किसान फसलों में उर्वरकों का संतुलित उपयोग करें – उप संचालक कृषि

जिले के कृषकों को सलाह दी गई है कि वह डीएपी के स्थान पर एनपीके उर्वरकों का प्रयोग करें। कृषि वैज्ञानिकों ने अपनी सलाह में कहा है कि डीएपी में केवल दो तत्व नाइट्रोजन व फास्फोरस प्राप्त होते हैं। जबकि एनपीके उर्वरक से फसलों के लिए आवश्यक सभी तीन मुख्य पोषक तत्वों नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की उपलब्धता होती हैं। इस प्रकार एनपीके उर्वरक से नत्रजन एवं स्फुर के अलावा पौधों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व पोटाश की पूर्ति किसान भाई सफलतापूर्वक कर सकते हैं। अत: एनपीके उर्वरक का प्रयोग करने पर किसान भाईयों को अलग से पोटाश डालने की जरूरत नहीं पड़ती है व लागत में कमी आती है। उप संचालक कृषि यूपी बागरी ने किसान भाईयों के लिए डीएपी के स्थान पर एनपीके खाद का उपयोग करने की सलाह दी है।

उप संचालक ने कहा है कि फसलों में उर्वरकों का संतुलित उपयोग लाभदायक होता है। डीएपी के स्थान पर सिंगल सुपर फास्फेट और एनपीके का उपयोग अधिक लाभदायी है। इससे जमीन को सल्फर की प्राप्ति होती है। सिंगल सुपर फास्फेट का उपयोग खेत की तैयारी के समय किया जाता है। जिससे यह फसलों में अधिक कारगर रहता है। डीएपी में उपलब्ध 18 प्रतिशत नाइट्रोजन में से केवल 15 प्रतिशत नाइट्रोजन तथा 46 प्रतिशत फास्फोरस में से 39 प्रतिशत फास्फोरस पानी में घुलकर मिट्टी को प्राप्त होता है। शेष फास्फोरस मिट्टी में जमा हो जाता है जिससे मिट्टी कठोर हो जाती है। इसकी जल धारण क्षमता घटती है। उप संचालक ने बताया है कि आगामी फसल में शंकर धान एवं शंकर मक्का के लिए नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश एनपीके खाद का उपयोग अधिक लाभकारी होगा। दलहन एवं तिलहन फसलों में 80:40:30 एनपीके तथा सल्फर का उपयोग लाभदायी होगा।

उप संचालक ने बताया है कि किसान नैनो तकनीक पर आधारित खाद का भी उपयोग कर सकते हैं। फसलों के लिए 20 प्रतिशत नाइट्रोजन से युक्त नैनो यूरिया तथा 8 प्रतिशत नाइट्रोजन एवं 16 प्रतिशत फास्फोरस से युक्त नैनो डीएपी उपलब्ध है। इनके निर्धारित मात्रा में उपयोग से फसलों को संतुलित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। सामान्य तौर पर एक स्वस्थ पौधे में नाइट्रोजन की मात्रा 1.5 से 4 प्रतिशत तक होती है। फसलों की बढ़वार की स्थिति में इनमें नैनो यूरिया एवं नैनो डीएपी का पत्तियों में छिड़काव करने से पौधों को कारगर तरीके से नाइट्रोजन और फास्फोरस की उपलब्धता हो जाती है। इनके उपयोग से पैदावार में वृद्धि होती है तथा मिट्टी के स्वास्थ्य में भी सुधार होता है।

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