पत्रकार-साहित्यकार जब एक होता है तब साधना सफल होती है – डॉ० सुरेन्द्रकुमार पाण्डेय

पं० हेरम्ब मिश्र-स्मृति शिखर- सम्मान समारोह सम्पन्न

रामलखन गुप्त, चाकघाट। नगर की सीमा से लगे प्रयागराज के बैंक्वेट हॉल मे पं० हेरम्ब मिश्र-स्मृति शिखर-सम्मान समारोह’ का आयोजन किया गया, जिसमे समारोह के अध्यक्ष डॉ० ओमप्रकाश दुबे और मुख्य अतिथि साहित्यमहामहोपाध्याय आचार्य डॉ० सुरेन्द्रकुमार पाण्डेय ने दीप-प्रज्वलन कर, समारोह का उद्घाटन करते हुए, माँ सरस्वती, पं० हेरम्ब मिश्र और उनकी पत्नी शान्ति देवी के चित्र पर माल्यार्पण किया। बालिका भुवी मिश्र ने गणेशवन्दना पर आधारित शास्त्रीय नृत्य कर, दर्शकों का मन मोह लिया। संस्थान के निदेशक बंशीधर मिश्र ने अभ्यागतवृन्द का स्वागत किया और अपने पिताश्री पं० हेरम्ब मिश्र की स्मृति मे आयोजित समारोह मे उनके कर्त्तृत्व और व्यक्तित्व पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाला। अध्यक्ष और मुख्य अतिथि ने समारोह मे विगत तीन वर्षों और वर्तमान वर्ष के लिए चयनित पत्रकारों मे श्याम कुमार, अजामिल, सुनील श्रीवास्तव तथा संदीप वालिया को ‘पं० हेरम्ब मिश्र-स्मृति पत्रकारिता-शिखर-सम्मान; पं० दयाशंकर पाण्डेय, श्रीराम मिश्र ‘तलब जौनपुरी, श्रीप्रकाश मिश्र तथा डॉ० वीरेन्द्रकुमार तिवारी को ‘पं० हेरम्ब मिश्र-स्मृति साहित्य-शिखर-सम्मान तथा मानवेन्द्रप्रताप सिंह, डॉ० सर्वेशकुमार दुबे, मनीष पालीवाल तथा अवनीशकुमार मिश्र को ‘पं० हेरम्ब मिश्र-स्मृति युवा मीडिया-शिखर-सम्मान’ से आभूषित किया। समादृत हस्ताक्षरों को मोतियों की माला, अंगवस्त्रम्, नारिकेल, शिखर-सम्मानपत्र एवं स्मृतिचिह्न भेंट किया गया। सम्मानित किये जानेवाले प्रबुद्धजन के प्रशस्तिपत्र का वाचन चेतना प्रकाश ‘चितेरी’, उर्वशी उपाध्या, कन्हैया शर्मा, आत्मन् जैन, उर्वशी उपाध्याय, डॉ० धारवेन्द्रप्रताप त्रिपाठी, ईशा, भाव्या तथा सौम्या नैऋत्य मिश्र ने किये।

मुख्य अतिथि साहित्यमहामहोपाध्याय आचार्य डॉ० सुरेन्द्रकुमार पाण्डेय ने कहा– यदि आज के पत्रकार पं० हेरम्ब जी के गुणधर्म को ग्रहण कर लें तो उनकी पत्रकारिता सार्थक हो सकती है। यदि पत्रकार एक साहित्यकार होता है तो वह एक मणिकांचन संयोग होता है। हम यदि आज के मीडिया पर दृष्टिपात करते हैं तब ज्ञात होता है कि इस क्षेत्र मे अपेक्षाकृत अधिक क्षरण हुआ है। उन्होंने आगे कहा– पत्रकार और साहित्यकार से सत्ता भय खाती है; परन्तु जब सत्ता के सम्मुख ये दोनो घुटने टेक देते हैं तब विडम्बना की स्थिति दिखायी देती है। अध्यक्षीय सम्भाषण करते हुए डॉ० ओमप्रकाश दुबे ने कहा– हमने जो जीविका के संदर्भ मे विदेश जाकर खोया था, आज यहाँ आकर पा लिया है। वास्तव मे, हेरम्ब जी एक तपस्वी थे, जिनकी साधना इस आयोजना मे फलीभूत हो रही है।
श्याम कुमार ने बताया– आजका आयोजन महत्त्वपूर्ण तो है ही, पवित्र भी है, इसलिए कि यह हेरम्ब जी की स्मृति मे हुआ है। पं० दयाशंकर पाण्डेय ने काव्यपाठ के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। मानवेन्द्रप्रताप सिंह ने कहा– पत्रकारों की चेतना बनाये रखने के लिए यह बहुत आवश्यक है कि ऐसे आयोजनो से जुड़ें। श्रीराम मिश्र ‘तलब जौनपुरी’ ने कहा– पत्रकार और साहित्यकार को बहुत सजग रहना पड़ता है; ऐसा न लिखें; ऐसा न बोलें, जिनका असर समाज मे न हो। डॉ० सर्वेशकुमार दुबे ने कहा– किसी पत्रकार को तब तक पत्रकारिता करनी चाहिए जब तक उसकी आत्मा न मरे। अजामिल ने कहा– जिस एवार्ड को पं० हेरम्ब मिश्र जी का नाम छू जाये, वह सौभाग्य होता है। सुनील श्रीवास्तव ने कहा– आपको यदि बहुत समझौते करने पड़े तो पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए। आपमे यदि भाषा और जुनून हो तभी पत्रकारिता करें। बंशीधर मिश्र ने आभार-ज्ञापन किया। समारोह का संयोजन और संचालन भाषाविज्ञानी एवं समीक्षक आचार्य पं० पृथ्वीनाथ पाण्डेय ने किया। इस अवसर पर दीपक अग्रवाल, प्रबोध मानस,शशिधर मिश्र, प्रशांत मिश्र,अस्तित्व मिश्र मिनाक्षी मिश्र, शालिनी मिश्र (पुत्रवधु), भुवि, कुंज, सतीशचन्द्र तिवारी, शाम्भवी, डॉ० विजयशंकर मिश्र ‘ज्योतिपुंज’, अनिल पाण्डेय, दिव्य, रामलखन गुप्त आदिक उपस्थित थे।

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