सड़क में जलभराव न हो और आसपास का पानी भी नालियों के माध्यम से बाहर निकल जाये, इसके लिए सड़क किनारे नालियों के निर्माण कि योजनाएं बनाई गई। लेकिन अफ़सोस शायद इंजीनियर और ठेकेदार को पूरी जानकारी या निकट भविष्य कि समस्याओं कि जानकारी नहीं दी गई। जिसकी वजह से बन रही नालियाँ महज खानापूर्ति कि तरफ इशारा करती हैं।
ताज़ा मामला रीवा जिले का है। जहाँ सड़कों के बगल में बन रही नालियाँ महज एक दिखावा साबित हो रही हैं। जिन नालियों का निर्माण पानी निकासी के लिए किया गया था या किया जा रहा है , उन नालियों में बरसात के साथ – साथ क्षेत्र का पानी भी बह कर इकट्ठा हो जा रहा है। जिसकी वजह से नालियों के आसपास का क्षेत्र तेज़ गंध और मच्छरों से पट जाता है। कई जगह तो नाली निर्माण में ऐसा काम किया गया है कि शायद वायरलेस तकनिकी से पानी बह कर दूसरे नाली में चला जायेगा। हालाँकि जब इस सम्बन्ध में लोगों से पूंछा गया तो उन्होंने बताया कि, ये महज दिखाबा है। ठेकेदार लोग ऊपर पैसे खिलाकर सब कुछ सेट कर लेते हैं और फिर आधे – अधूरे काम को पूरा बता कर निकल लेते हैं।
एक नज़र
सार्वजनिक निर्माण कार्य में धांधली कोई नई बात नहीं है लेकिन इस स्तर का बन्दर बाँट शायद पहले कभी नहीं हुआ होगा। एक तरफ सरकार स्वछता अभियान के नाम पर लाखों करोड़ों रूपए खर्च कर दे रही है तो दूसरी तरफ परिणाम कीचड़ों से भरे पड़े हैं। लेकिन फिर भी कोई सुनने वाला नहीं है। अब ऐसे में कहा जा सकता है कि स्वच्छ भारत अभियान के नाम पर सरकार महज जुमला परोस रही है।
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