मध्य प्रदेश के रीवा जिले में पंचायत स्तर पर बनाए जा रहे अमृत सरोवर निर्माण को लेकर सामाजिक कार्यकर्ता शिवानंद द्विवेदी ने गंभीर प्रश्न खड़ा किए । द्विवेदी के द्वारा उपलब्ध करवाए गए तथ्यों और प्रमाणों की मानें तो अमृत सरोवर निर्माण चयन स्थल पर मानक मापदंडों का पालन न करते हुए मनमाने ढंग से जहां कहीं भी अमृत सरोवरों का निर्माण कराया जा रहा है। अमृत सरोवर निर्माण स्थल पर भौतिक सत्यापन करने के बाद जानकारी ली गई तो पता चला कि जिले के सैकड़ों अमृत सरोवर निर्माणों में स्थल चयन प्रक्रिया का समुचित पालन नहीं किया गया है। जैसे ही पंचायतों को पता चला कि अमृत सरोवर के लिए करोड़ों की राशि मनरेगा में आई है उसका भक्षण करने के लिए भ्रष्टाचार के नए-नए तरीके इजाद कर लिए गए। कई स्थलों का चयन जंगली भूभाग में किया गया है जहां पहले से ही पथरीली जमीन है और पत्थरों के बीच से दरारे हैं जहां न तो ड्रेनेज या वर्षा का पानी आने की कोई संभावना रहती है और न ही दरारों युक्त जमीन में पानी रुकने का भी कोई पर्याप्त कारण। सवाल यह है कि जब अमृत सरोवरों में पानी ही नहीं रुकेगा तो फिर यह अमृत सरोवर किस काम के? इसके पूर्व भी वाटर शेड स्कीम के द्वारा जिले में बनाए गए कई अमृत सरोवरों में आज भी पानी मौजूद नहीं रहता क्योंकि भूमि स्थल चयन समुचित तरीके से न किए जाने के कारण दरार युक्त जमीन, पथरीली जमीन, मोरम युक्त जमीन पर तालाब का निर्माण करवा दिया गया जिसमें सरकार की अरबों-खरबों रुपए तो बर्बाद हो गए लेकिन शासन की मंशा अनुरूप जो जल संग्रहित कर भूमि का जल स्तर बढ़ाया जाना था और साथ में पशु पक्षियों मवेशियों के लिए पीने का पानी उपलब्ध करवाए जाना था उस पर भी पानी फिर गया है। प्रदेश के इन महान और प्रतिभावान इंजीनियरों के बारे में जितनी बात कही जाए वह कम ही होगी क्योंकि लेआउट किए जाने के पूर्व स्थल चयन काफी सोच-समझकर किया जाना होता है और अमृत सरोवर निर्माण के जो मापदंड होते हैं इसमें ड्रेनेज का पानी, वर्षा का पानी, उस स्थल पर पहुंच पाए साथ में वन और पर्यावरण के नियमों का भी उल्लंघन न किया जाए और जहां तालाब बनाए जा रहे हैं वहां की भूमि और मिट्टी का भी परीक्षण किया जाए। बिना मिट्टी परीक्षण किए तालाब बनाए जाने की अनुमति शासन द्वारा उल्लेखित नियमों में नहीं है परंतु जिले और प्रदेश में हर जगह राशि का बंदरबांट किए जाने के उद्देश्य से कहीं भी अमृत सरोवर बना दिए जाते हैं जहां मात्र शासन के पैसे की बर्बादी हो जाती है।
वैज्ञानिक दृष्टि से इस प्रकार की भूमि पर बनाया जाना चाहिए अमृत सरोवर
यदि पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग एवं शासन के मापदंडों को माने तो जिस जमीन पर अमृत सरोवर का निर्माण कराया जाना है वह जमीन वेस्टलैंड होना चाहिए, एस जमीन जहां ड्रेनेज और बहाव के पानी का प्रचुर मात्रा में जमाव होता है, ऐसी जमीन जिसकी टोपोग्राफी अर्थात तलीय स्थिति ऐसी होनी चाहिए जहां गहराई और डिप्रेशन हो और जमीन की सतह निचले स्तर की हो, जहां तक सवाल मिट्टी के प्रकार का है तो मिट्टी न तो छारीय होना चाहिए न अम्लीय होना चाहिए और न ही सलाइन अर्थात लवण युक्त होना चाहिए। अधिकतर पीली वाली मिट्टी और बिना कटाव वाली मिट्टी पर तालाब निर्माण कार्य होना चाहिए, जमीन की जियोलॉजी इस प्रकार होनी चाहिए जिसमें लाइनार्मेंट और फाल्ट बिलकुल नहीं होनी चाहिए। अब यदि मध्य प्रदेश के अधिकांश जिलों में देखा जाए तो जो अमृत सरोवर बनाए जा रहे हैं उनमें ऐसे बहुत कम तालाब होंगे जहां उक्त मापदंडों का पालन किया जा रहा है और अधिकतर तालाब इसी प्रकार के अमानक और अनुचित जगहों पर बनाए जा रहे हैं जहां पर न तो पानी रुकेगा और न ही किसी तरह से इन अमृत सरोवर को बनाए जाने का आम जनता अथवा जीव-जंतुओं को कोई लाभ प्राप्त होगा।
अब बड़ा सवाल यह है कि क्या मध्यप्रदेश के कर्णधार और प्रतिभावान इंजीनियर यह जवाब दे पाएंगे कि उनके द्वारा जिस प्रकार की भूमि का चयन किया गया है क्या वह लेबोरेटरी में मिट्टी परीक्षण करते हुए और शासन के मानक अनुसार किया गया है? जाहिर है कई परियोजनाओं की तरह अमृत सरोवर भी मात्र जनता के टैक्स के पैसे और शासन की राशि हड़पने मात्र साधन बनाए जा रहे हैं।
फर्जी मस्टररोल जारी कर जंगली क्षेत्र में मशीन और जेसीबी से कराए जा रहे निर्माण कार्य
जहां तक सवाल अमृत सरोवर के निर्माण में मजदूरों के उपयोग को लेकर के है तो मनरेगा के अधिनियम तो बहुत स्पष्ट तौर पर यह कहते हैं कि 60 और 40 का अनुपात मजदूरी और मटेरियल को लेकर रखा जाएगा लेकिन हालात यह हैं की फर्जी मस्टर रोल जारी कर दिए जा रहे हैं और ऐसे मजदूर भरे जाते हैं जो उस ग्राम पंचायत के सरपंच सचिव के करीबी होते हैं जिनके खाते में पैसे आने के बाद या तो एटीएम कार्ड के माध्यम से या फर्जी खोले गए खातों के माध्यम से पैसे आहरित कर लिए जाते हैं और मौके पर कार्य मात्र जेसीबी ट्रैक्टर और मशीनों के द्वारा किया जा रहा है।
हालांकि विशेषज्ञों की मानें तो यह समस्या चिरकालीन है क्योंकि 200 रुपए मजदूरी पर आज मजदूर मेहनत वाला मिट्टी खुदाई का काम नहीं करते हैं और मनरेगा मजदूरी का पैसा भी उन्हें समय पर नहीं मिलता। इसलिए मजदूर मिलने में दिक्कत बताई जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि जब मजदूर नहीं मिल रहे हैं तो मनरेगा के अधिनियम में मजदूरों का स्थान क्यों रखा गया है जबकि सरकार के नीचे से लेकर ऊपर तक के अधिकारियों को यह भली-भांति पता है कि ग्राम पंचायतों में बहुतायत कार्य मशीनों द्वारा ही कराया जा रहा है और मजदूरों के नाम पर मात्र फर्जी मस्टररोल जारी किए जा रहे हैं? ( शिवानंद द्विवेदी, सामाजिक कार्यकर्ता )