भ्र्ष्टाचार पर वार : 27 लाख के गबन और वसूली के खिलाफ लगी 5 रिट याचिकाएं खारिज

जिला रीवा के गंगेव जनपद अंर्तगत सेदहा पंचायत के तत्कालीन सरपंच पवन कुमार पटेल और सचिव दिलीप कुमार गुप्ता द्वारा दायर की गई आधा दर्जन याचिकाएं खारिज कर दी गई हैं। गौरतलब है की कमिश्नर कलेक्टर और सीईओ जिला पंचायत द्वारा कराई गई जांच के विरुद्ध उक्त आरोपियों ने हाई कोर्ट जबलपुर में रिट याचिकाएं दायर की थी। दायर याचिकाओं में कार्यपालन यंत्री ग्रामीण यांत्रिकी सेवा संभाग रीवा की टीम द्वारा की गई जांच को रोकने और वसूली न करने के लिए था सभी याचिकाएं दायर की गई थी।

याचिकाओं को हाई कोर्ट ने किया खारिज
दरअसल तत्कालीन सरपंच एवं सचिव द्वारा रिट याचिकाएं दायर करते हुए कहा गया की कमिश्नर और सीईओ जिला पंचायत द्वारा जो भी जांचे करवाई गई हैं वह गलत हैं और आरोपियों द्वारा मौके पर कार्य किए गए हैं। यही नहीं जांच उपरांत पाए गए इन दोषियों ने न्यायालय सीईओ जिला पंचायत रीवा की धारा 89 की सुनवाई के बाद पारित आदेश पर भी सवाल खड़ा कर दिया और आदेश के विरुद्ध में छठी याचिका हाई कोर्ट जबलपुर में लगा दी थी। सरपंच पवन पटेल और जीआरएस दिलीप गुप्ता द्वारा जो जो रिट याचिकाएं दायर की गई थीं उनमें डब्लूपी क्रमांक WP 28852/2023, WP 21378/2022, WP 8908/2023, 27306/2022, WP 2135/2022 एवं WP 29266/2022 हैं। जिनमे इनकी पांच याचिकाएं अब पूरी तरह से खारिज हो चुकी हैं।

7 दिन के समय अवधि पूरी होने और अब 3 माह बाद भी कोई कार्यवाही नहीं
सबसे बड़े ताज्जुब की बात तो यह है जिला पंचायत सीईओ संजय सौरभ सोनवणे द्वारा सेदहा पंचायत के सरपंच सचिव और दोषी पाए गए दो इंजीनियर एवं 2 सहायक यंत्रियोंं को धारा 89 की सुनवाई के बाद 7 दिवस का समय 27 लाख वसूली राशि जमा करने हेतु दिया गया था लेकिन आज 3 माह से अधिक समय व्यतीत होने के बाद भी न तो वसूली और न ही गबन के विरुद्ध एफआईआर दर्ज किया जाना स्पष्ट दर्शाता है की कहीं न कहीं वरिष्ठ स्तर के अधिकारियों के दिमाग में दोषियों को बचाने के लिए पर्याप्त मौका दिया जा रहा है जहां वह हाई कोर्ट जाकर भ्रष्टाचार की कमाई से प्राप्त राशि से दर्जनों याचिकाएं लगा रहे हैं और कई मामलों में तो कोर्ट इन्हे स्थगन का लाभ भी दे रहा है।
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गबन और न्यास भंग के सीधे मामलों में आखिर एफआईआर क्यों नही?
बड़ा सवाल यह है की जहां पंचायत राज एवं ग्राम स्वराज अधिनियम 1993 की धारा 89/40/92 एक अलग प्रक्रिया पर आधारित है जहां पंचायती अनियमितता और निर्माण कार्यों में गड़बड़ी पर सुनवाई और कार्यवाही करने वसूली और पद से पृथक करने की कार्यवाही की जाती हैं वहीं ज्यादातर मामलों में पंचायती कर्मचारी और इंजीनियर शासकीय सेवक होते हैं जहां अन्य शासकीय सेवकों की तरह इनके ऊपर भी आईपीसी और सिविल सेवा आचरण संबंधी नियमावली लागू होती है। अतः यह बिल्कुल स्पष्ट है की यदि पंचायती राशि खुर्द बर्ड की जाती है, बिना कार्य कराए ही राशि का गबन किया जाता है, न्यास भंग किया जाता है एवं कूट रचित ढंग से दस्तावेज तैयार कर गबन और भ्रष्टाचार कर अपराध कारित किया जाता है तो यहां पंचायत राज अधिनियम की प्रक्रिया के साथ साथ जांच और कार्यवाही किया जाकर सीधे अनुशासनात्मक कार्यवाही के तौर पर आईपीसी एवं सिविल सेवा आचरण एवं अपील आदि नियम के तहत एफआईआर और विभागीय जांच बैठाई जानी चाहिए। लेकिन जिला पंचायतों में जिस प्रकार भ्रष्टाचारियों को संरक्षण देने का काम चल रहा है और मोटी रकम का गबन करने के बाद भी मात्र सुनवाई और नोटिस के नाम पर खानापूर्ति की जा रही है और संबंधित दोषियों को बचने और कोर्ट जाने का पर्याप्त मौका दिया जा रहा है इससे स्पष्ट है की वरिष्ठ अधिकारियों की भ्रष्टाचार को रोकने की कोई मंशा नहीं है।
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एडवोकेट नित्यानंद मिश्रा ने हाईकोर्ट में इस बड़े गबन के विरुद्ध की थी पैरवी
गौरतलब है की जबलपुर हाई कोर्ट में सीनियर अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी के मामलों की पैरवी की है। बता दें की सेदहा पंचायत सहित कई पंचायतों में भ्रष्टाचार को लेकर एक लंबे समय से लड़ाई लड़ी जा रही है। जहां जांच के बाद दोषी पाए गए आरोपी सीधे हाई कोर्ट जाकर स्थगन लाने का प्रयास कर रहे हैं और जांच एवं अन्य कार्यवाहियों को भी प्रभावित करने का पूरा प्रयास कर रहे हैं। इस प्रकार सेदहा पंचायत के मामलों में भी तत्कालीन सरपंच पवन पटेल इन जीआरएस दिलीप गुप्ता द्वारा जो आधा दर्जन याचिकाएं लगाई गई थी उन सभी में शिवानंद द्विवेदी की तरफ से एडवोकेट नित्यानंद मिश्रा ने पैरवी करते हुए खारिज करवाया।
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शासन ने हाई कोर्ट में समय पर नहीं दिया कोई जवाब
सबसे बड़ी विडंबना यही है की जिन मामलों को शासन स्तर से लड़ा जाना चाहिए था और शासन आगे आकर ऐसे मामलों पर जवाब दे और समय पर कैविएट और जवाब फाइल करते हुए कार्यवाही करवाएं वहां शासन स्वयं ही नही चाहता की भ्रष्टाचार पर रोक लगे और दोषियों के विरुद्ध वसूली और एफआईआर हो। ताजा मामला सेदहा पंचायत का ही लिया जा सकता है जहां वर्षों से लंबित पड़ी पेटिशन में सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा कई बार लेख किए जाने के उपरांत भी सीईओ जिला पंचायत एवं कलेक्टर कमिश्नर द्वारा समय पर जवाब फाइल नहीं किए गए जिसका नतीजा यह हुआ की स्थगन संबंधी उक्त कई याचिकाएं अभी तक पेंडिंग पड़ी रहा गईं। गनीमत तो यह थी कि सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी और अधिवक्ता नित्यानंद मिश्रा ने सतत तौर पर हाई कोर्ट में मामलों की निगरानी की जिसकी वजह से आरोपियों की सभी याचिकाएं हाई कोर्ट ने खारिज की।

सैकड़ों पंचायतों की पेंडिंग पड़ी याचिकाएं जिला पंचायत की भ्रष्टाचार के विरुद्ध कार्यप्रणाली पर बड़ा सवाल
बता दें की सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी द्वारा लगाई गई एक आरटीआई के जवाब में जिला पंचायत रीवा से प्राप्त जानकारी में बताया गया था की किसी सैकड़ों याचिकाएं हाई कोर्ट जबलपुर में आरोपियों द्वारा लगाई हुई हैं जहां आज तक जिला पंचायत सीईओ द्वारा जवाब तक फाइल नहीं कराए गए हैं। यह याचिकाएं वर्षों से पेंडिंग पड़ी हुई हैं जहां कई में तो ओआईसी भी नियुक्त नहीं किए गए हैं और जहां ओआइसी नियुक्त भी हुए उन्होंने क्या जवाब दिए इसका कोई पता तक नहीं। आरटीआई से प्राप्त जानकारी में यह स्पष्ट हुआ की ओआईसी के जवाब का जिला पंचायत को खुद ही कोई पता और खबर नहीं। इस प्रकार समझा जा सकता है की किस प्रकार पंचायती भ्रष्टाचार अपने चरम पर है और वरिष्ठ पदों पर बैठे हुए यह अधिकारी ही इस भ्रष्टाचार के पोषण में बड़े मददगार हैं। (शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता)

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