया वसूला जाता है। छोटी – छोटी दूरियों को कई घंटो में पार किया जाता है। अगर सवारी विरोध करती है तो उसे बीच रास्ते उतार दिया जाता है। लेकिन इतना सब कुछ होने के बावजूद किसी अधिकारी के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।
एक नज़र
यात्री परिवहन को लेकर मध्य प्रदेश में आये दिन निजी वाहन संचालकों और यात्रियों के बीच तू – तू – मैं – मैं सुनने – देखने को मिलता रहता है। कई बार हालात इतने संवेदनशील हो जाते हैं कि हांथापाई कि नौबत भी आ जाती है। कई वाहनों में तो तख्ती कहीं और कि लिखी होती है जबकि लिखे स्थान से कई किलोमीटर पहले ही वाहन खड़े कर दिए जाते हैं। अब इतना सब हो रहा है और शासन – प्रशासन से जुड़े लोग भी इन्ही वाहनों में सफर कर रहे बावजूद इसके यात्री सुरक्षा को लेकर कोई ठोस कदम नहीं उठाये गए और न ही राज्य परिवहन कि बसें जमींन पर उतरीं हैं। अब देखना है कि सरकार जनता के इस समस्या को लेकर क्या खाका तैयार करती है और कब तक यात्रियों से जुड़ी योजना को लेकर जमींन पर उतरती है। ( चन्दन )
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