रीवा, मप्र। सरकार गरीबों को तकलीफ़ न हो इसके लिए तरह – तरह की योजनाओं कि शुरुआत करती है। लेकिन अफ़सोस इन योजनाओं को संचालित करने वाले लोगों द्वारा ही गरीबों को तरह-तरह से प्रताड़ित किया जाता है। ताज़ा मामला रीवा जिले कि सेमरिया तहसील का है। जहाँ आज लोकायुक्त द्वारा सेमरिया तहसीलदार के रीडर को 4 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगेहाथ ट्रेप किया गया।
जानकरी के अनुसार शिकायतकर्ता रामप्रकाश साकेत से सेमरिया तहसीलदार के बाबू रावेंद्र शुक्ला द्वारा गरीबी रेखा का राशन कार्ड बनाने के एवज में 5000 रुपए की रिश्वत तहसीलदार के नाम पर मांगी थी। लोकायुक्त सूत्रों की मानें तो सेमरिया तहसीलदार के रीडर को 4 हजार रुपए की रिश्वत लेते हुए रंगे हाथ ट्रेप किया गया है। दावा है कि आरोपी बाबू एक हजार रुपए पहले भी पीड़ित से ले चुका था। फिर भी गरीबी रेखा का राशन कार्ड नहीं बनाया और बाबू दोबारा 4 हजार रुपए की रकम मांगने लगा। इन सब से परेशान होकर पीड़ित लोकायुक्त एसपी के पास पहुंचा था। जब एसपी ने आवेदन का सत्यापन कराया तो शिकायत सही पाई गई। जिसके बाद लोकायुक्त ने बुधवार की दोपहर दो बजे ही रीडर को तहसील परिसर में ही रिश्वत के साथ रंगे हाथ पकड़ लिया है। लोकायुक्त की टीम आरोपी रीडर को लेकर पूर्वा जलप्रपात विश्राम ग्रह पहुंची है। जहां भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया है।
क्या है मामला
फरियादी रामप्रकाश साकेत निवासी ग्राम बरा तहसील सेमरिया पेशे से मजदूर है और मजदूरी कर अपना जीवन यापन करता है। कुछ दिनों पहले रामप्रकाश, तहसीलदार सेमरिया के रीडर रावेंद्र शुक्ला के खिलाफ शिकायत लेकर लोकायुक्त एसपी कार्यालय गया था। जहाँ उसने राशन कार्ड बनाने के एवज में रीडर रावेंद्र शुक्ला पर पांच हजार रुपए कि घूस कि मांग को लेकर शिकायत कि थी। जिसमें पहली किस्त के रूप में एक हजार रुपए दिए जा चुके थे और 4 हजार रुपए कि दूसरी किस्त लेने के लिए 18 जनवरी की दोपहर तहसील कार्यालय के अपने दफ्तर में बुलाया। फरियादी रामप्रकाश साकेत 4 हजार रूपए देकर जैसे ही वापस लौटा लोकायुक्त टीम ने छापा मार घूस की रकम पकड़ आरोपी रीडर को धर दबोचा।
एक नज़र
रीवा में लगातार लोकायुक्त धरपकड़ जारी है बावज़ूद इसके रिश्वतखोर कर्मचारियों पर इसका जरा भी प्रभाव नहीं पड़ता है। क्यूंकि उन्हें पता होता है कि कुछ दिन बाद वो फिर बहाल हो जायेंगे और फिर शुरू हो कर देंगे आम जनता का शोषण और घूंसखोरी। शासन -प्रशासन और न्याय पालिका को ऐसे गंभीर मुद्दों पर जरा हटकर सोचना पड़ेगा क्यूंकि सवाल बेबस लाचार जनता का है।
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