महाविद्यालय शिक्षा में नियमित कक्षा न चलने से छात्रों का भविष्य हो रहा है अंधकारमय


जो बच्चे इंटर की कक्षा उत्तीर्ण करके महाविद्यालय में जाते हैं वहाँ उनका पठन-पाठन पूरी तरह से खत्म होता जा रहा है। देखा गया है कि महाविद्यालयों में विशेष तौर पर निजी महाविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश सिर्फ पैसा लेकर डिग्री बांटने तक ही सीमित रह गया है।

चाकघाट। महाविद्यालयों में नियमित कक्षाओं के न चलने से जहाँ एक और छात्रों का भविष्य अंधकार में होता जा रहा है वहीं महाविद्यालयीन शिक्षा में पठन-पाठन की परंपरा शनैः शनैः समाप्त होती जा रही है। अनेक महाविद्यालयों में इस समय नियमित पढ़ाई नहीं हो रही है। जो बच्चे इंटर की कक्षा उत्तीर्ण करके महाविद्यालय में जाते हैं वहाँ उनका पठन-पाठन पूरी तरह से खत्म होता जा रहा है। देखा गया है कि महाविद्यालयों में विशेष तौर पर निजी महाविद्यालयों में छात्रों का प्रवेश सिर्फ पैसा लेकर डिग्री बांटने तक ही सीमित रह गया है। संस्थाओं के लोग नहीं चाहते कि नियमित रूप से कक्षाएँ लगे और उन को पढ़ाने के लिए योग्य शिक्षकों को रखना पडे। अधिकांश महाविद्यालयों का लक्ष्य छात्रों का प्रवेश और परीक्षा तक ही सिमटता जा रहा है ऐसी स्थिति में जो विद्यार्थी महाविद्यालय के माध्यम से अपना भविष्य बनाना चाहते हैं उनका भविष्य अंधकार में होता जा रहा है।

जो लोग महाविद्यालय में प्रवेश लेकर केवल परीक्षा देने के लिए आते हैं वेअपने भविष्य को लेकर अन्यत्र भी कहीं न कहीं काम रहते हैं किंतु जो ऐसे गरीब बच्चे हैं जो महाविद्यालय की शिक्षा को ही अपने जीवन और भविष्य का आधार मानते हैं उनके भविष्य के साथ खुला खिलवाड़ हो रहा है, जिसे रोका जाना चाहिए। महाविद्यालय केवल प्रवेश, पैसा और परीक्षा तक सीमित न रहे। किन्तु पठन-पाठन की परंपरा जो धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में शासन द्वारा कोई भी ऐसी टीम का गठन नहीं किया गया है जो आकस्मिक रूप से महाविद्यालय में अध्ययनरत छात्रों का आकस्मिक निरीक्षण करके महाविद्यालय में नियमित छात्रों की स्थिति एवं पठन-पाठन का स्तर देखें ।आरोप है कि विश्वविद्यालय भी अब पठन-पाठन के बजाय सिर्फ डिग्री बाँटने वाली संस्था बनती जा रही है जहाँ छात्रों की सूची ,परीक्षा फीस, परीक्षा की औपचारिकता,परीक्षा परिणाम पत्र ही लक्ष्य रह गया है। उच्च शिक्षा के क्षेत्र में पठन-पाठन का गिरता स्तर एक ओर विद्यार्थियों के भविष्य को नष्ट कर रहा है वहीं दूसरी ओर नियमित कक्षाओं की परंपरा को भी समाप्त करता जा रहा है। मात्र परीक्षा केंद्र बदलना ,परीक्षा में कडाई करना, कहां का न्याय है जब पठन-पाठन के बारे में चिंतन करना उचित नहीं समझा जाता । उच्च शिक्षा विभाग से संबंधित समस्त जिम्मेदार लोगों से आग्रह है कि वह महाविद्यालयीन शिक्षा में नियमित कक्षाओं के संचालन एवं बच्चों के पठन-पाठन को लेकर गंभीर बने तथा नियमित कक्षाएँ न चलाने वाली संस्थाओं और वहां के संस्था प्रमुखों के विरुद्ध कार्यवाही करे।पता चला है कि इस संदर्भ में नियमित कक्षाओं को लेकर एवं गुणवत्ता युक्त पठन-पाठन को लेकर शीघ्र ही एक जिम्मेदार लोगों की बैठक संभावित है। जिसमें महाविद्यालयों में पठन-पाठन को लेकर गिरते स्तर पर विचार विमर्श किया जा सकता है।

  • राम लखन गुप्त, वरिष्ठ पत्रकार

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