जमींनी हक़ीक़त : शासन कि योजनाओं में जमकर बन्दर बाँट, अभी भी वंचित है एक तबक़ा

त्योंथर। गरीबों के लिए शासन द्वारा लगातार योजनाओं का सञ्चालन किया जा रहा है। चाहे वो आवास को लेकर हो या फिर अनाज वितरण। इतना ही नहीं बच्चो के जन्म के पहले से लेकर उनके शादी – विवाह तक शासन कि योजनायें हैं। लेकिन अफ़सोस आज़ादी के सत्तर साल बाद भी हम रोटी कपड़ा मकान पर ही अटक रहे हैं। लेकिन दावों कि माने तो ऐसा कुछ है ही नहीं। तो फिर ये लोग कौन हैं ? कहाँ से आये हैं ? आख़िर कौन हैं वो जिनका पेट इतना बड़ा है कि योजनाओं का बन्दर बाँट कर गरीबों का हक़ डकार जा रहे हैं ?

रोटी कपड़ा मकान के लिए अभी भी जद्दो-जहद
ताज़ा मामला जनपद पंचायत त्योंथर अंतर्गत आने वाली फरहदी पंचायत का है। जहाँ पहले भी कई समस्यों को लेकर लोगों ने आवाज उठाई थी, जो अचानक से बंद हो गई थी। फ़िलहाल इस बार का मामला योजनाओं से अब तक वंचित रहे मुसहर परिवार का है। जिनको ये तक पता नहीं कि सरकार उनके लिए कितनी योजनाओं का सञ्चालन कर रही है। जिसकी वजह से भ्र्ष्ट और लालची लोगों को मौका मिल जाता है। मुसहर परिवार के मुखिया से जब शासन कि योजनाओं को लेकर बात कि गई तो पता चला उन्हें अब तक योजनाओं से वंचित रखा गया है। न उनके पास घर है न पीने का पानी न वो अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं न ही खाने – पीने कि ठीक – ठाक व्यवस्था कर पाते हैं। फिर भी एक तरफ शासन – प्रशासन निरंतर विकास के दावे कर रही है तो वहीं दूसरी तरफ ऐसी विडंबना, कई सवाल खड़े करती है।

योजनाओं के लाभ दिलाने माँगते हैं घूंस
ग़रीबी क्या होती है शायद भरी जेब कभी महसूस नहीं होने देती है। लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप दूसरों का मजाक उड़ाओ या उन्हें परेशान करो। बातों ही बातों में जब परिवार कि महिलाओं से घर बनाने को लेकर सवाल हुआ तो उन्होंने बताया कि उनसे घर देने के एवज में पैसे मांगे जा रहे थे। उनका कहना था कि जब नाम लिखने कि बारी आई तो उनसे दो हजार से लेकर पांच हजार तक कि मांग कि गई। जिन लोगों ने दे दिया उनका सब काम हो गया और हमने नहीं दिया तो इस हाल में जीवन यापन कर रहे हैं।

एक नज़र
ये कहानी एकलौती फरहदी पंचायत कि नहीं है। कई बार कई पंचायतों में इससे भी ज्यादा संवेदनशील और लापरवाह मामले देखने को मिले हैं। बावजूद इसके कोई भी ठोस कदम नहीं उठाये गए। जिससे ये कहना गलत नहीं होगा कि किसी न किसी तरह से ऐसे भ्र्ष्ट लोगों को उच्च स्तर के संरक्षण प्राप्त हैं। जिसकी वजह से गरीबों को योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता और जो खर्चा पानी देता है उसको सब दे दिया जाता है।

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